स्वदेशी
स्वदेशी का अर्थ है, ऐसी वस्तुएँ जो अपने देश में बनीं हों, अर्थात स्थानीय वस्तुएँ।
उद्धरण
[सम्पादित करें]- कोई कितना ही करे परन्तु जो स्वदेशी राज्य होता है, वह सर्वोपरि उत्तम होता है। -- स्वामी दयानन्द सरस्वती
- चहहु जु सांचो निज कल्यान,
- तो सब मिलि भारत संतान,
- जपो निरंतर एक जबान,
- हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान। -- प्रताप नारायण मिश्र
- विदेशी वस्त्र हम क्यों ले रहे हैं?
- वृथा धन देश का क्यों दे रहे हैं?
- न सूझै है अरे भारत भिखारी!
- गई है हाय तेरी बुद्धि मारी!
- हजारों लोग भूखों मर रहे हैं;
- पड़े वे आज या कल कर रहे हैं।
- इधर तू मंजु मलमल ढ़ूढता है!
- न इससे और बढ़कर मूढ़ता है। -- जुलाई, सन १९०३ की सरस्वती पत्रिका में 'स्वदेशी वस्त्र का स्वीकार' शीर्षक से छपी कविता। यह कविता सम्पादक महावीर प्रसाद द्विवेदी की रचना थी।
- बोलो भैय्या दे दे तान, हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान । -- प्रताप नारायण मिश्र
- किसी प्रकार का शारीरिक बलप्रयोग न करके राजानुगत्य अस्वीकार न करते हुए तथा किसी नए कानून के लिए प्रार्थना न करते हुए भी हम अपनी पूर्वसम्पदा लौटा सकते हैं। जहाँ स्थिति चरम में पहुँच जाए, वहाँ एकमात्र नहीं तो सबसे अधिक कारगर अस्त्र नैतिक शत्रुता होगी। इस अस्त्र को अपनाना कोई अपराध नहीं है। आइए हम सब लोग यह संकल्प करें कि विदेशी वस्तु नहीं खरीदेंगे। हमें हर समय यह स्मरण रखना चाहिए कि भारत की उन्नति भारतीयों के द्वारा ही सम्भव है। -- भोलानाथ चन्द्र , 1874 में , शम्भुचन्द्र मुखोपाध्याय द्वारा प्रवर्तित "मुखर्जीज़ मैग्जीन" में
- यह (स्वदेशी) वह भावना है जो हमें आसपास की चीजों तथा सेवाओं का उपयोग करने को प्रेरित करती है तथा अधिक दूरदराज़ की चीजों/सेवाओं पर प्रतिबंध का बोध कराती है। -- महात्मा गांधी
- स्वदेशी का तात्पर्य उस भावना से है जो हमें अपने आसपास में निर्मित वस्तुओ के उपयोग तक से है। यह बाहर की वस्तुओ के प्रयोग का निषेध करता है। स्वदेशी एक धर्म है, एक कर्तव्य है जो हमें पैतृक धर्म की सीमा में अनुबंधित करता है। अगर इसमें कोई दोष है तो इसे सुधारना चाहिए। राजनीति के क्षेत्र में केवल स्वदेशी संस्थाओ के प्रयोग से है तथा उसमे जो खामियां हैं उसे हटाकर उसके उपयोग से है। आर्थिक क्षेत्र में उन्ही वस्तुओ के उपयोग से है जो आसपास में निर्मित होती हैं,तथा पडोस में बनने वाली वस्तुओ की गुणवत्ता में सुधार व उपयोग से है। -- महात्मा गांधी
- स्वदेशी हमारे अंदर की वह भावना है जो हमें आस-पास के परिवेश के उपयोग और दूरस्थ के बहिष्कार के लिए प्रेरित करती है। जहां तक धर्म की बात है, परिभाषा की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए मुझे स्वयं को अपने पूर्वजों के धर्म तक ही सीमित रखना चाहिए।’ अर्थशास्त्र के संदर्भ में वे कहते हैं, ‘मुझे केवल उन चीजों का उपयोग करना चाहिए, जो मेरे निकटतम पड़ोसियों द्वारा उत्पादित की जाती है और उनको स्वीकार्य बनाने हेतु कुशल एवं पूर्ण बनाने का प्रयास करना चाहिए।’ तब गांधी जी ने कहा था, ‘मैं स्वदेशी को बदले की दृष्टि से किए गए बायकाट के रूप में नहीं मानता। मैं उसे एक धार्मिक सिद्धांत मानता हूं, जिसका पालन सबको करना चाहिए, स्वदेशी में जहां परित्याग निहित है, वहीं इसमें सृजन भी निहित है। -- महात्मा गांधी
- स्वदेशी-विचार का पालन करने वाला हमेशा अपने आस - पास निरीक्षण करता है और जहां-जहां पड़ोसियों की सेवा की जा सकती है, यानी जहां उनके हाथ का तैयार किया हुआ जरूरत का माल होगा वहाँ बाहर का माल छोड़कर उसे लेगा। फिर भले ही स्वदेशी चीज पहले-पहल महंगी और घटिया दर्जे की हो। स्वदेशी को अपनाने वाला उसे सुधारने की कोशिश करेगा; स्वदेशी चीज खराब है इसलिए कायर बनकर परदेशी का इस्तेमाल करने नहीं लग जाएगा। -- महात्मा गांधी
