स्वदेशी

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स्वदेशी का अर्थ है, ऐसी वस्तुएँ जो अपने देश में बनीं हों, अर्थात स्थानीय वस्तुएँ।

उद्धरण[सम्पादन]

  • चहहु जु सांचो निज कल्यान,
तो सब मिलि भारत संतान,
जपो निरंतर एक जबान,
हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान। -- प्रताप नारायण मिश्र
  • विदेशी वस्त्र हम क्यों ले रहे हैं?
वृथा धन देश का क्यों दे रहे हैं?
न सूझै है अरे भारत भिखारी!
गई है हाय तेरी बुद्धि मारी!
हजारों लोग भूखों मर रहे हैं;
पड़े वे आज या कल कर रहे हैं।
इधर तू मंजु मलमल ढ़ूढता है!
न इससे और बढ़कर मूढ़ता है। -- जुलाई, सन १९०३ की सरस्वती पत्रिका में 'स्वदेशी वस्त्र का स्वीकार' शीर्षक से छपी कविता। यह कविता सम्पादक महावीर प्रसाद द्विवेदी की रचना थी।
  • बोलो भैय्या दे दे तान, हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान । -- प्रताप नारायण मिश्र
  • किसी प्रकार का शारीरिक बलप्रयोग न करके राजानुगत्य अस्वीकार न करते हुए तथा किसी नए कानून के लिए प्रार्थना न करते हुए भी हम अपनी पूर्वसम्पदा लौटा सकते हैं। जहाँ स्थिति चरम में पहुँच जाए, वहाँ एकमात्र नहीं तो सबसे अधिक कारगर अस्त्र नैतिक शत्रुता होगी। इस अस्त्र को अपनाना कोई अपराध नहीं है। आइए हम सब लोग यह संकल्प करें कि विदेशी वस्तु नहीं खरीदेंगे। हमें हर समय यह स्मरण रखना चाहिए कि भारत की उन्नति भारतीयों के द्वारा ही सम्भव है। -- भोलानाथ चन्द्र , 1874 में , शम्भुचन्द्र मुखोपाध्याय द्वारा प्रवर्तित "मुखर्जीज़ मैग्जीन" में
  • यह (स्वदेशी) वह भावना है जो हमें आसपास की चीजों तथा सेवाओं का उपयोग करने को प्रेरित करती है तथा अधिक दूरदराज़ की चीजों/सेवाओं पर प्रतिबंध का बोध कराती है। -- महात्मा गांधी
  • स्वदेशी का तात्पर्य उस भावना से है जो हमें अपने आसपास में निर्मित वस्तुओ के उपयोग तक से है। यह बाहर की वस्तुओ के प्रयोग का निषेध करता है। स्वदेशी एक धर्म है, एक कर्तव्य है जो हमें पैतृक धर्म की सीमा में अनुबंधित करता है। अगर इसमें कोई दोष है तो इसे सुधारना चाहिए। राजनीति के क्षेत्र में केवल स्वदेशी संस्थाओ के प्रयोग से है तथा उसमे जो खामियां हैं उसे हटाकर उसके उपयोग से है। आर्थिक क्षेत्र में उन्ही वस्तुओ के उपयोग से है जो आसपास में निर्मित होती हैं,तथा पडोस में बनने वाली वस्तुओ की गुणवत्ता में सुधार व उपयोग से है। -- महात्मा गांधी
