विनोबा भावे

विकिसूक्ति से
  • गीता पर बात’ मेरे जीवन की कहानी है, और यह मेरा संदेश भी है।
  • अगर जीवन में सीमायें नहीं होंगी तो स्वतंत्रता का मोल नहीं होता।
  • अगर हम हर रोज एक ही काम करते है तो वह हमारी आदत में शामिल हो जाता है और तब हम अन्य कार्य करते हुये भी उस कार्य को कर सकते है।
  • अनगिनत क्रियाएं हर समय हमारे माध्यम से चल रही हैं। अगर हम उन्हें गिनना शुरू कर दें, तो हम कभी अंत तक नहीं पहुँच पाएंगे।
  • अनुशासन, लक्ष्यों और उपलब्धि के बीच का सेतु है। विश्वास मानिए कि ज्ञान की अपेक्षा अज्ञान ज्यादा आत्मविश्वास पैदा करता है।
  • अभिमान कई तरह के होते हैं, पर मुझे अभिमान नहीं है, ऐसा भास होने जैसा भयानक अभिमान दूसरा नहीं है।
  • अवसर और परिवर्तन और परिवर्तनशीलता की इस दुनिया में, किसी भी संकल्प की पूर्ति भगवान की इच्छा पर निर्भर करती है।
  • अहिंसा में आपको पूर्ण भाप के साथ आगे बढ़ना चाहिए, यदि आप चाहते हैं कि तेजी से अच्छा हो तो आपको इसके बारे में दृढ़ता के साथ जाना चाहिए।
  • ईश्वर हमें भीतर से निर्देशित करता है। वह इससे ज्यादा कुछ नहीं करता। भगवान को कुम्हार की तरह आकार देने में कोई आकर्षण नहीं है। हम मिट्टी के बरतन नहीं हैं; हम चेतना से भरे हुए हैं।
  • एक देश का बचाव हथियारों से नहीं बल्कि नैतिक व्यवहार से करना चाहिए।
  • एक व्यक्ति जो बिल्ली को पूंछ से पकड़ता है, वह कुछ ऐसा सीखता है जो वह किसी अन्य तरीके से नहीं सीख सकता।
  • ऐसा व्यक्ति जो एक घंटे का समय बर्बाद करता है, उसने जीवन के मूल्य को समझा ही नहीं है।
  • औपचारिक शिक्षा आपको जीविकोपार्जन के लिए उपयुक्त अवसर देती है, जबकि अनुभव आपका भाग्य बनाते हैं।
  • कलियुग में रहना है या सतयुग में यह तुम स्वयं चुनो, तुम्हारा युग तुम्हारे पास है।
  • किसी की आत्मा की स्वाभाविक गति उर्ध्वगामी है। लेकिन जैसे भारी वजन बांधने से कोई सामान नीचे गिर जाता है, शरीर का बोझ आत्मा को नीचे गिरा देता है।
  • किसी देश का बचाव हथियारों से नहीं , बल्कि नैतिक व्यवहार से होना चाहिए।
  • केवल अंग्रेज़ी सीखने में जितना श्रम करना पड़ता है उतने श्रम में भारत की सभी भाषाएँ सीखी जा सकती हैं।
  • खुदा से डरने वाले को और किसी का क्या डर।
  • गरीब वह नहीं जिसके पास कम है, बल्कि धनवान होते हुए भी जिसकी इच्‍छा कम नहीं हुई है, वह सबसे अधिक गरीब है।
  • गीता को हम निरंतर देखते हैं इसका मुख्य कारण यह है कि जब भी हमें सहायता की आवश्यकता होगी, हम इसे गीता से प्राप्त कर सकते हैं। और, वास्तव में, हम हमेशा इसे प्राप्त करते हैं।
  • जब कर्म को शुद्ध करने का निरंतर प्रयास होता है , तो शुद्ध कर्म स्वाभाविक रूप से और अधिक सहजता से चलेगा।
  • जब कोई बात सच होती है, तो उसे प्रमाणित करने के लिए किसी तर्क का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं होती है।