- मैं भारत के जरूरतमन्द करोड़ों निर्धनों द्वारा काते और बुने गए कपड़े को खरीदने से इंकार करना और विदेशी कपड़े को खरीदना पाप समझता हूँ, भले ही वह भारत के हाथ से कते कपड़े की तुलना में कितने ही बढ़िया किस्म का हो। स्वदेशी के सिद्धान्त का पालन करने पर यह कर्त्तव्य हो जाता है कि ऐसे पड़ोसियों की खोज होनी चाहिए जो हमारी आवश्यकता की वस्तुएं हमें दे सकें और यदि वे किन्हीं वस्तुओं का उत्पादन करने में असमर्थ हों तो उन्हें उपेक्षित प्रशिक्षण दें। ... यदि ऐसा होगा तो भारत का प्रत्येक गांव लगभग स्वावलंबी और स्वत:पूर्ण हो जाएगा और वह दूसरे गांवों के साथ उन्हीं आवश्यक वस्तुओं की अदला-बदली करेगा जिनका उत्पादन संभव नहीं है। शिक्षा के मामले में भी स्वदेशी की भावना के घातक त्याग से देश को बहुत अधिक हानि पहुंची है। हमारे शिक्षित वर्ग की शिक्षा विदेशी भाषा के माध्यम से हुई है। इसका परिणाम यह हुआ है कि वे आम जनता के साथ तादात्म्य नहीं कर पाए। वे आम-जनता का प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं, लेकिन उसमें वे सफल नहीं हो पाते। आम लोग उसे उसी अपरिचय की दृष्टि से देखते हैं जिस दृष्टि से वे अंग्रेज अधिकारियों को देखते थे। दिल से जुड़ाव तो स्वदेश में स्वदेशी भाषा से ली गयी शिक्षा में है। -- महात्मा गांधी
- वास्तव में स्वदेशी ही एक ऐसा सिद्धान्त हैं जिसमें मानवता व प्रेम समाहित स्वदेशी प्रेम और मातृभूमि की सेवा में है। मानव की सेवा हम अपने ज्ञान तथा जिस संसार में हम रहते हैं के दायित्व से अलग नहीं है। इसका मतलब है कि हम जिसे जानते हैं तथा पड़ोसी की सेवा के द्वारा देशवासियों की सेवा कर रहे हैं सही मायने में यह मानवतावाद या मानवता से प्रेम के अलावा और कुछ नहीं है।
- स्वदेशी नफ़रत का एक पंथ नहीं है, यह एक आत्म-कम सेवा का मार्ग है जिसकी पृष्ठभूमि में अहिंसा व प्रेम है । -- महात्मा गांधी
- मेरा राष्ट्रवाद उतना ही व्यापक है जितना कि स्वदेशी। -- महात्मा गांधी[१]
- स्वदेशी अर्थव्यवस्था के चार लक्षण है- जिसमें हेरफेर नहीं बल्कि मुक्त प्रतिस्पर्धा हो, जहां आन्दोलन का लक्ष्य समता और समानता हो, जहां प्रकृति का दोहन किया जाता है लेकिन उसे नष्ट नहीं किया जाता है, और जहां स्व-रोजगार है न कि मजदूरी वाला रोजगार। -- दत्तोपन्त ठेंगड़ी
- दुनिया में कोई देश गुलामी की निशानियों को सँजो कर नहीं रखता। आज विदेशी कंपनियों की लूट बंद करने का उपाय है विदेशी वस्तुओं का त्याग। -- राजीव दीक्षित
- अगर आप विदेशियों पर निर्भर हैं, प्रावलम्बी हैं, तो आप दुनिया में कोई ताकत हासिल नहीं कर सकते। -- राजीव दीक्षित
- केवल स्वदेशी नीतियों से ही देश फिर से सोने की चिड़िया बन सकता है। -- राजीव दीक्षित
- मेरा हो मन स्वदेशी, मेरा हो तन स्वदेशी, मर जाऊं तो भी मेरा होवे कफ़न स्वदेशी। -- राजीव दीक्षित
- जब भारत में कोई विदेशी कम्पनी नही थी तब भारत सोने की चिड़िया था। -- राजीव दीक्षित
- दुनिया में अगर कोई व्यक्ति बेसिक रिसर्च करना चाहे, वो तब तक सम्भव नहीं है जब तक मातृभाषा में चिन्तन न करे। -- राजीव दीक्षित
- भारत को अंग्रेजों के कानून रद्द करके भारत की व्यवस्थाओं और अपने देश के अनुसार कानून बनाने चाहिए। -- राजीव दीक्षित
- कोरोना ने हमें लोकल मैन्यूफैक्चरिंग, लोकल सप्लाई चेन और लोकल मार्केटिंग का भी मतलब समझा दिया है। लोकल ने ही हमारी डिमांड पूरी की है। हमें इस लोकल ने ही बचाया है। लोकल सिर्फ जरूरत नहीं, बल्कि हम सबकी जिम्मेदारी है। -- नरेन्द्र मोदी,कोरोना काल में पांचवीं बार राष्ट्र के नाम संबोधन में (२०२०)