  • स्वदेशी हमारे अंदर की वह भावना है जो हमें आस-पास के परिवेश के उपयोग और दूरस्थ के बहिष्कार के लिए प्रेरित करती है। जहां तक धर्म की बात है, परिभाषा की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए मुझे स्वयं को अपने पूर्वजों के धर्म तक ही सीमित रखना चाहिए।’ अर्थशास्त्र के संदर्भ में वे कहते हैं, ‘मुझे केवल उन चीजों का उपयोग करना चाहिए, जो मेरे निकटतम पड़ोसियों द्वारा उत्पादित की जाती है और उनको स्वीकार्य बनाने हेतु कुशल एवं पूर्ण बनाने का प्रयास करना चाहिए।’ तब गांधी जी ने कहा था, ‘मैं स्वदेशी को बदले की दृष्टि से किए गए बायकाट के रूप में नहीं मानता। मैं उसे एक धार्मिक सिद्धांत मानता हूं, जिसका पालन सबको करना चाहिए, स्वदेशी में जहां परित्याग निहित है, वहीं इसमें सृजन भी निहित है। -- महात्मा गांधी
  • स्वदेशी-विचार का पालन करने वाला हमेशा अपने आस - पास निरीक्षण करता है और जहां-जहां पड़ोसियों की सेवा की जा सकती है, यानी जहां उनके हाथ का तैयार किया हुआ जरूरत का माल होगा वहाँ बाहर का माल छोड़कर उसे लेगा। फिर भले ही स्वदेशी चीज पहले-पहल महंगी और घटिया दर्जे की हो। स्वदेशी को अपनाने वाला उसे सुधारने की कोशिश करेगा; स्वदेशी चीज खराब है इसलिए कायर बनकर परदेशी का इस्तेमाल करने नहीं लग जाएगा। -- महात्मा गांधी
  • मैं भारत के जरूरतमन्द करोड़ों निर्धनों द्वारा काते और बुने गए कपड़े को खरीदने से इंकार करना और विदेशी कपड़े को खरीदना पाप समझता हूँ, भले ही वह भारत के हाथ से कते कपड़े की तुलना में कितने ही बढ़िया किस्म का हो। स्वदेशी के सिद्धान्त का पालन करने पर यह कर्त्तव्य हो जाता है कि ऐसे पड़ोसियों की खोज होनी चाहिए जो हमारी आवश्यकता की वस्तुएं हमें दे सकें और यदि वे किन्हीं वस्तुओं का उत्पादन करने में असमर्थ हों तो उन्हें उपेक्षित प्रशिक्षण दें। ... यदि ऐसा होगा तो भारत का प्रत्येक गांव लगभग स्वावलंबी और स्वत:पूर्ण हो जाएगा और वह दूसरे गांवों के साथ उन्हीं आवश्यक वस्तुओं की अदला-बदली करेगा जिनका उत्पादन संभव नहीं है। शिक्षा के मामले में भी स्वदेशी की भावना के घातक त्याग से देश को बहुत अधिक हानि पहुंची है। हमारे शिक्षित वर्ग की शिक्षा विदेशी भाषा के माध्यम से हुई है। इसका परिणाम यह हुआ है कि वे आम जनता के साथ तादात्म्य नहीं कर पाए। वे आम-जनता का प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं, लेकिन उसमें वे सफल नहीं हो पाते। आम लोग उसे उसी अपरिचय की दृष्टि से देखते हैं जिस दृष्टि से वे अंग्रेज अधिकारियों को देखते थे। दिल से जुड़ाव तो स्वदेश में स्वदेशी भाषा से ली गयी शिक्षा में है। -- महात्मा गांधी
  • 'वास्तव में स्वदेशी ही एक ऐसा सिद्धान्त हैं जिसमें मानवता व प्रेम समाहित स्वदेशी प्रेम और मातृभूमि की सेवा में है। मानव की सेवा हम अपने ज्ञान तथा जिस संसार में हम रहते हैं के दायित्व से अलग नहीं है। इसका मतलब है कि हम जिसे जानते हैं तथा पड़ोसी की सेवा के द्वारा देशवासियों की सेवा कर रहे हैं सही मायने में यह मानवतावाद या मानवता से प्रेम के अलावा और कुछ नहीं है।

