सहस्रगुणमुत्स्रष्टुमादत्ते हि रसं रवि: ॥ (कालिदास / रघुवंश १ । १८)
अर्थ : जिस प्रकार सूर्य हजार गुना जल बरसाने के लिए ही पृथ्वी के जल का बहुत कम भाग लेता है, वैसे ही वे (राजा दिलीप) भी अपनी प्रजा के हित के लिए ही प्रजा से (बहुत कम मात्रा में) कर लिया करते थे।
बरसत हरषत लोग सब करषत लखै न कोइ ।
तुलसी प्रजा सुभाग ते भूप भानु सो होइ ॥ (गोस्वामी तुलसीदास)
अर्थ : सूर्य जिस प्रकार पृथ्वी से अनजाने में ही जल खींच लेता है और किसी को पता नहीं चलता, किन्तु उसी जल को बादल के रूप में एकत्र कर वर्षा में बरसते देखकर सभी लोग प्रसन्न होते हैं। इसी रीति से कर संग्रह करके राजा द्वारा जनता के हित में कार्य करना चाहिए।
व्यापारियों तथा कारीगरों को चाँदी और सोने के व्यापार में होने वाले अपने लाभ का पाँचवाँ हिस्सा और किसानों को अपनी उपज का छठा, आठवाँ या दसवाँ हिस्सा, अपनी हालात के आधार पर, कर के रूप में भुगतान करना चाहिए। -- मनु
राजा को अपनी प्रजा से उसी प्रकार शुल्क या कर आदि वसूलना चाहिए जिस प्रकार मधुमक्खियां फूलों से पराग लेकर शहद बनाती हैं और छत्ते का निर्माण करती हैं।