- समय ने हमें सिखाया है कि लोकल को हमें अपना जीवन मंत्र बनाना ही होगा। आपको जो आज ग्लोबल ब्रांड लगते हैं, वो भी कभी ऐसे ही लोकल थे। जब वहां के लोगों ने उनका इस्तेमाल और प्रचार शुरू किया। उनकी ब्रांडिंग की, उन पर गर्व किया तो वे प्रोडक्ट्स लोकल से ग्लोबल बन गए। इसलिए, आज से हर भारतवासी को अपने लोकल के लिए वोकल बनना है। न सिर्फ लोकल प्रोडक्ट्स खरीदने हैं, बल्कि उनका गर्व से प्रचार भी करना है। मुझे पूरा विश्वास है कि हमारा देश ऐसा कर सकता है। आपके प्रयासों ने तो हर बार आपके प्रति मेरी श्रद्धा को और बढ़ाया है। ... मैं गर्व के साथ एक बात महसूस करता हूं, याद करता हूं। जब मैंने आपसे, देश से खादी खरीदने का आग्रह किया था। तब ये भी कहा था कि देश के हैंडलूम वर्कर्स को सपोर्ट करें। आप देखिए, बहुत ही कम समय में खादी और हैंडलूम, दोनों की ही डिमांड और बिक्री रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। इतना ही नहीं, उसे आपने बड़ा ब्रांड भी बना दिया। बहुत छोटा सा प्रयास था, लेकिन परिणाम मिला, बहुत अच्छा परिणाम मिला। -- नरेन्द्र मोदी,कोरोना काल में पांचवीं बार राष्ट्र के नाम संबोधन में (२०२०)
- जब टेक्नोलॉजी और ट्रेडिशन मिलते हैं तो क्या कमाल होता है। ये पूरी दुनिया ने जी-२० क्राफ्ट बजार में देखा है। समिट में हिस्सा लेने के लिए आए विदेशी मेहमानों को गिफ्ट में विश्वकर्मा साथियों का बनाया सामान ही दिया गया था। लोकल के लिए वोकल का समर्पण पूरे देश का दायित्व है। -- नरेन्द्र मोदी, सितम्बर २०२३ में 'यशोभूमि' की सौगात देने के बाद अपने संबोधन में
- 2 अक्टूबर को बापू की जयंती के मौके पर इस अभियान को और तेज करने का संकल्प लेना है। खादी, हैंडलूम, हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट के सामान जरूर खरीदें। -- नरेन्द्र मोदी, २५ सितम्बर २०२३ को 'मन की बात' में
- वैश्वीकरण का झूठा नैरेटिव अब ध्वस्त हुआ । अब स्वदेशी ही बनेगा मजबूती का आधार। जिन सेक्टरों में हमने स्वदेशी को अपनाया और बढ़ाया उसमें हम आत्मनिर्भर बन गए। -- स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह- संयोजक एवं अर्थशास्त्री प्रो. अश्विनी महाजन
- जहाँ भी हमने स्वदेशी और आत्मनिर्भरता के लिए प्रयास किए, हम एक वैश्विक शक्ति बने, चाहे वह अंतरिक्ष हो, रक्षा भुगतान प्रणाली हो या दूरसंचार। हमें भारत को वास्तव में आत्मनिर्भर बनाने और विदेशी देशों पर निर्भरता से मुक्त करने के लिए ऐसे और प्रयास करने होंगे। -- अश्विनी महाजन (२५ सितम्बर २०२५)
- स्वतंत्रता को जैसी स्वदेशी के मन्त्र से ताकत मिली, वैसे ही देश की समृद्धि को भी स्वदेशी के मन्त्र से ही शक्ति मिलेगी। -- नरेन्द्र मोदी (सितम्बर २०२५)
स्वदेशी आन्दोलन के सम्बन्धित नारे
[सम्पादित करें]स्वदेशी अपनाओ देश बचाओ ।
स्वदेशी अपनाओ देश को समृद्ध बनाये ।
आओ करें प्रण, भारत बने आत्मनिर्भर ।
आत्मनिर्भरता को बढ़ाये, भारत को स्वदेशी बनाये ।
आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना, भारत को स्वदेशी बनाना ।
स्वदेशी अपनाये भारत को विकसित बनाये ।
स्वदेशी अपनाये भारत की अलग पहचान बनाये ।
स्वदेशी अपनाना है, भारत की पुरानी पहचान दिलाना है ।
भारत का हित, स्वदेशी में निहित ।
जन जन का ये नारा है, अब से सिर्फ स्वदेशी अपनाना है ।
हम सबने ठाना है, स्वदेशी को अपनाना है ।
जन जन की है पुकार, स्वदेशी पर होगा हमारा अधिकार ।
आओ सब मिलकर स्वदेशी अपनाये ।
स्वदेशी अपनाकर पूरे विश्व में भारत का मान बढ़ाये ।
भारत हमारी माता है इसकी शान में हम स्वदेशी अपनायेगे ।
स्वदेशी अपनाकर मनाकर भारत माँ की पूरे विश्व में पहचान बनायेगे ।
स्वदेशी गीत
[सम्पादित करें]गीत क्र. 1
[सम्पादित करें]मेरा हो मन स्वदेशी, मेरा हो तन स्वदेशी मेरा हो............