'स्वदेशी नफ़रत का एक पंथ नहीं है, यह एक आत्म-कम सेवा का मार्ग है जिसकी पृष्ठभूमि में अहिंसा व प्रेम है ।-- महात्मा गांधी

  • स्वदेशी अर्थव्यवस्था के चार लक्षण है- जिसमें हेरफेर नहीं बल्कि मुक्त प्रतिस्पर्धा हो, जहां आन्दोलन का लक्ष्य समता और समानता हो, जहां प्रकृति का दोहन किया जाता है लेकिन उसे नष्ट नहीं किया जाता है, और जहां स्व-रोजगार है न कि मजदूरी वाला रोजगार। -- दत्तोपन्त ठेंगड़ी
  • दुनिया में कोई देश गुलामी की निशानियों को सँजो कर नहीं रखता। आज विदेशी कंपनियों की लूट बंद करने का उपाय है विदेशी वस्तुओं का त्याग। -- राजीव दीक्षित
  • अगर आप विदेशियों पर निर्भर हैं, प्रावलम्बी हैं, तो आप दुनिया में कोई ताकत हासिल नहीं कर सकते। -- राजीव दीक्षित
  • केवल स्वदेशी नीतियों से ही देश फिर से सोने की चिड़िया बन सकता है। -- राजीव दीक्षित
  • मेरा हो मन स्वदेशी, मेरा हो तन स्वदेशी, मर जाऊं तो भी मेरा होवे कफ़न स्वदेशी। -- राजीव दीक्षित
  • जब भारत में कोई विदेशी कम्पनी नही थी तब भारत सोने की चिड़िया था। -- राजीव दीक्षित
  • दुनिया में अगर कोई व्यक्ति बेसिक रिसर्च करना चाहे, वो तब तक सम्भव नहीं है जब तक मातृभाषा में चिन्तन न करे। -- राजीव दीक्षित
  • भारत को अंग्रेजों के कानून रद्द करके भारत की व्यवस्थाओं और अपने देश के अनुसार कानून बनाने चाहिए। -- राजीव दीक्षित
  • कोरोना ने हमें लोकल मैन्यूफैक्चरिंग, लोकल सप्लाई चेन और लोकल मार्केटिंग का भी मतलब समझा दिया है। लोकल ने ही हमारी डिमांड पूरी की है। हमें इस लोकल ने ही बचाया है। लोकल सिर्फ जरूरत नहीं, बल्कि हम सबकी जिम्मेदारी है। -- नरेन्द्र मोदी,कोरोना काल में पांचवीं बार राष्ट्र के नाम संबोधन में (२०२०)
  • समय ने हमें सिखाया है कि लोकल को हमें अपना जीवन मंत्र बनाना ही होगा। आपको जो आज ग्लोबल ब्रांड लगते हैं, वो भी कभी ऐसे ही लोकल थे। जब वहां के लोगों ने उनका इस्तेमाल और प्रचार शुरू किया। उनकी ब्रांडिंग की, उन पर गर्व किया तो वे प्रोडक्ट्स लोकल से ग्लोबल बन गए। इसलिए, आज से हर भारतवासी को अपने लोकल के लिए वोकल बनना है। न सिर्फ लोकल प्रोडक्ट्स खरीदने हैं, बल्कि उनका गर्व से प्रचार भी करना है। मुझे पूरा विश्वास है कि हमारा देश ऐसा कर सकता है। आपके प्रयासों ने तो हर बार आपके प्रति मेरी श्रद्धा को और बढ़ाया है। ... मैं गर्व के साथ एक बात महसूस करता हूं, याद करता हूं। जब मैंने आपसे, देश से खादी खरीदने का आग्रह किया था। तब ये भी कहा था कि देश के हैंडलूम वर्कर्स को सपोर्ट करें। आप देखिए, बहुत ही कम समय में खादी और हैंडलूम, दोनों की ही डिमांड और बिक्री रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। इतना ही नहीं, उसे आपने बड़ा ब्रांड भी बना दिया। बहुत छोटा सा प्रयास था, लेकिन परिणाम मिला, बहुत अच्छा परिणाम मिला। -- नरेन्द्र मोदी,कोरोना काल में पांचवीं बार राष्ट्र के नाम संबोधन में (२०२०)
  • जब टेक्नोलॉजी और ट्रेडिशन मिलते हैं तो क्या कमाल होता है। ये पूरी दुनिया ने जी-२० क्राफ्ट बजार में देखा है। समिट में हिस्सा लेने के लिए आए विदेशी मेहमानों को गिफ्ट में विश्वकर्मा साथियों का बनाया सामान ही दिया गया था। लोकल के लिए वोकल का समर्पण पूरे देश का दायित्व है। -- नरेन्द्र मोदी, सितम्बर २०२३ में 'यशोभूमि' की सौगात देने के बाद अपने संबोधन में
  • 2 अक्टूबर को बापू की जयंती के मौके पर इस अभियान को और तेज करने का संकल्प लेना है। खादी, हैंडलूम, हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट के सामान जरूर खरीदें। -- नरेन्द्र मोदी, २५ सितम्बर २०२३ को 'मन की बात' में

स्वदेशी आन्दोलन के सम्बन्धित नारे[सम्पादन]

स्वदेशी अपनाओ देश बचाओ ।

स्वदेशी अपनाओ देश को समृद्ध बनाये ।

आओ करें प्रण, भारत बने आत्मनिर्भर ।

आत्मनिर्भरता को बढ़ाये, भारत को स्वदेशी बनाये ।

आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना, भारत को स्वदेशी बनाना ।

स्वदेशी अपनाये भारत को विकसित बनाये ।

स्वदेशी अपनाये भारत की अलग पहचान बनाये ।

स्वदेशी अपनाना है, भारत की पुरानी पहचान दिलाना है ।

भारत का हित, स्वदेशी में निहित ।

जन जन का ये नारा है, अब से सिर्फ स्वदेशी अपनाना है ।

हम सबने ठाना है, स्वदेशी को अपनाना है ।

जन जन की है पुकार, स्वदेशी पर होगा हमारा अधिकार ।

आओ सब मिलकर स्वदेशी अपनाये ।

स्वदेशी अपनाकर पूरे विश्व में भारत का मान बढ़ाये ।

भारत हमारी माता है इसकी शान में हम स्वदेशी अपनायेगे ।

स्वदेशी अपनाकर मनाकर भारत माँ की पूरे विश्व में पहचान बनायेगे ।

इन्हें भी देखें[सम्पादन]

सन्दर्भ[सम्पादन]