  • जब तक कष्ट सहने की तैयारी नहीं होती तब तक लाभ दिखाई नहीं देता। लाभ की इमारत कष्ट की धूप में ही बनती है।
  • जब हम किसी नयी परियोजना पर विचार करते हैं तो हम बड़े गौर से उसका अध्ययन करते हैं केवल सतह मात्र का नहीं, बल्कि उसके हर एक पहलू का।
  • जबतक कष्ट सहने की तैयारी नहीं होती तब तक लाभ दिखाई नहीं देता। लाभ की इमारत कष्ट की धूप में ही बनती है।
  • जिस राष्ट्र में चरित्रशीलता नहीं है, उसमें कोई योजना काम नहीं कर सकती।
  • जिसने ज्ञान को आचरण में उतार लिया, उसने ईश्वर को मूर्तिमान कर लिया।
  • जिसने नई चीज सीखने की आशा छोड़ दी, वह बूढ़ा है।
  • जिसने मन नहीं जीता, वह ईश्वर की सृष्टि का रहस्य नहीं समझ सकता।
  • जीवन का अर्थ मात्र कर्म या मात्र भक्ति या मात्र ज्ञान नहीं है।
  • जीवन को मात्र अतीत में जाकर समझा जा सकता है, किंतु इसे भविष्य की ओर अग्रसर होकर जिया जाना होगा।
  • जो चीज़ विचारकों को आज स्पष्ट दिखती है दुनिया उस पर कल अमल करती है।
  • जो सब की प्रशंसा करता है वह किसी की प्रशंसा नहीं करता।
  • ज्ञान का एकमात्र श्रोत अनुभव है।
  • ज्ञानी वह है जो वर्तमान को ठीक प्रकार समझे और परिस्थति के अनुसार आचरण करे।
  • तगड़े और स्वस्थ व्यक्ति को भिक्षा देना, दान का अन्याय है। कर्महीन मनुष्य भिक्षा के दान का अधिकारी नही हैं।
  • द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है।
  • नई चीज सिखने कि जिसने आशा छोड़ दे, वह बुढा है।
  • नदी अपनी मर्जी से बहती है, लेकिन बाढ़ दो तटों में बंधी है। यदि यह इस प्रकार बाध्य नहीं होता, तो इसकी स्वतंत्रता बर्बाद हो जाएगी।
  • निष्काम कर्मयोग तभी सिद्ध होता है जब हमारे बाह्य कर्म के साथ अन्दर से चित्त शुद्धि रुपी कर्म का भी संयोग होता है।
  • परस्पर आदान-प्रदान के बिना समाज में जीवन का निर्वाह संभव नहीं है।
  • परिणामी विस्फोट से अंहकार , इच्छाओं, जुनून और क्रोध को कम किया जाएगा , और फिर सर्वोच्च ज्ञान प्राप्त किया जाएगा।
  • प्रतिभा का अर्थ है बुद्धि में नई कोपलें फूटते रहना नई कल्पना, नया उत्साह, नई खोज और नई स्फूर्ति प्रतिभा के लक्षण हैं।
  • प्रेम और विचार से अधिक शक्तिशाली कुछ भी नहीं - कोई संस्था नहीं , कोई सरकार नहीं , कोई शास्त्र नहीं , कोई हथियार नहीं। मैं मानता हूँ कि ये , प्रेम और विचार , शक्ति का एकमात्र स्रोत है।
  • प्रेरणा किसी कार्य आरम्भ करने में सहायता करती है और आदत उस कार्य को जारी रखने में सहायता करती है।
  • बुद्धि का पहला लक्षण है काम आरम्भ न करो और अगर शुरू कर दिया है तो उसे पूरा करके ही छोड़ो।
  • भगवद्गीता में, कोई लंबी चर्चा नहीं है, कुछ भी विस्तृत नहीं है। इसका मुख्य कारण यह है कि गीता में कही गई हर बात का हर आदमी के जीवन में परीक्षण किया जाना है; यह व्यवहार में सत्यापित किए जाने का इरादा है।
