कोई अक्षर ऐसा नहीं है, जो मंत्र न हो और कोई भी वनस्पति की जड़ ऐसी नहीं है कि जो दवा ना हो, कोई भी पुरुष अयोग्य नहीं है। वहाँ (सभी चीजों को) जोड़ने वाला ही दुर्लभ है।
राज्यं नाम शक्तित्रयायत्तं शक्तयश्च मन्त्रप्रभावोत्साहाः परस्परानुगृहीताः कृत्येषु क्रमन्ते । मन्त्रेण हि विनिश्चयोऽर्थानां प्रभावेण प्रारम्भः उत्साहेन निर्वहणम् । -- दशकुमारचरित
राज्य तीन शक्तियों से मिलकर बनत है, ये शक्तियाँ हैं- मन्त्र, प्रभाव और उत्साह जो परस्पर अनुगृहीत होकर कार्यों में आतीं हैं। मन्त्र से यह निश्चित होता है कि क्य क्यों कैसे करना चाहिये, प्रभाव से कार्य प्रारम्भ होता है, उत्साह से काम बिना रूके आगे बढ़ता है।
एकं विषरसो हन्ति शस्त्रेणैकश्च वध्यते ।
सराष्ट्रं सप्रजं हन्ति राजानं मन्त्रविप्लवः ॥ -- विदुर, महाभारत में
विष से एक ही व्यक्ति मरता है और शस्त्र से एक ही व्यक्ति मारा जाता है। लेकिन मन्त्रविप्लव ( राजा द्वारा लिया गया गलत निर्णय) के होने पर राष्ट्र और प्रजा सहित राजा भी मारा जाता है।
मननात त्रायते यस्मात्तस्मान्मन्त्र उदाहृतः।
जिसके मनन, चिन्तन एवं ध्यान द्वारा संसार के सभी दुखों से रक्षा, मुक्ति एवं परम आनंद प्राप्त होता है, वही मंत्र है।
मन्यते ज्ञायते आत्मादि येन
जिससे आत्मा और परमात्मा का ज्ञान (साक्षात्कार) हो, वही मंत्र है।
मन्यते विचार्यते आत्मादेशो येन
जिसके द्वारा आत्मा के आदेश (अंतरात्मा की आवाज) पर विचार किया जाए, वही मंत्र है।
मन्यते सत्क्रियन्ते परमपदे स्थिताः देवताः
जिसके द्वारा परमपद में स्थित देवता का सत्कार (पूजन/हवन आदि) किया जाए-वही मंत्र है।