भारतीय अर्थव्यवस्था
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प्राचीन काल से अब तक भारत के आर्थिक कार्यकलापों और आर्थिक नीतियों पर कहे गये सद्वाक्य।
- प्राचीन भारतीय आर्थिक विचार
प्राचीन भारतीय आर्थिक विचार एक विशाल और जटिल विषय है जिसमें दर्शन, धर्म, नीति, साहित्य, राजनीति और अर्थशास्त्र जैसे विभिन्न क्षेत्र शामिल हैं। वास्तव में भारतीय संस्कृति में पुरुषार्थ की योजना मानव द्वारा करने योग्य कार्यों का एक मोटा विभाजन है। पुरुषार्थ के अन्तर्गत अर्थ भी एक महत्वपूर्ण अवयव है। यहाँ तक कहा गया है कि अर्थ के बिना धर्म और काम की प्राप्ति नहीं हो सकती। यहां प्राचीन भारतीय आर्थिक विचारों की कुछ प्रमुख तत्व नीचे दिये गये हैं-
- धर्म : प्राचीन भारत में आर्थिक गतिविधियों को धर्म या कर्तव्य का एक महत्वपूर्ण पहलू माना जाता था। धर्म की अवधारणा के अनुसार, व्यक्तियों की नैतिक जिम्मेदारी थी कि वे समाज की भलाई के लिए काम करें और आम भलाई में योगदान दें। इसका मतलब यह था कि आर्थिक गतिविधियों को नैतिक और सामाजिक रूप से जिम्मेदार तरीके से संचालित किया जाना था ।
- वस्तु विनिमय प्रणाली : प्राचीन भारत में, विनिमय का प्राथमिक तरीका वस्तु विनिमय प्रणाली थी। इसका मतलब यह था कि पैसे के उपयोग के बिना वस्तुओं और सेवाओं का अन्य वस्तुओं और सेवाओं के लिए आदान-प्रदान किया गया था। वस्तु विनिमय प्रणाली ग्रामीण क्षेत्रों में और उन समुदायों के बीच प्रचलित थी जो शहरी केंद्रों से अलग-थलग थे।
- सिक्का निर्माण : प्राचीन भारत में विनिमय के माध्यम के रूप में सिक्कों का उपयोग शुरू किया गया था। प्रारंभ में सिक्के चाँदी के बने और बाद में सोने, तांबे और अन्य धातुओं के बने। सिक्कों के उपयोग ने व्यापार और वाणिज्य को अधिक कुशल बनाया और अर्थव्यवस्था के विकास को सुगम बनाया।
- व्यवसाय आधारित जाति व्यवस्था: जाति व्यवस्था ने प्राचीन भारत की आर्थिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रत्येक जाति का एक विशिष्ट व्यवसाय था, और व्यक्तियों से अपेक्षा की जाती थी कि वे अपनी जाति को सौंपे गए व्यवसाय में काम करें। इसका मतलब यह था कि श्रम का एक विभाजन था, जिसमें विभिन्न जातियाँ विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में विशेषज्ञता रखती थीं।
- कृषि : कृषि प्राचीन भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार थी। अधिकांश आबादी कृषि में लगी हुई थी, और अधिशेष उत्पादन का उपयोग व्यापार और वाणिज्य के लिए किया जाता था ।