मन स्वदेशी, मेरा हो तन स्वदेशी !
मर जाऊं तो भी मेरा -होए कफन स्वदेशी !!
1. चट्टान टूट जाए, तूफान घुमड़ के आए !
गर मौत भी पुकारे ,तो भी लक्ष्य हो स्वदेशी !!
मेरा हो मन स्वदेशी, मेरा हो तन स्वदेशी...
2. जो गाँव में बना हो, और गाँव में खपा हो !
जो गाँव को हँसाए , जो गांव को बसाए !
वह काम है स्वदेशी ,वह नाम है स्वदेशी !!
मेरा हो मन स्वदेशी, मेरा हो तन स्वदेशी...
3. जो हाथ से बना हो, या गरीब से लिया हो ! जिसमें स्नेह भरा हो ,वह चीज है स्वदेशी !!
मेरा हो मन स्वदेशी, मेरा हो तन स्वदेशी...
4. मानव का धर्म क्या है , मानव का दर्द जाने !
जो करे मनुष्यता की ,रक्षा वही स्वदेशी !!
मेरा हो मन स्वदेशी, मेरा हो तन स्वदेशी...
5. करें शक्ति का विभाजन , मिटें पूँजी का ये शासन !
बने गाँव स्वावलम्बी , वह नीति है स्वदेशी !!
मेरा हो मन स्वदेशी, मेरा हो तन स्वदेशी ...
6. तन में बसन स्वदेशी, मन में लगन स्वदेशी ! फिर हो भवन - भवन में, विस्तार हो स्वदेशी !!
मेरा हो मन स्वदेशी, मेरा हो तन स्वदेशी,
मर जाऊं तो भी मेरा होए कफन स्वदेशी ।
गीत क्रमांक 2
[सम्पादित करें]मरें भी अगर तो स्वदेशी कफ़न हो! गीत।
जिएं तो बदन पर स्वदेशी वसन हो!
मरें भी अगर तो स्वदेशी कफ़न हो!
1. पराया सहारा है अपमान होना,
जरूरी है निज शान का ध्यान होना,
है वाजिब स्वदेशी पे कुर्बान होना,
इसी से है संभव समुत्थान होना,
लगन में स्वदेशी के हर मुर्दो ज़न हो!
मरे भी तो तन.....
2. निछावर स्वदेशी पे, कर मालओ-जर दो,
स्वदेशी से भारत का भंडार भर दो,
रहें चित्र-से, वह चकाचौंध कर दो,
दिखा पूर्वजों के लहू का असर दो,
स्वदेशी ही सज-धज, स्वदेशी चलन हो!
मरे भी तो....
3. चलो, इस तरफ़ अपना चरख़ा चला दो,
मनों सूत की ढेरियां तुम लगा दो,
बुनो इतने कपड़े, मिलों को छका दो,
जमा दो, स्वदेशी का सिक्का जमा दो,
स्वदेशी ही गुल, औ स्वदेशी चमन हो!
मरे भी तो....
4. करो प्रण कि आज़ाद होकर रहेंगे,
जहां में कि बरबाद होकर रहेंगे,
सितमगर ही या शाद होकर रहेंगे,
कि हम शादो-आबाद होकर रहेंगे,
स्वदेशी ही ‘अख़्तर’ स्वदेशी कथन हो। .
