यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत् क्वचित्॥ -- महाभारत
हे भरतश्रेष्ठ! धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष के विषय में जो इस ग्रन्थ में है वही दूसरे ग्रन्थों में भी है किन्तु जो यहाँ जो नहीं है वह कहीं नहीं है। -- वैशम्पायन जनमेजय से, महाभारत ग्रन्थ के बारे में
अभय, अन्तःकरण की शुद्धि, ज्ञान, योग, दान, दम, स्वाध्याय, तप, सरलता, अहिंसा, सत्य, अक्रोध, त्याग, शांति, चुगली न करना, प्राणियों पर दया, लोलुपता का अभाव, कोमलता, चपलता का अभाव, तेज, क्षमा, धृति, शौच, अद्रोह और निरभिमान दैवी सम्पत्ति हैं, अर्थात मोक्ष का कारण हैं। -- गीता, अध्याय १६, श्लोक १-३
प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टान्त, सिद्धान्त, अयवय, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितण्डा, हेत्वाभास, छल, जाति और निग्रहस्थान के तत्वज्ञान से मिःश्रेयस (मोक्ष/कल्याण) की प्राप्ति होती है।
देवतागण गीत गाते हैं कि स्वर्ग और मोक्ष को प्रदान करने वाले मार्ग पर स्थित भारत के लोग धन्य हैं । ( क्योंकि ) देवता भी जब पुनः मनुष्य योनि में जन्म लेते हैं तो यहीं जन्मते हैं ।