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मोक्ष

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मोक्ष का शाब्दिक अर्थ '(बन्धनों से) मुक्ति' है। 'मुक्ति', 'विमुक्ति', 'विमोक्ष', 'निर्वाण', 'कैवल्य', 'समाधि' आदि इसके समानार्थी हैं।

उक्तियाँ

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  • आत्मनो मोक्षार्थं जगद्धिताय च -- ऋग्वेद
अपने मोक्ष के लिये तथा जगत के हित के लिये।
  • धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ।
यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत् क्वचित्॥ -- महाभारत
हे भरतश्रेष्ठ! धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष के विषय में जो इस ग्रन्थ में है वही दूसरे ग्रन्थों में भी है किन्तु जो यहाँ जो नहीं है वह कहीं नहीं है। -- वैशम्पायन जनमेजय से, महाभारत ग्रन्थ के बारे में
  • मोक्षद्वारे द्वारपालाश्चत्वारः परिकीर्तिताः ।
शमो विचारः संतोषश्चतुर्थः साधुसंगमः॥ -- योगवासिष्ठ
(हे राम!) मोक्ष के द्वार पर चार ही द्वारपाल हैं : शम, विचार, संतोष और चौथा साधु पुरुषों की संगति।
  • अभय, अन्तःकरण की शुद्धि, ज्ञान, योग, दान, दम, स्वाध्याय, तप, सरलता, अहिंसा, सत्य, अक्रोध, त्याग, शांति, चुगली न करना, प्राणियों पर दया, लोलुपता का अभाव, कोमलता, चपलता का अभाव, तेज, क्षमा, धृति, शौच, अद्रोह और निरभिमान दैवी सम्पत्ति हैं, अर्थात मोक्ष का कारण हैं। -- गीता, अध्याय १६, श्लोक १-३
  • प्रमाण-प्रमेय-संशय-प्रयोजन-दृष्टान्त-सिद्धान्तावयव-तर्क-निर्णय-वाद-जल्प-वितण्डाहेत्वाभास-च्छल-जाति-निग्रहस्थानानाम्तत्त्वज्ञानात् निःश्रेयसाधिगमः -- न्यायसूत्र (अक्षपाद गौतम)
प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टान्त, सिद्धान्त, अयवय, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितण्डा, हेत्वाभास, छल, जाति और निग्रहस्थान के तत्वज्ञान से निःश्रेयस (मोक्ष/कल्याण) की प्राप्ति होती है।
  • यतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः। -- वैशेषिक सूत्र
जिससे वर्तमान जीवन में अभ्युदय और भावी जीवन में निःश्रेयस (मोक्ष) की सिद्धि हो, वही धर्म है। दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं कि जिससे भौतिक उन्नति और अध्यात्मिक उन्नति दोनों प्राप्त होतीं हैं, वही धर्म है।
  • सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग: -- आचार्य उमास्वाति द्वारा रचित तत्त्वार्थसूत्र १-१
सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र तीनों मिलकर मोक्ष का मार्ग हैं।
  • मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।
बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम्॥ -- अमृतबिन्दुपनिषद्,६/३४ ; ब्रह्मबिन्दूपनिषद्
मन ही सभी मनुष्यों के बन्धन एवं मोक्ष की प्रमुख कारण है। विषयों में आसक्त मन बन्धन का और कामना-संकल्प से रहित मन ही मोक्ष (मुक्ति) का कारण कहा गया है ॥
  • योगे मोक्षे च सर्वासां वेदनानामवर्तनम् ।
मोक्षे निवृत्तिः निःशेषा योगो मोक्षप्रवर्तकः ॥ -- चरकसंहिता 1.137
योग और मोक्ष की स्थिति में सभी वेदनाओं का पुनः आना रुक जाता है। मोक्ष प्राप्त होने पर वेदनाओं से पूर्ण निवृत्ति हो जाती है। योग मोक्ष का प्रवर्तक है।
  • मोक्षो रजस्तमोऽभावात् बलवत्कर्मसङ्ख्यात्। वियोगः सर्वसंयोगैरपुनर्भव उच्यते॥
मन से जब रज और तम का नाश हो जाता है, तथा बलवान कर्मों का भी क्षय हो जाता है, तब कर्म बन्धन छूट जाते है, इसे ही मोक्ष कहा जाता है।
  • गायन्ति देवाः किल गीतकानि , धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे ।
स्वर्गापवर्गास्पद्मार्गभूते , भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वाद् ॥ -- विष्णुपुराण
देवतागण गीत गाते हैं कि स्वर्ग और मोक्ष को प्रदान करने वाले मार्ग पर स्थित भारत के लोग धन्य हैं । ( क्योंकि ) देवता भी जब पुनः मनुष्य योनि में जन्म लेते हैं तो यहीं जन्मते हैं।
  • मोक्षस्य न हि वासोऽस्ति न ग्रामान्तरमेव वा ।
अज्ञानतिमिरग्रन्थिनाशो मोक्ष इति स्मृतः ॥ -- शिवगीता, १३/३२
मोक्ष का कोई वास-स्थान नहीं है, न ग्राम और न ग्राम के अलावा कोई स्थान। अज्ञान रूपी अन्धकार की ग्रन्थि का नाश ही मोक्ष कहा जाता है।
  • मोक्षेण योजनाद् योगः सर्वोप्याचार इष्यते।
विशिष्य स्थानवर्णार्थालम्बनैकाग्रयगोचरः॥ -- ज्ञानसारचयनिका-८४
मोक्ष के साथ योजित करने के कारण समस्त आचार ‘योग’ कहलाता है। उस योग के पांच प्रकार हैं -स्थान (आसन) वर्ण, अर्थज्ञान, आलम्बन तथा एकाग्रता।