  • भविष्य में स्त्रियों के हाथ में समाज का अंकुश आने वाला है उसके लिए स्त्रियों को तैयार होना पड़ेगा स्त्रियों का उद्धार तभी होगा, जब स्त्रियाँ जागेंगी और स्त्रियों में शंकराचार्य जैसी कोई निष्ठावान स्त्री होगी।
  • मनुष्य जितना ज्ञान के रंग में रंग गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है।
  • महान विचार ही कार्य रूप में परिवर्तित होकर महान कार्य बनते हैं।
  • मानव जीवन संस्कारों के खेल से भरा हुआ है – बार-बार क्रिया द्वारा प्रवृत्तियां विकसित हुई हैं।
  • मेरा दृढ़ विश्वास है कि सच्चे ज्ञान की एक चिंगारी दुनिया की सभी समस्याओं को जला सकती है। इस विश्वास के साथ मैंने अपना सारा जीवन ज्ञान की खोज और प्रसार में बिताया है।
  • मेरा मूल उद्देश्य एकता और समानता - और करुणा के साम्ययोग के विचार को पढ़ना और उसकी सराहना करना है।
  • मैं दावा करता हूं कि मैं प्यार से आगे बढ़ा रहा हूँ। मेरे पास प्यार के अलावा कुछ भी नहींं हैं।
  • मैं भगवान की छवि की पूजा कर सकता हूं; लेकिन अगर वह भक्ति के साथ नहीं है तो वह कार्य बेकार है। भक्ति की अनुपस्थिति में, मूर्ति सिर्फ पत्थर का एक टुकड़ा होगा, पूजा का अर्थ केवल यह होगा कि एक पत्थर दूसरे पत्थर का सामना कर रहा है!
  • मैं हर चेहरे में ईश्वर को देखता हूं।
  • मौन और एकान्त, आत्मा के सर्वोत्तम मित्र हैं।
  • यदि आप किसी चीज का सपना देखने का साहस कर सकते हैं तो उसे प्राप्त भी कर सकते हैं।
  • यदि किसी को भी भूख-प्यास नहीं लगती तो अतिथि सत्कार का अवसर कैसे मिलता।
  • यदि मनुष्य इस शरीर पर विजय प्राप्त कर लेता है, तो दुनिया में कौन उसके ऊपर शक्ति का प्रयोग कर सकता है? वह जो पूरी दुनिया पर अपना शासन करता है।
  • यदि हम कामना करते हैं कि हमारा स्वाभाव मुक्त और आनंदित हो, तो हमें अपनी गतिविधियों को एक ही क्रम में ले आना चाहिए।
  • यदि हम केवल आत्मा के पैरों को बांधने वाले शरीर के भ्रूणों को काट सकते हैं, तो हमें एक महान आनंद का अनुभव होगा। तब हम शरीर के कष्टों के कारण दुखी नहीं होंगे। हम आजाद हो जाएंगे।
  • यदि हम चाहते हैं कि हमारा स्वभाव स्वतंत्र और आनंदमय हो, तो हमें अपनी गतिविधियों को उसी क्रम में लाना चाहिए।
  • यह एक जिज्ञासु घटना है कि भगवान ने गरीब, अमीर और अमीर, गरीब के दिलों को बनाया है।
  • यह तभी होता है जब हमारा जीवन सीमा के भीतर और एक स्वीकृत, अनुशासित तरीके से आगे बढ़ता है, ताकि मन मुक्त हो सके।
  • लाभ की इमारत, कष्ट की धूप में ही बनती है।
  • विचारकों को जो चीज़ आज स्पष्ट दीखती है दुनिया उस पर कल अमल करती है।
