दयानन्द सरस्वती
महर्षि दयानन्द सरस्वती एक संत और आर्यसमाज के स्थापक थे।
सूक्तियाँ[सम्पादन]
- ईश्वर सच्चिदानन्द स्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, अन्तर्यामी, अजर, अमर. अभय, नित्य पवित्र और सृष्टिकर्ता है। उसी की उपासना करने योग्य है।
- उस सर्वव्यापक ईश्वर को योग द्वारा जान लेने पर हृदय की अविद्यारुपी गांठ कट जाती है, सभी प्रकार के संशय दूर हो जाते हैं और भविष्य में किये जा सकने वाले पाप कर्म नष्ट हो जाते हैं, अर्थात ईश्वर को जान लेने पर व्यक्ति भविष्य में पाप नहीं करता।
- जिसको परमात्मा और जीवात्मा का यथार्थ ज्ञान है, जो आलस्य को छोड़कर सदा उद्योगी, सुखदुःखादि का सहन, धर्म का नित्य सेवन करने वाला, जिसको कोई पदार्थ धर्म से छुड़ा कर अधर्म की ओर न खींच सके वह पण्डित कहाता है।
- वेदों मे वर्णित सार का पान करने वाले ही ये जान सकते हैं कि 'जीवन' का मूल बिन्दु क्या है।
- ये 'शरीर' 'नश्वर' है, हमे इस शरीर के माध्यम से केवल एक मौका मिला है, खुद को साबित करने का कि, 'मनुष्यता' और 'आत्मविवेक' क्या है।
- क्रोध का भोजन 'विवेक' है, अतः इससे बचके रहना चाहिए। क्योंकि 'विवेक' नष्ट हो जाने पर, सब कुछ नष्ट हो जाता है।
- अहंकार' एक मनुष्य के अन्दर वो स्थित लाती है, जब वह 'आत्मबल' और 'आत्मज्ञान' को खो देता है।
- मानव' जीवन मे 'तृष्णा' और 'लालसा' है, और ये दुखः के मूल कारण है।
- क्षमा' करना सबके बस की बात नहीं, क्योंकी ये मनुष्य को बहुत बङा बना देता है।
- 'काम' मनुष्य के 'विवेक' को भरमा कर उसे पतन के मार्ग पर ले जाता है।
- लोभ वो अवगुण है, जो दिन प्रति दिन तब तक बढता ही जाता है, जब तक मनुष्य का विनाश ना कर दे।
- मोह एक अत्यंन्त विस्मित जाल है, जो बाहर से अति सुन्दर और अन्दर से अत्यंन्त कष्टकारी है; जो इसमे फँसा वो पुरी तरह उलझ ही गया।
- ईष्या से मनुष्य को हमेशा दूर रहना चाहिए। क्योकि ये 'मनुष्य' को अन्दर ही अन्दर जलाती रहती है और पथ से भटकाकर पथ भ्रष्ट कर देती है।
- मद 'मनुष्य की वो स्थिति या दिशा' है, जिसमे वह अपने 'मूल कर्तव्य' से भटक कर 'विनाश' की ओर चला जाता है।
- संस्कार ही 'मानव' के 'आचरण' का नीव होता है, जितने गहरे 'संस्कार' होते हैं, उतना ही 'अडिग' मनुष्य अपने 'कर्तव्य' पर, अपने 'धर्म' पर, 'सत्य' पर और 'न्याय' पर होता है।
- अगर 'मनुष्य' का मन 'शाँन्त' है, 'चित्त' प्रसन्न है, ह्रदय 'हर्षित' है, तो निश्चय ही ये अच्छे कर्मो का 'फल' है।
- जिस 'मनुष्य' मे 'संतुष्टि' के 'अंकुर' फुट गये हों, वो 'संसार' के 'सुखी' मनुष्यों मे गिना जाता है।
- यश और 'कीर्ति' ऐसी 'विभूतियाँ' है, जो मनुष्य को 'संसार' के माया जाल से निकलने मे सबसे बड़े 'अवरोधक' हैं।
- आत्मा, 'परमात्मा' का एक अंश है, जिसे हम अपने 'कर्मों' से 'गति' प्रदान करते हैं। फिर 'आत्मा' हमारी 'दशा' तय करती है।
- मानव को अपने पल-पल को 'आत्मचिन्तन' मे लगाना चाहिए, क्योंकि हर क्षण हम 'परमेश्वर' द्वारा दिया गया 'समय' खो रहे है।
- मनुष्य की 'विद्या उसका अस्त्र', 'धर्म उसका रथ', 'सत्य उसका सारथी' और 'भक्ति रथ के घोड़े हैं।