गीत क्रमांक 3
[सम्पादित करें]स्वदेश का प्यार।
जो भरा नहीं है भावों से,
जिसमें बहती रस धार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर हैं,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। । ध्रु।।
1.जो जीवित जोश जगा न सका,
उस जीवन में कुछ सार नहीं।
जो चल न सका संसार संग,
उसका होता संसार नहीं।
जिसने साहस को छोड़ दिया,
वह पहुंच सकेगा पार नहीं। ...
जो भरा नहीं है भावों से,
जिसमें बहती रस धार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर हैं,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
2. जिसकी मिट्टी में उगे-बढ़े,
पाया जिसमें दाना-पानी।
हैं मात-पिता बंधु जिसमें,
हम हैं जिसके राजा-रानी।
जिसने कि खजाने खोले हैं,
नव-रत्न दिये है लासानी।
जिस पर ज्ञानी भी मरते हैं,
जिस पर है दुनिया दीवानी।
उस पर है नहीं पसीजा जो,
क्या है वह भू पर भार नहीं। ...
वह हृदय नहीं है पत्थर हैं,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
3. निश्चित है, निस्संशय निश्चित,
है जान एक दिन जाने को।
है काल दीप जलता हर दम,
जल जाना है परवाने को।
है लज्जा की यह बात शत्रु,
आये आंखे दिखलाने को।
धिक्कार मर्दुमि को ऐसी,
लानत मर्दाने बाने को।
सब कुछ है अपने हाथों में,
क्या ढाल नहीं तलवार नहीं।.....
वह हृदय नहीं है पत्थर हैं,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
गीत 4
[सम्पादित करें]
(यह उद्यान स्वदेशी हो )
कलियां, सुमन, सुगन्धों वाला,
यह उद्यान स्वदेशी हो।
हर क्यारी, हर खेत स्वदेशी,
हर खलिहान स्वदेशी हो।।
तन-मन-धन की, जनजीवन की
प्रिय पहचान स्वदेशी हो।
मान स्वदेशी, आन स्वदेशी,
अपनी शान स्वदेशी हो।
वीर शहीदरों के सपनों का,
हर अभियान स्वदेशी हो।
एड़ी से चोटी तक सारा,
हिन्दुस्तान स्वदेशी हो।।1।।
अभिमन्यू सा चक्रव्यूह में,
मेरा भारत देश घिरा।
रथ को स्वार्थ के पथ रोकें,
कहां क्षितिज का स्वर्ण सिरा।।
सजे खड़े हैं द्रोण, कर्ण
और दुष्ट दुशासन, दुर्योधन।
कौन युधिष्ठिर, भीम, नकुल,
सहदेवों को दे उद्बोधन।।
जो अर्जुन का मोह मिटा दे,
वह भगवान स्वदेशी हो।
एड़ी से चोटी तक सारा, हिन्दुस्तान स्वदेशी हो ।।2।।
मन गिरवी है, तन गिरवी है,
गिरवी है हर श्वास यहां।
फाके को फाका की कहिए,
मत कहिए उपवास यहां।।
गांधी तेरी खादी रोती, देख दशा इस देश की।
राष्ट्र अस्मिता सिया सरीखी, बन्दी है लंकेश की। जो लंका में आग लगा दे, वह हनुमान स्वदेशी हो। एड़ी से चोटी तक सारा, हिन्दुस्तान स्वदेशी हो।।3।।
‘राजनीति’ को देखो, इंग्लिश बोल रही फर्राटे से।
‘संस्कृति’ दिल बहलाती है, टी.वी. के सन्नाटे से।।
संस्कारों का किया दाखिला, ‘कान्वेंट’ में गर्व से।
जाने क्या हो गया, मनाने लगे, पतन भी पर्व से।।
आजादी और लोकतंत्र की,
हर संतान स्वदेशी हो।
एड़ी से चोटी तक सारा, हिन्दुस्तान स्वदेशी हो।।4।।
भारत माता के मंदिर में, बहुत प्रदूषण बढ़ा दिया।
लोकतंत्र के शव पर, गांधीवाद काट कर चढ़ा दिया।।
समझौतों की बात यहां पर,
होती है हत्यारों से।
भारत की कुछ गलियां गूंजे,
परदेसी जयकारों से।।
बलिदानों की इस धरती पर,
मां का गान स्वदेशी हो।
एड़ी से चोटी तक सारा, हिन्दुस्तान स्वदेशी हो।।5।।
सोने वालों सोना छोड़ो,
जागो सोना, सोना लो।
आज विदेशों के कब्जे से,
वतन का कोना-कोना लो।
वापस लो, व्यापार गया जो,
वापस स्वाभिमान लो।
फिर भारत को विश्व गुरू करना है,
मन में ठान लो।
उन्नतियों के इन गीतों का
हर सोपान स्वदेशी हो।
एड़ी से चोटी तक सारा, हिन्दुस्तान स्वदेशी हो।।6।। -- कृष्णगोपाल कंसल
गीत 5
[सम्पादित करें]अपनी मिट्टी, अपना पानी,
अपना पवन प्रकाश हो।
