दत्तोपन्त ठेंगड़ी

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दत्तोपन्त ठेंगड़ी

दत्तोपन्त ठेंगडी भारत के एक ज्येष्ठ स्वतंत्रता सेनानी, कुशल संघटक, अनेक राष्ट्र प्रेमी संगठनों के शिल्पकार, विख्यात विचारक, लेखक थे। उन्होंने संतो के समान त्यागी और संयमित जीवन जीया। उन्होंने १९५५ में भारतीय मजदूर संघ, १९७९ में भारतीय किसान संघ तथा १९९१ में स्वदेशी जागरण मंच की स्थापना की।

10 नवंबर 1920 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले के आर्वी शहर में जन्मे श्री ठेंगडी एक प्रसिद्ध वकील श्री बाबुराव दाजीबा ठेंगडी के ज्येष्ठ पुत्र थे। बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि, और सामाजिक कार्य के प्रति ललक ने उन्हें विद्यार्थी जीवन में ही स्वतंत्रता संग्राम में उतार दिया। केवल 15 वर्ष की आयु में ही वे आर्वी तालुका नगरपालिका हाईस्कूल के अध्यक्ष चुने गए।

भानुप्रताप शुक्ल लिखते है कि (१) रहन–सहन की सरलता, (२) अध्ययन की व्यापकता, (३) चिन्तन की गहराई, (४) लक्ष्य की स्पष्टता (५) ध्येय के प्रति समर्पण, (६) साधना का सातत्य और (७) कार्य की सफलता का विश्वास -- श्री ठेंगड़ी का व्यक्तित्व रूपायित करते है।

उद्धरण[सम्पादन]