- इस 'नश्वर शरीर' से 'प्रेम' करने के बजाय हमे 'परमेश्वर' से प्रेम करना चाहिए, 'सत्य और धर्म, से प्रेम करना चाहिए; क्योंकि ये 'नश्वर' नही है।
- जिसने गर्व किया, उसका पतन अवश्य हुआ है।
ऋषि ने बजाई भेरी, जाग उठा भारत,
ऋषि ने बजाई बीन, नाच उठा भारत;
ऋषि ने दिखाई राह, दौड़ रहा भारत,
ऋषि ने हुकाँरा तो, हुकाँर उठा भारत।
ऋषि ने जगाई ज्योती, जगमग जहान किया,
वेदोँ की वाणी बोल,विस्मित जहान किया;
प्रभु असली से सबको, मिला गया ऋषिवर,
नकली प्रभु से छुट्टी, दिला गया ऋषिवर।
सत्य का प्रकाश किया, दूर अन्धकार किया,
अविद्या का नाश कर, वेद का प्रकाष किया;
जात पात ढोँग और ढकोसले को दूर किया,
अन्ध विश्वास के, गढ़ पर प्रहार किया।
आत्मघात आत्महीनता को जड़ से दूर किया,
आत्म विश्वास, प्रबल शक्ति मन्त्र फूँक दिया;
निर्जीव पड़े भारत को, शक्ति से पूर्ण किया,
सोते और लुटते भारतवासी को बेदार किया।
बीज परिपक्व ऐसे बो गया ऋषिवर,
बञ्जर और बेजान धरती सीँच गया ऋषिवर;
आज जिसमेँ नए नए बाग और बगीचे हैँ,
महकते हुए फूल फल,लहलहाते व्रिक्ष हैँ।
लताएँ वनौषध, जलप्रपात भी भरपूर हैँ।
लहलहाते बागो मेँ, फूलोँ की सुबास है,
सत्य का उजाला प्रभु प्रेम की मिठास है।
आओ इसे सीँचे सब खून पसीने से,
सत्य से परमार्थ से, प्रभु प्रेम व पुरुषार्थ से।
सारे ही विश्व मेँ जिसकी न मिसाल हो,
अमरित हो, प्यार हो,ग्यान हो प्रकाश हो;
प्राणी मात्र के परम सुख का आधार हो,
आओ इसे सीँचें हम,आओ इसे सीँचें हम;
स्वामी दयानन्द के योगदान के बारे में महापुरुषों के विचार[सम्पादन]
- डॉ॰ भगवान दास ने कहा था कि स्वामी दयानन्द हिन्दू पुनर्जागरण के मुख्य निर्माता थे।
- श्रीमती एनी बेसेन्ट का कहना था कि स्वामी दयानन्द पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 'आर्यावर्त (भारत) आर्यावर्तियों (भारतीयों) के लिए' की घोषणा की।
- सरदार पटेल के अनुसार भारत की स्वतन्त्रता की नींव वास्तव में स्वामी दयानन्द ने डाली थी।
- पट्टाभि सीतारमैया का विचार था कि गाँधी जी राष्ट्रपिता हैं, पर स्वामी दयानन्द राष्ट्र–पितामह हैं।
- फ्रेञ्च लेखक रोमां रोलां के अनुसार स्वामी दयानन्द राष्ट्रीय भावना और जन-जागृति को क्रियात्मक रूप देने में प्रयत्नशील थे।
- अन्य फ्रेञ्च लेखक रिचर्ड का कहना था कि ऋषि दयानन्द का प्रादुर्भाव लोगों को कारागार से मुक्त कराने और जाति बन्धन तोड़ने के लिए हुआ था। उनका आदर्श है- आर्यावर्त ! उठ, जाग, आगे बढ़। समय आ गया है, नये युग में प्रवेश कर।
- स्वामी जी को लोकमान्य तिलक ने "स्वराज्य और स्वदेशी का सर्वप्रथम मन्त्र प्रदान करने वाले जाज्व्लयमान नक्षत्र थे दयानन्द "
- नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने "आधुनिक भारत का आद्यनिर्माता" माना।
- अमरीका की मदाम ब्लेवेट्स्की ने "आदि शङ्कराचार्य के बाद "बुराई पर सबसे निर्भीक प्रहारक" माना।
- सैयद अहमद खां के शब्दों में "स्वामी जी ऐसे विद्वान और श्रेष्ठ व्यक्ति थे, जिनका अन्य मतावलम्बी भी सम्मान करते थे।"
- वीर सावरकर ने कहा महर्षि दयानन्द स्वाधीनता संग्राम के सर्वप्रथम योद्धा थे |
- लाला लाजपत राय ने कहा - स्वामी दयानन्द मेरे गुरु हैं। उन्होंने हमे स्वतंत्र विचारना, बोलना और कर्त्तव्यपालन करना सिखाया।