विभिन्न मत-सम्प्रदायों में मोक्ष

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(१) चार्वाक दर्शन - स्वातन्त्र्यं मृत्युर्वा मोक्षः । ( स्वतंत्रता या मृत्यु ही मोक्ष है।)

(२) माध्यमिक बौद्ध - आत्मच्छेदो मोक्षः।

(३) अन्य बौद्ध - निर्मलज्ञानोदयो मोक्षः। (निर्मल ज्ञान का उदय ही मोक्ष है।)

(४) जैन धर्म - बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्यां कृत्न् कर्मविप्रमोक्षणं मोक्षः।

(५) जैन धर्म - कर्मकृतस्य देहस्वरूपस्य आवरणस्य अभावे जीवस्य सततोर्ध्वगमनं मोक्षः।

(६) रामानुजीय - जगत्कर्तृत्वरहित-सर्वज्ञत्वादिप्राप्तिरूपं भगवत्साम्यं याथात्येवान भगवत्व्तरूपानुभवश्च मोक्षः।

(७) रामानुजीय - सर्वज्ञत्वादीनां परमात्मगुणानां प्राप्तिः याथात्म्येन भगवत्स्वरूपानुभवश्च मोक्षः।

(८) माध्वपन्थी- जगत्कर्तृत्व-लक्मी मपतित्व-श्रीवत्सप्राप्तिरहितं दुःखामिश्रितं निरतिशयसुखं मोक्षः। (जगत्कर्तृत्व-लक्ष्मीपतीत्व-श्रीवत्सप्राप्तिरहितं दुःखामिश्रितं पूर्णं सुखं मोक्षः)

(९) नकुलीशपाशुपत - पारमैश्वर्यप्राप्तिः मोक्षः। (परमेश्वर की प्राप्ति मोक्ष है।)

(१०) शैव - शिवत्वप्राप्तिर्मोक्षः। (शिवत्व की प्राप्ति ही मोक्ष है।)

(११) प्रत्यभिज्ञावादी - पूर्णात्मतालाभः मोक्षः। (अपने को पूर्ण रूप से जान लेना ही मोक्ष है।)

(१२) रसेश्वरवादी - पारदरसेन देहस्थैर्ये जीवन्मुक्तिः एव मोक्षः।

(१३) नैयायिकैकदेशिन - दुःखनिवृत्तिः सुखावाप्तिश्चापि इति मोक्षः।

(१४) पाणिनीय पन्थी - मूलचक्रस्थायाः परानामिकायाः ब्रह्मरूपायाः वाचः दर्शनं मोक्षः।

(१५) पातञ्जल - कृतकर्तव्यतया पुरुषार्थशून्यानां सत्त्वरजस्तमसां मूलप्रकृतौ अत्यन्तलयः प्रकृतेः मोक्षः, चितिशक्तेः निरुपाधिकस्वरूपेण अवस्थानं मोक्षः।

(१६) साङ्ख्य - प्रकृत्युपरमे पुरुषस्य स्वरूपेण अवस्थानं मोक्षः।

(१७) योग पन्थी - द्रष्टुः स्वरूपे अवस्थानं मोक्षः।

(१८) अद्वैत वेदान्तवादी - मूलाज्ञाननिवृत्तौ स्वस्वरूपाधिगमः मोक्षः।

(१९) मीमांसक - स्वर्गादिप्राप्तिः मोक्षः।

इन्हें भी देखें

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