हथियार

विकिसूक्ति से

हथियार या अस्त्र उन युक्तियों को कहते हैं जो जीवित प्राणियों, भवनों या प्रणालियों को नुक्सान पहुँचा सकते हैं या उन्हें मार सकते या नष्ट कर सकते हैं। इनका उपयोग शिकार, अपराध, आत्मरक्षा या युद्ध में किया जाता है। विस्तृत अर्थ में उन सभी वस्तुओं को अस्त्र कह सकते हैं जो शत्रु के विरुद्ध रणनीतिक, मानसिक या पदार्थ सम्बन्धी लाभ पाने के लिये उपयोग में लाये जाते हैं। डण्डा, पत्थर, तीर-धनुष, भाला, फरसा, तलवार, बन्दूक, बम, तोप, मिसाइल, परमाणु बम आदि कुछ प्रमुख हथियार हैं।

उक्तियाँ[सम्पादन]

  • शस्त्रेण रक्षिते राष्ट्रे शास्त्र चिन्ता प्रवर्तते। -- चाणक्य
शस्त्र से रक्षित राष्ट्र में ही शास्त्र चिन्तन सम्भव है।
  • नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥ -- भगवद्गीता
इस (आत्मा) को शस्त्र काट नहीं सकते और न अग्नि इसे जला सकती है ; जल इसे गीला नहीं कर सकता और वायु इसे सुखा नहीं सकती।
  • क्षमा शस्त्रं करे यस्य दुर्जनः किं करिष्यति ।
अतृणे पतितो वन्हिः स्वयमेवोपशाम्यति ॥
क्षमारूपी शस्त्र जिसके हाथ में हो उसे दुर्जन क्या कर सकता है ? अग्नि जब किसी ऐसी जगह पर गिरता है जहाँ घास न हो तो वह अपने आप बुझ जाता है।
  • विद्या शस्त्रं च शास्त्रं च द्वे विद्ये प्रतिपत्तये।
आद्या हास्याय वृद्धत्वे द्वितीयाद्रियते सदा ॥ -- नारायण पण्डित (हितोपदेश)
शस्त्र और शास्त्र दोनों ही विद्या है । और दोनो ही ज्ञान तथा सन्मान देती है। किन्तु वृद्धावस्था में शस्त्रविद्या लोगों के उपहास का पात्र बनती है जबकि शास्त्र विद्या (ज्ञान) का सदा आदर होता है।
  • गुरुं वा बाल-वृद्धौ वा ब्राह्मणं वा बहुश्रुतम् ।
आततायिनम् आयान्तं हन्याद् एवाविचारयन् ॥ -- मनुस्मृति
गुरु हो, बालक हो, वृद्ध हो या बहुश्रुत ब्राह्मण हो – लेकिन यदि वह शस्त्र लेकर वध करने को आ रहा हो तो ऐसे आततायी को तो बिना कोई विचार किये मार ही डालना चाहिये।
  • अग्निदो गरदश्चैव शस्त्रोन्मत्तो धनापहः ।
क्षेत्रदारहरश्चैतान् षड् विद्याद् आततायिनः -- शुक्रनीति
आग लगाने वाला, विष देने वाला, शस्त्र से उन्मत्त, धन चुराने वाला, खेत हरने वाला, स्त्री का अपहरण करने वाला - ये ६ आततायी हैं।
  • भाषा हमारा गुप्त हथियार था और जैसे ही हमे भाषा मिली तैसे ही हम एक खतरनाक प्रजाति बन गये। -- Mark Pagel, "Phonetic Clues Hint Language Is Africa-Born" में
  • विश्वयुद्ध, जो कि प्रमाणु युद्ध होगा, के खतरे को समाप्त करना आज का सबसे महत्वपूर्ण और तुरन्त करने योग्य कार्य है। मानव जति के पास एक ही विकल्प है : हमे हथियारों की दौड़ समाप्त कर देनी चाहिये और निःशस्त्रीकरण की ओर बढ़ना चाहिये, नहीं तो हम पूर्णतः समाप्त हो जायेंगे। -- निःशस्त्रीकरण पर संयुक्त रष्ट्र के प्रथम विशेष सत्र (१९७८) के अन्तिम दस्तवेज में
  • परमाणु अस्त्र किसी भी सैन्य उद्देश्य की पूर्ति नहीं करते। इनका उपयोग केवल अपने शत्रु को इनका प्रयोग करने से रोकने में है। इसके अलावा वे पूर्णतः व्यर्थ हैं। -- रॉबर्ट मैक नमरा, 'द न्युक्लियर डिलेमा' में उद्धृत, Awake! पत्रिका (22 अगस्त 1988).

इन्हें भी देखें[सम्पादन]