- व्यापार और वाणिज्य : प्राचीन भारत में व्यापार और वाणिज्य महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधियाँ थीं। सिल्क रोड और अन्य व्यापार मार्ग भारत को दुनिया के अन्य हिस्सों से जोड़ते हैं, जिससे वस्तुओं और विचारों के आदान-प्रदान में आसानी होती है।
- आर्थिक सिद्धान्त : प्राचीन भारतीय आर्थिक विचार वेदांत, योग और सांख्य जैसे दर्शन के विभिन्न विद्यालयों से प्रभावित थे। विचार के इन विद्यालयों ने आत्म-अनुशासन, भौतिक संपत्ति से अलग होने और आध्यात्मिक ज्ञान की खोज पर जोर दिया। प्राचीन भारत के कुछ प्रमुख आर्थिक सिद्धांतों में अर्थ या धन की अवधारणा शामिल है, जिसे मानव जीवन के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने के साधन के रूप में देखा जाता था, जो मोक्ष या मुक्ति था । इतना ही नहीं, चाणक्य ने कहा है कि 'धर्म का मूल अर्थ है और अर्थ का मूल राज्य'। कुल मिलाकर, प्राचीन भारतीय आर्थिक विचार आर्थिक गतिविधियों के लिए एक समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण की विशेषता थी। आर्थिक गतिविधियों को आम भलाई हासिल करने और समग्र रूप से समाज की भलाई को बढ़ावा देने के साधन के रूप में देखा गया, न कि केवल व्यक्तिगत लाभ की खोज के रूप में।
- कर-प्रणाली : प्राचीन भारत में कर की समुचित व्यवस्था थी। माना जाता था कि कोष के बिना राजा का कोई महत्व नहीं है। कर के बारे में यह धारणा थी कि वह इतना कम हो कि कर देने वाले को पता भी न चले और राजा प्रजा को कर के बदले में सार्वजनिक हित के कार्य करे।
विचार
[सम्पादन]- स्वतंत्रता-पूर्व
- मेगास्थनीज ने कहा है कि भारत के लोग न तो पैसा व्याज पर देते हैं न ही उधार लेना जानते हैं। किसी का अहित करना या किसी से अहित होना भारतीय सिद्धान्तों के विपरीत है। इसलिये वे लोग न तो संविदा (कॉन्ट्रैक्ट) करते हैं न किसी प्रतिभूति (सेक्योरिटी) की आवश्यकता होती है। -- विल डुरान्ट और एरिएल डुरान्त, The Story of Civilization, Book I, Our Oriental Heritage (1935)
- भारत केवल अपने धैर्य, अतिमानवीय शक्ति एवं विशाल आकार के कारण बचा रह सका। -- Fernand Braudel: A History of Civilizations, p.232., quoted in Elst, Koenraad (1999). Update on the Aryan invasion debate New Delhi: Aditya Prakashan.
- स्वतंत्रता के पश्चात
- मेरे मन में इस बात की कोई शंका नहीं है कि भविष्य में भारत एक महान अर्थिक शक्ति बनेगा। भारत का एक यही अभिशाप है कि भारत के लोगों में भारतीय होने का गर्व नहीं है। जिस क्षण उनके स्वभिमान आ जायेगा, भारत दूसरा जापान बन जायेगा। -- माइक्रोकम्प्यूटर के अग्रदूत आदम ऑसबॉर्न (Adam Osborne), टाइम्स ऑफ इण्डिया में, 7/12/1990. Quoted from Elst, Koenraad (1991). Ayodhya and after: Issues before Hindu society.
