शक्ति
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- सङ्घे शक्तिः कलौ युगे। -- महाभारत
- कलियुग में संघ में ही शक्ति है।
- बुद्धिर्यस्य बलं तस्य। -- पञ्चतन्त्र
- जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है।
- नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते मृगैः ।
- विक्रमार्जित सत्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता ॥
- विद्या विवादाय धनं मदाय शक्तिः परेषां परिपीडनाय ।
- खलस्य साधोर्विपरीतमेतत् ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय ॥
- दुर्जन की विद्या विवाद के लिये, धन उन्माद के लिये, और शक्ति दूसरों को कष्ट देने के लिये होती है। इसके विपरीत सज्जन इनको क्रमशः ज्ञान, दान और दूसरों के रक्षण के लिये उपयोग करते हैं।
- क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति महतां नोपकरणे ।
- महापुरुषों की क्रिया-सिद्धि पौरुष से होती है, न कि साधन से।
- शक्ति भ्रष्टाचार की ओर उन्मुख होती है, और पूरी तरह से निरपेक्ष शक्ति पूरी तरह से भ्रष्ट करती है। -- लॉर्ड ऐक्टन