अपनी मति गति रहे स्वदेशी,
पक्का आत्मविश्वास हो।।
1. कर्जे लेकर धाक बढ़ाना,
झूठी शान हराम है।
खा पीकर सब खर्च करे जो, अकर्मण्य का काम है।
प्रखर तीर से धरा चीरकर, प्रकट सुधा उल्लास हो।
अपनी मिट्टी, अपना पानी, अपना पवन प्रकाश हो।
अपनी मति गति रहे स्वदेशी, पक्का आत्मविश्वास हो।।
अपने पांवों की ताकत से, पहुंचे वैभव शीर्ष पर।
परदेशी वैसाखी के बल, नहीं बन सके जगदीश्वर।।
विश्व गुरू निज अस्त्र छोड़कर,
भिक्षुक नहीं हताश हो।
अपनी मिट्टी, अपना पानी, अपना पवन प्रकाश हो। अपनी मति गति रहे स्वदेशी, अडिग आत्मविश्वास हो।।
3. देशी द्रव्यों की पोषकता, युग-युग सिद्ध प्रसिद्ध है।
परदेशी तथ्यों का हित भी, विष मिश्रित संदिग्ध है।।
अपना सूरज, अपना सागर, अपना मलय सुवास हो।
अपनी मिट्टी, अपना पानी, अपना पवन प्रकाश हो। अपनी मति गति रहे स्वदेशी, अडिग आत्मविश्वास हो।।
4. आजादी का फिर मतवाला,
जोश खरोश जगाना है। स्वदेशी के अवलंबन हेतु मंत्र अचूक सिखाना है।।
आत्मशक्ति से प्राप्त अलौकिक,
सर्वांगीण विकास हो।
अपनी मिट्टी, अपना पानी, अपना पवन प्रकाश हो। अपनी मति गति रहे स्वदेशी, अडिग आत्मविश्वास हो।। मोहन खंडेलवाल ‘मुकुल’
गीत 6
[सम्पादित करें]देश प्रेम का भाव जगाने
देश प्रेम का भाव जगाने,
ग्राम नगर अभियान चले।
लिए स्वदेशी मंत्र आज फिर, बालक वृद्ध जवान चले।।
आज विदेशी कंपनियाँ फिर
भरत भूमि आईं हैं।
भारती की प्रभुसत्ता पर
अधिकार जमाने आईं हैं।
डालर के बल पर स्वदेश में
उद्योग लगाने आयीं हैं।
जाग उठो हे भारत वासी, आजादी का गान चले।। ...
लिए स्वदेशी मंत्र आज फिर,
बालक वृद्ध जवान चले।।1।।
करें प्रतिज्ञा भारत वासी
वस्तु स्वदेशी लेंगे हम।
अपना पैसा अपने घर में
देश समृद्ध बनायें हम।।
माटी से सोना उपजाएँ
जाल विदेश काटें हम।
स्वाभिमान का भाव जगाने
ग्राम नगर अभियान चले।।
लिए स्वदेशी मंत्र आज फिर,
बालक वृद्ध जवान चले।।2।।
ग्राम-ग्राम उद्योग लगायें,
हस्तकला सरसायें हम।
भरे रहें भण्डार सभी के,
अधिक अन्न उपजाएँ हम।।
घर-घर दीप जले लक्ष्मी के,
गीत खुशी से गायें हम।
भारत भू का भाग जगाने,
स्वदेशी की तान चले।।
लिए स्वदेशी मंत्र आज फिर,
बालक वृद्ध जवान चले।।3।।
अपने पैरों आज खड़े हो,
भीख नहीं हम माँगेंगे।
कठिन परिश्रम करके हम सब,
आगे कदम बढ़ायेंगे।।
चरण चूमने मंजिल आये,
समृद्धि का सोपान चले,
लिए स्वदेशी मंत्र आज फिर,
बालक वृद्ध जवान चले।।4।।
मोहन खंडेलवाल ‘मुकुल’
गीत 7
[सम्पादित करें]स्वार्थ, अलस और दास्यभाव को,
दूर हमें भगाना है।
स्वदेशी को अपनाना है,
समर्थक सबको बनाना है।।
शस्त्र स्वदेशी, वस्त्र स्वदेशी,
वस्तु स्वदेशी लाना है।
बीज स्वदेशी, खाद स्वदेशी,
अन्न स्वदेशी खाना है।।ध्रुव।।
कारीगरी में और शिल्प में, कोई नहीं बढ़कर हमसे, श्रेष्ठ कृषि और उद्योगों में ,बन सकते हैं हम फिरसे।
सब जनहित की प्रतिभाओं को
मुक्त हमें पनपाना है।।1।।
बीज स्वदेशी
जैसा बोलें, लिखते वैसा, भाषा अपनी न्यारी है
संस्कृत मां की सभी बेटियां, बोलियां हमको प्यारी हैं ।
अंग्रेजी से रक्षण करके, इन सब को बचाना है।।2।। बीज स्वदेशी
वैश्वीकरण के नाम हो रहे,
आर्थिक हमले को समझें
उपनिवेश के माया-जाल में,
गलती से भी ना उलझे ।
मंत्र स्वदेशी, और तंत्र से,
जगमग जग करवाना है।।3।।
बीज स्वदेशी,,,
अंधकार को ना अपनाएं,
मोमबत्ती की ज्योत बुझाकर
करें प्रकाशित हृदय-हृदय को,
घर-घर नन्दा दीप जलाकर
विदेशियत को दूर हटाकर,
मन स्वदेशी बनाना है।।4।। अज्ञात
स्वदेशी गीत 8
[सम्पादित करें]हर हाथ को हो काम,
हर खेत को हो पानी।
जग भर में फिर गूंजेगी,
भारत की अमर कहानी।।ध्रु।। भारत की अमर ....
