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लिपि

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लिपि या लेखन प्रणाली का अर्थ होता है किसी भी भाषा की लिखावट या लिखने का ढंग। ध्वनियों को लिखने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, वही लिपि कहलाती है। लिपि और भाषा दो अलग अलग चीज़ें होती हैं। भाषा वो चीज़ होती है जो बोली जाती है, लिखने को तो उसे किसी भी लिपि में लिख सकते हैं।

उद्धरण

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  • नमो बंभीए लिबिए -- भगवतीसूत्र का मंगलाचरण
ब्राह्मी लिपि को नमस्कार है।
  • न करिष्यति यदि ब्रह्मा लिखितं चक्षुरुत्तमम्‌।
तदेयमस्य लोकस्य नाभविष्यत्‌ शुभाङ्गतिः ॥ -- नारद स्मृति
यदि ब्रह्मा 'लेखन' के रूप में उत्तम 'नेत्र' का विकास नहीं करते तो तीनों लोकों को शुभ गति नहीं प्राप्त होती।
  • गीती शीघ्री शिरःकम्पी तथा लिखित-पाठकः ।
अनर्थज्ञोऽल्पकण्ठश्च षडेते पाठकाधमाः ॥ -- पाणिनीय शिक्षा
गाकर पढ़ना, शीघ्रता से पढ़ना, पढ़ते हुए सिर हिलाना, लिखा हुआ पढ़ना, अर्थ न जानकर पढ़ना, और धीमा आवाज होना -- ये छे पाठक के दोष हैं।
इस श्लोक में पाठक के छः दोषों का विवेचन किया गया है, पर इसके साथ कहीं भी लेखक का वर्णन नहीं मिलता। इसलिए इनका विचार है कि लेखनक्रिया का बाद में विकास हुआ होगा।
  • लेखक का उद्देश्य सभ्यता द्वारा अपने आप को नष्ट करने से बचाना है। -- अल्बर्ट कैमस
  • लिपि का विकास, सभ्यता के विकास में मील का पत्थर है।

सन्दर्भ

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इन्हें भी देखें

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