देवनागरी

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देवनागरी लिपि में कई भाषाओं को लिखा जाता है। यह पूरी तरह ध्वनि अर्थात उच्चारण पर आधारित है, इस कारण किसी भी भाषा को इस लिपि में लिखा जा सकता है। यह बोलियों के लिए सबसे अधिक उपयोगी होती है, क्योंकि बोली हमेशा उच्चारण पर ही आधारित होती है और अन्य किसी लिपि में इसके जैसे उच्चारण नहीं होते हैं। इस लिपि में हिन्दी, नेपाली, मराठी, संस्कृत, पालि, नेपाल भाषा, कश्मीरी, भोजपुरी, कोंकणी, मैथिली, छत्तीसगढ़ी आदि भाषाओं को लिखा जाता है।

तथ्य
  • अन्य लिपियों से अलग यह उच्चारण पर आधारित है। इसका अर्थ यह है कि आप जो उच्चारण करते हो उसे इस लिपि के द्वारा लिख सकते हो।
  • इसमें स्वर और व्यंजन को अलग अलग रखा गया है। इससे कोई भी आसानी से स्वर और मात्रा को पहचान सकता है।
  • इसमें व्यंजन को भी कई तरह से श्रेणियों में रखा गया है, जो उच्चारण के अनुसार है। इससे पढ़ने और इसे सीखने में भी आसानी होती है।

उद्धरण[सम्पादन]

जय नागरी
- पण्डित गौरीदत्त
भजु गोविन्द हरे हरे
भाई भजु गोविन्द हरे हरे।
देवनागरी हित कुछ धन दो,
दूध न देगा धरे-धरे॥
- पण्डित गौरीदत्त
  • हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है।
आचार्य विनोबा भावे
  • सभी भारतीय भाषाओं के लिए देवनागरी का प्रयोग हो, इससे राष्ट्रीय एकता और अन्तरराष्ट्रीय सद्भाव लाने में सहायता मिलेगी।
आचार्य विनोबा भावे
  • देवनागरी किसी भी लिपि की तुलना में अधिक वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित लिपि है।
सर विलियम जोन्स
  • मानव मस्तिष्क से निकली हुई वर्णमालाओं में नागरी सबसे अधिक पूर्ण वर्णमाला है।
जान क्राइस्ट
  • उर्दू लिखने के लिये देवनागरी लिपि अपनाने से उर्दू उत्कर्ष को प्राप्त होगी।
खुशवन्त सिंह
  • देवनागरी वर्णमाला, भाषाविज्ञान में ध्वन्यात्मक परिशुद्धता का एक शानदार स्मारक है।
मोहन लाल विद्यार्थी - Indian Culture Through the Ages, p. 61
  • एक सर्वमान्य लिपि स्वीकार करने से भारत की विभिन्न भाषाओं में जो ज्ञान का भंडार भरा है उसे प्राप्त करने का एक साधारण व्यक्ति को सहज ही अवसर प्राप्त होगा। हमारे लिए यदि कोई सर्व-मान्य लिपि स्वीकार करना संभव है तो वह देवनागरी है।
एम.सी.छागला
  • प्राचीन भारत के महत्तम उपलब्धियों में से एक उसकी विलक्षण वर्णमाला है जिसमें प्रथम स्वर आते हैं और फिर व्यंजन जो सभी उत्पत्ति क्रम के अनुसार अत्यंत वैज्ञानिक ढंग से वर्गीकृत किये गए हैं। इस वर्णमाला का अविचारित रूप से वर्गीकृत तथा अपर्याप्त रोमन वर्णमाला से, जो तीन हजार वर्षों से क्रमशः विकसित हो रही थी, पर्याप्त अंतर है।
ए एल बाशम, "द वंडर दैट वाज इंडिया" के लेखक और इतिहासविद्
  • हिन्दुओं के अलावा कोई भी राष्ट्र अभी तक ध्वनिविज्ञान की इतनी उत्तम प्रणाली की खोज नहीं कर सका है। -- प्रो० विल्सन
  • संस्कृत के व्यंजनों का विन्यास, मानव प्रतिभा का अद्वितीय उदाहरण है। -- प्रो० थॉम्पसन
देवनागरी ध्वनिशास्त्र की दृष्टि से अत्यन्त वैज्ञानिक लिपि है।
रविशंकर शुक्ल
हमारी नागरी दुनिया की सबसे अधिक वैज्ञानिक लिपि है।
राहुल सांकृत्यायन
समस्त भारतीय भाषाओं के लिए यदि कोई एक लिपि आवश्यक हो तो वह देवनागरी ही हो सकती है।
(जस्टिस) कृष्णस्वामी अय्यर
हिंदी, देवनागरी लिपि में ही फल-फूल सकती है। यह महज नारा नहीं है, बल्कि इसके समर्थन में तथ्यपरक बातें हैं।
गर्भनाल पत्रिका[१]
देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता स्वयं सिद्ध है।
- महावीर प्रसाद द्विवेदी
बँगला वर्णमाला की जाँच से मालूम होता है कि देवनागरी लिपि से निकली है और इसी का सीधा सादा रूप है।
- रमेशचंद्र दत्त
हिंदुस्तान के लिये देवनागरी लिपि का ही व्यवहार होना चाहिए, रोमन लिपि का व्यवहार यहाँ हो ही नहीं सकता।
- महात्मा गाँधी
भारतवर्ष के लिये देवनागरी साधारण लिपि हो सकती है और हिंदी भाषा ही सर्वसाधारण की भाषा होने के उपयुक्त है।
- न्यायमूर्ति शारदाचरण मित्र
हमारी देवनागरी इस देश की ही नहीं समस्त संसार की लिपियों में सबसे अधिक वैज्ञानिक है।
- सेठ गोविन्ददास
राष्ट्रीय एकता के लिये हमें प्रांतीयता की भावना त्यागकर सभी प्रांतीय भाषाओं के लिए एक लिपि देवनागरी अपना लेनी चाहिये।
- न्यायमूर्ति शारदाचरण मित्र
अंग्रेज़ी के एक मनोभाषाविद ने हिंदी को हटाने की बहुत ही चालाक रणनीति सुझाई है और वह रणनीति पिछले दरवाज़े से हिंदी के अधिकांश अख़बारों में काम करने लगी है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दलालों ने, अख़बारों को यह स्वीकारने के लिए राज़ी कर लिया है कि इसकी `नागरी-लिपि` को बदल कर, 'रोमन' करने का अभियान छेड़ दीजिए और वे अब तन-मन और धन के साथ इस तरफ़ कूच कर रहे हैं। उन्होंने इस अभियान को अपना प्राथमिक एजेंडा बना लिया है। क्यों कि इस देश में, बहुराष्ट्रीय-निगमों की महाविजय, सायबर युग में `रोमन-लिपि` की पीठ पर सवार होकर ही बहुत जल्दी संभव हो सकती है।
- प्रभ जोशी, 'हिन्दी की हत्या के विरुद्ध' नामक लेख में, २०१९

इन्हें भी देखें[सम्पादन]

सन्दर्भ[सम्पादन]