जो देश बड़े कहलाते
माया का जाल बिछाते।
निज स्वार्थ-सुरक्षा खातिर
आर्थिक बंधन बंधवाते।।
इन षडयंत्रों को जाने
हम ध्वसं करें मनमानी।।1।।
जग भर में फिर गूंजेगी, भारत की अमर कहानी
हर घर का मिटे अंधेरा
शिक्षा के दीप जलायें।
अपने पैरो पर अपने
उद्योग-को पनपायें।।
भावना स्वदेशी जागे
है अपने मन ठानी।2।।
जग भर में फिर गूंजेगी,
भारत की अमर कहानी
हम आज नहीं युग-युग से
मानव का धर्म निभाते।
नर में नारायण देखा
जड़ में भी चेतन पाते।।
अपना अतीत पहचाने हम बनें राष्ट्र अभिमानी।।3।।
जग भर में फिर गूंजेगी, भारत की अमर कहानी ‘अनिमेष’ .
गीत 9
[सम्पादित करें]श्रम हो अपना, पूंजी अपनी,
गुणवत्ता में भी श्रेष्ठ हमीं।
ग्राहक तब सारा जग होगा।
नत-मस्तक सारा जग होगा,
बोलेगा जय भारत माँ की।।ध्रु।।
भारत के ग्राम, नगर, घर में हर हाथ कला-कौशल जाने।
फिर क्यों विदेश वह भागेगा जब हम उसके गुण पहचाने।।
ना हम विदेश-निर्भर होंगे ठानी है भाग्य बदलने की।।1।। नत-मस्तक जग होगा, बोलेगा जय भारत माँ की ..
विकसित देशों ने जाल रचे हम से शतरंजी चाल चली।
बौद्धिक सम्पद् उत्पादों पर फैलाये माया-जाल, छली।।
ले देश-भक्ति की धार प्रखर काटेंगे जड़ षडयंत्रों की।।2।। नत-मस्तक जग होगा, बोलेगा जय भारत माँ की ...
जय-जय जवान, जय हो किसान हम ही होंगे विज्ञान-जयी।
उद्यम का ध्वज अपना लेकर भारत बन जाये काल-जयी।।
भावना स्वदेशी, जय स्वदेश यह भाव-भूमि हो हर मन की।।3।। नत-मस्तक जग होगा, बोलेगा जय भारत माँ की ..