- यदि हम संकल्प कर लें तो हम भारतीय अर्थव्यवस्था की दयनीय स्थिति को सुधार सकते हैं। हमें यह जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी और दृढ़प्रतिज्ञ होना पड़ेगा। -- नरेन्द्र मोदी
- भारत में विश्व के सबसे अधिक युवा हैं। जब उन सभी के लिये समुचित आजीविका मिल जायेगी तो इस देश का वित्तीय स्वास्थ्य नाटकीय रूप से बढ़ जायेगा। -- श्रीनिवास मिश्रा
- अगले २० वर्षों में वैश्विक ईंधन और उपभोग के १०० से १५० प्रतिशत बढ़ने की सम्भावना है। तेजी से बढ़ती हुई चीनी और भारतीय अर्थव्यवस्थाएँ इसका मुख्य कारण होंगी। इस वृद्धि के कारण तथा इस मांग में व्र्द्धि के फलस्वरूप कीमतें और भी बढ़ेंगी। -- John Shadegg
- सेवकों की विश्वसनीयता, सम्पूर्ण भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार है। -- अरविन्द अडिग
- ईस्ट इंडिया कम्पनी के भरतीय अर्थव्यवस्था पर हाबी होने का आधार उसकी निजी सेना थी। -- Robert Trout
- चीनी अर्थव्यवस्था ९ प्रतिशत की दर से बढ़ रही है, भारतीय अर्थव्यवस्था ८ प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। मैं सोचता हूँ कि द्विपक्षीय व्यापार, प्रौद्योगिकी और निवेश में अपार अवसर विद्यमान है। -- मनमोहन सिंह
- 1980 के दशक में हमें सलाह दी गई थी कि आप रीगन-अर्थनीति या थैचर-नीति का अनुसरण क्यों नहीं करते। हमने कहा, हां, कुछ अच्छे बिंदु हैं, आइए देखें कि हम उन्हें भारतीय अर्थव्यवस्था में कैसे फिट कर सकते हैं। हर देश के आगे बढ़ने का अपना तरीका होता है। -- प्रणब मुखर्जी
- 1970 के दशक में भारत में विदेशी प्रभुत्व के डर के कारण जनता पार्टी ने देश के भीतर सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आंशिक भारतीय स्वामित्व पर जोर दिया। इसका परिणाम यह निकला कि आईबीएम और कोका-कोला जैसी कंपनियाँ वापस चली गयीं और अर्थव्यवस्था अवृद्धि की स्थिति में बनी रही। -- Peter Blair Henry
- यदि आप आज की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को देखें, उदाहरण के लिए, अमेरिकी अर्थव्यवस्था, यूरोपीय अर्थव्यवस्था, भारतीय अर्थव्यवस्था, चीनी अर्थव्यवस्था, तो हम सभी एक साथ बंधे हुए हैं। यदि उनमें से कोई एक डूबती है, तो बाकी लोग भी उसके साथ डूब जायेंगे और यदि एक तैरता है, तो बाकी लोग भी ऊपर उठा लिये जायेंगे। -- Frans de Waal
- भारतीय अर्थव्यवस्था 5.5 प्रतिशत की दर से बढ़ी, लेकिन अगर आप पिछले 30 वर्षों को देखें - उदाहरण के लिए, 1960 से 1985 तक, तो पूर्वी एशियाई देशों की प्रगति अभूतपूर्व थी। एक ही पीढ़ी में वे अपनी अर्थव्यवस्था के चरित्र को बदल सके। वे बहुत समय से चली आ रही गरीबी से छुटकारा पाने में सक्षम हो गये। -- मनमोहन सिंह
- पूरे राजनीतिक अभिजात वर्ग ने पिछले 50 वर्षों से भारतीय अर्थव्यवस्था का कुप्रबंधन किया है। कुप्रबंधन के लक्षण के रूप में पैदा हुए संकट को आप केवल पांच मिनट या एक सप्ताह में हल नहीं कर सकते। इसके लिये त्याग और पीड़ा लेनी पड़ेगी। और मुझे संदेह है कि भारत में इसका सामना करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति है। -- Marc Faber
- जैसे-जैसे भारतीय अर्थव्यवस्था हमारे क्षेत्र में और विश्व में शक्ति का संचार करेगी, यह मंगोलिया को भी लाभ पहुँचायेगी। -- नरेन्द्र मोदी
- भारतीय अर्थव्यवस्था नीतिगत पंगुता और आशावाद की कमी से पीड़ित है। मुझे विश्वास है कि सही निर्णयों से हम एक बार फिर आशा और विश्वास पैदा कर पायेंगे और अपनी अर्थव्यवस्था में परिवर्तन ला सकेंगे। -- नरेन्द्र मोदी
- भारतीय गिद्ध से लेकर चीनी मधुमख्खियों तक, प्रकृति सबको अपनी सेवा देती है जिससे अर्थव्यवस्था आगे बढ़ती रहती है। --Tony Juniper