  • विचारों को दीवार मैं कैद नहीं किया जा सकता है। इसे सद्भावना के साथ लोगों से साझा किया जा सकता हैं , इस तरह से विचार बढ़ता है और फैलता है।
  • संघर्ष और उथल पुथल के बिना जीवन बिल्कुल नीरस जाएगा। इसलिए इनसे घबराए नही।
  • संघर्ष और उथल पुथल के बिना जीवन बिल्कुल नीरस बन कर रह जाता है। इसलिए जीवन में आने वाली विषमताओं को सह लेना ही समझदारी है।
  • सत्य को कभी भी किसी के प्रमाण की जरुरत नहीं होती है।
  • सभी क्रांतियों का मूल कारण आध्यात्मिक हैं। मेरी सभी गतिविधियों का एकमात्र उद्देश्य दिलों का मेल-मिलाप पूर्ण करना है।
  • सिर्फ धन कम रहने से कोई गरीब नहीं होता, यदि कोई व्‍यक्ति धनवान है और इसकी इच्‍छाएं ढेरों हैं तो वही सबसे गरीब है।
  • सेवा के लिये पैसे की जरूरत नहीं होती जरूरत है अपना संकुचित जीवन छोड़ने की, गरीबों से एकरूप होने की।
  • स्वतंत्र वही हो सकता है जो अपना काम अपने आप कर लेता है।
  • स्वयं को कल्पना करने की अनुमति न दें कि क्रांतिकारी सोच सरकारी शक्ति द्वारा प्रचारित की जा सकती है।
  • हम अपनी बाल्यावस्था के कार्यों को याद भी नहीं कर सकते हैं, हमारा बचपन एक स्लेट पर लिखी गई चीज़ की तरह है, जैसे स्लेट पर लोखा और फिर इसे मिटा दिया।
  • हम अपने दोषों को तभी हटा सकते हैं जब हम उनके बारे में जागरुक हों। इस तरह की जागरुकता के बिना , प्रगति और विकास के सभी प्रयास शून्य हो जाएंगे।
  • हम आगे बढ़ते हैं, नए रास्ते बनाते हैं और नयी परियोजनाएं बनाते हैं क्योंकि हम जिज्ञासु हैं और जिज्ञासा हमें नयी राहों की ओर ले जाती है।
  • हम पुराने हथियारों के साथ नए युद्ध नहीं लड़ सकते।
  • हम हमारे बचपन को फिर से नहीं प्राप्त कर सकते है, यह तो ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे किसी ने पेंसिल से कुछ लिखकर पुन उसे मिटा दिया है।
  • हमने अनुभव से देखा है कि, यदि हम एक ही सड़क पर नियमित रूप से चलने की आदत में हैं, तो हम अपने कदमों पर ध्यान दिए बिना, चलते समय अन्य चीजों के बारे में सोचने में सक्षम हैं।
  • हर समय हमारे माध्यम से असंख्य क्रियाएं चल रही हैं। यदि हमने उन्हें गिनना शुरू किया, तो हमें कभी भी समाप्त नहीं होना चाहिए।
  • हाथ में तलवार हिंसक मन का एक निश्चित संकेत है; लेकिन कोई मात्र तलवार फेंकने से अहिंसक नहीं बन जाता।
  • हालांकि कर्म योग और संन्यास नाम अलग-अलग हैं, लेकिन दोनों के दिल में सच्चाई समान है।
  • हिन्दुस्तान का आदमी बैल तो पाना चाहता है लेकिन गाय की सेवा करना नहीं चाहता वह उसे धार्मिक दृष्टि से पूजन का स्वांग रचता है लेकिन दूध के लिये तो भैंस की ही कद्र करता है हिन्दुस्तान के लोग चाहते हैं कि उनकी माता तो रहे भैंस और पिता हो बैल योजना तो ठीक है लेकिन वह भगवान को मंजूर नहीं है।
  • हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है।

इन्हें भी देखें[सम्पादन]