श्रम हो अपना, पूंजी अपनी,
गुणवत्ता में भी श्रेष्ठ हमीं।
ग्राहक तब सारा जग होगा।
नत-मस्तक सारा जग होगा,
बोलेगा जय भारत माँ की।।ध्रु।। -- ‘अनिमेष’
गीत 10
[सम्पादित करें]स्वदेश भाव फिर जगे,
स्वदेशी की पुकार है।
अस्मिता पर देश के,
विदेश का प्रहार है।।धु्रव।।
देश-देश लूटकर जो बने महान है। आई.एम.एफ., गैट, वर्ल्ड बैंक के निधान है
झोंकते हैं धूल, झूठ का, गरम बाजार है।।1।।
स्वदेश भाव फिर जगे, स्वदेशी की पुकार है।
कुटुंब है वसुंधरा, हम धरा के पूत हैं समग्रता, एकात्मता की,
संस्कृति की दूत है
सत्यापन का हमें,
मिला सुसंस्कार है।।2।।
स्वदेश भाव फिर जगे,
स्वदेशी की पुकार है।
कुटुंबभाव तोड़कर जो
रच रहे बाजार है
धर्मभाव छोड़कर, जगा रहे विकार है आक्रमण जो कर रहा,
वो शत्रु धुवांधार है।।3।।
स्वदेश भाव फिर जगे, स्वदेशी की पुकार है।
उठो जगो उखाड़ दो,
विज्ञापन के जाल को
जवाब दो खराखरा,
विदेशियों के मॉल को (2)
हिंद देश में सुनो,
उठा प्रचंड ज्वार है।।4।।
स्वदेश भाव फिर जगे, स्वदेशी की पुकार है।
बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' के स्वदेशी दोहे
[सम्पादित करें]सबै बिदेसी वस्तु नर, गति रति रीत लखात ।
भारतीयता कछु न अब, भारत में दरसात ।। 1।।
अर्थ -भारत में भारतीयता नाम की कुछ नहीं बचा है। यहाँ के लोगों के स्वभाव, रीति-रिवाज सभी पक्षों में विदेशी वस्तुओं से लगाव हो गया है।
मनुज भारती देखि कोउ, सकत नहीं पहिचान ।
मुसल्मान, हिंदू किधौं, के हैं ये क्रिस्तान ।।2।।
अर्थ-देखकर कोई पहचान नहीं कर सकता है कि यह आदमी भारतीय है। क्योंकि मुसलमान हिन्दू सभी अंग्रेज जैसे लगने लगे हैं।
पढ़ि विद्या परदेस की, बुद्धि विदेसी पाय ।
चाल-चलन परदेस की, गई इन्हें अति भाय ।।3।।
अर्थ विदेशी विद्या पढ़कर और विदेशी बुद्धि पाकर इनको (भारतवासियों को) विदेशी चाल-चलन बहुत अच्छा लगने लगा है।
ठटे बिदेसी ठाट सब, बन्यो देस बिदेस l
सपनेहूँ जिनमें न कहुँ, भारतीयता लेस ।।4।।
अर्थ-विदेशी ठाट में बस सज गये हैं। देश भी विदेश जैसा लगने लगा है सपना में भी भारत के लोगों में भारतीयता नाम की कोई चीज नहीं बची है।
बोलि सकत हिंदी नहीं, अब मिलि हिंदू लोग ।
अंगरेजी भाखन करत, अंगरेजी उपभोग ।।5।।
अर्थ - अब हिन्दू लोग भी परस्पर हिंदी में बात नही करते है l अंग्रजी बोलना और अंग्रजी वस्तु का उपयोग करना की भारतीयों को आच्छा लगता है l
अंगरेजी बाहन, बसन, वेष रीति औ नीति ।
अंगरेजी रुचि, गृह, सकल, बस्तु देस विपरीत ।।6।।
अंग्रेजी, वाहन, गोजी वस्त्र, अंग्रेजी वेशभूषा, अग्रेजी रीति-रिवाज, अंग्रेजी विचार,अंग्रेजी रुचि, मोजी भर आदि सभी चीजें देशी के विपरीत विदेशी लोगों को अच्छा लगने लगा है।
हिन्दुस्तानी नाम सुनि, अब ये सकुचि लजात ।
भारतीय सब वस्तु ही, सों ये हाय घिनात ।। 7।।
अर्थ- हिन्दुस्तानी नाम सुनकर ही भारत के लोग लज्जित हो जाते हैं। भारतीय सभी वस्तु से भारतवासियों को घृणा हो गयी है।
देस नगर बानक बनो, सब अंगरेजी चाल ।
हाटन मैं देखहु भरा, बसे अंगरेजी माल ।। 8 ॥
अर्थ -सम्पूर्ण देशवासी की वेशभूषा शहरी हो गयी है सारे चाल-चलन में अंग्रेजीपन आ गया है। हजारों (ग्रामीण बाजारों) में अब केवल अंग्रेजी माल ही भरे दिखाई पड़ते हैं।
जिनसों सम्हल सकत नहिं तनकी, धोती ढीली-ढाली ।
देस प्रबंध करिहिंगे वे यह, कैसी खाम खयाली ॥9 ॥
अर्थ - जिन नेताओं को शरीर की ढीली-ढाली भारतीय धोती संभाल में नहीं आती है वो देश का शासन सम्भाल लेंगे, यह तो उनकी कोरी कल्पना (ख्याली पुलाव बनाने) जैसी है।
दास-वृत्ति की चाह चहूँ दिसि चारहु बरन बढ़ाली ।
करत खुशामद झूठ प्रशंसा मानहुँ बने डफाली ।।10।।
अर्थ- गुलामी कर के जीवन यापन करना ब्राह्मण क्षेत्रीय शद्र-वैश्य चारो वरणों के लोगों की चाहत हो गई है। अंग्रेजों की खुशामद करने वाले, भारतीय वस्तु की झूठी प्रशंसा करने वाले ये भारतीय मानो डफली बजाने वाले बन गये हों।