  • मजदूरो, दुनिया को एक करो।
  • राष्ट्र का उद्योगिकरण, उद्योगों का श्रमिकीकरण, तथा श्रमिकों का राष्ट्रीयकरण।
  • लाल गुलामी छोड़ कर, बोलो वन्देमातरम् ।
  • देश के हम भण्डार भरेंगे, लेकिन कीमत पूरी लेंगे।
  • रोज़गार मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है।
  • मानवता की मौलिक इकाई राष्ट्र है, वर्ग नहीं।
  • संघ कुछ नहीं करेगा लेकिन जो भी जरूरी है वह अंततः होगा।
  • नए राष्ट्र का निर्माण नहीं बल्कि राष्ट्र का पुनर्निर्माण ।
  • (हिंसक) क्रांति नहीं बल्कियुगानुकूल परिवर्तन ।
  • सनातन धर्म के शाश्वत सिद्धांतों पर आधारित एकात्म मानववाद एक युगानुकूल दृष्टिकोण है। यह राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए बुनियादी राष्ट्रीय दर्शन होना चाहिए और राष्ट्रीय जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हमारी नीतियां इसके आलोक में तैयार की जानी चाहिए।
  • हम यह नहीं मानते कि आधुनिकीकरण का अर्थ पश्चिमीकरण है। अंग्रेजी शिक्षा की मैकाले प्रणाली के माध्यम से एक सदी से अधिक समय से दिमाग धोने की प्रक्रिया के कारण, अधिकांश भारतीयों को यह विश्वास करने की आदत हो गयी है कि पश्चिम की कोई भी चीज़ हमेशा सर्वोत्तम होती है तथा आधुनिक होने के लिए हमारी जीवनशैली और विचार शैली अवश्य ही पश्चिमी होनी चाहिए। हालाँकि यह केवल एक मानसिक नाकाबंदी है। हमें जल्द से जल्द इससे बाहर आना चाहिए और पश्चिमी पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर सोचने के लिए तैयार रहना चाहिए। हमें यह स्वीकार करना होगा कि आधुनिकीकरण पश्चिमीकरण नहीं है और पश्चिमीकरण आधुनिकीकरण नहीं है।
  • भारतीय मजदूर संघ सर्वकल्प राष्ट्र निर्माण का एक अंग है और राष्ट्रहित की चौखट के भीतर मजदूर हित की कल्पना साकार करना उसका उद्देश्य है। यह मजदूरों का, मजदूरों के द्वारा, मजदूरों के लिए चलने वाला संगठन है, जो सभी प्रकार के प्रभाव यथा- सरकार का प्रभाव, राजनीतिक दलों का प्रभाव, विदेशी विचारधारा का प्रभाव और व्यक्तित्व, नेतागिरी के प्रभाव से ऊपर उठकर कार्य करेगा। इसके मुख्यतः तीन सूत्र होंगे- राष्ट्रहित, उद्योग हित और मजदूरहित। -- 23 जुलाई, 1955 को तिलक जयन्ती के शुभ दिवस पर भोपाल में भारतीय मजदूर संघ की स्थापना के अवसर पर अपने सम्बोधन में
  • स्वदेशी अर्थव्यवस्था के चार लक्षण है- जिसमें हेरफेर नहीं बल्कि मुक्त प्रतिस्पर्धा हो, जहां आंदोलन का लक्ष्य समता और समानता हो, जहां प्रकृति का दोहन किया जाता है लेकिन उसे नष्ट नहीं किया जाता है, और जहां स्व-रोजगार है न कि मजदूरी वाला रोजगार।
  • राष्ट्रीय कायाकल्प केवल उन लोगों के माध्यम से संभव है जो भारत की पारंपरिक ज्ञान प्रणाली में दृढ़ता से विश्वास करते हैं।
  • पूजनीय श्री गुरूजी का यह आग्रह था कि, केवल इंटक की कार्यपद्धति जानना प्रर्याप्त नहीं है। कम्यूनिस्ट यूनियन्स और सोशलिस्ट यूनियन्स की कार्य पद्धति भी जाननी चाहिये।
  • कृषि को, किसान को और ग्रामीण विकास को प्राथमिकता दिये जाने की आवश्यकता है। आर्थिक समानता का गलत अर्थ प्रचारित कर लोगों में अधिक काम करने की प्रेरणा समाप्त करने वाला ‘महापात्र सिद्धान्त’ हानिकारक है। परिश्रमपूर्वक अधिक उत्पादन निकालने वाले किसानों को अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त करने का अवसर मिलना चाहिए।
  • हर किसान हमारा नेता है।
  • सामाजिक समरसता के बिना सामाजिक समता असम्भव है।
  • समूचा ज्ञान सार्वभौम है, यह न पाश्चात्य है न पौर्वात्य ।
  • हमारा राष्ट्र एक अद्भुत, प्राचीन एवं विशिष्ट राष्ट्र है और वह न केवल राष्ट्र बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए उपयोगी है। हम अपने अतीत की अवहेलना नहीं कर सके हैं पर सदियों के गतिरोधकाल में जो भूल-चूक हुई है, उसे सुधारे, उसे आगे ढोते ना रहे। ऐसा विवेक राष्ट्रीय चिन्तन के लिए आवश्यक है।
  • मानव चेतना की प्रगति के मार्ग में राष्ट्रवाद, आदिम जातिवाद और मानववाद के बीच का सेतु हैं और स्वयं मानववाद ही सार्वभौमीकरण (Universalisation) की दिशा में एक बड़ा कदम है।
  • कोई भी विचार अगर वास्तव में स्थापित करना है तो उसका व्यावहारिक आचरण करके दिखाना चाहिए ।
  • बिना सोचे-विचारे पश्चिमी देशों की नकल करने की बजाए भारत की अपनी मूल्य प्रणाली और सांस्कृतिक लोकाचार का अनुसरण करने से ही राष्ट्रीय पुनर्जागरण और विकास हो सकता है।
  • 'वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन' गलत नाम है, यह वास्तव में 'वेस्टर्न वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन' है।
  • भारतीय मजदूर संघ सर्वकल्प राष्ट्र निर्माण का एक अंग है और राष्ट्रहित की चौखट के भीतर मजदूर हित की कल्पना साकार करना उसका उदेश्य है। यह मजदूरों का, मजदूरों द्वारा, मजदूर के लिए चलने वाला संगठन है, जो सभी प्रकार के प्रभावों यथा सरकार का प्रभाव, नियोजकों का प्रभाव, राजनीतिक दलों का प्रभाव, विदेशी विचारधारा का प्रभाव और व्यक्तिगत नेतागिरी के प्रभाव से ऊपर उठ कर कार्य करेगा। राष्ट्रहित, उद्योगहित व मजदूरहित की त्रिसूत्री इसके विचार चिन्तन की धुरी होगी। -- भारतीय मजदूर संघ की स्थापना के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए ‘इदं राष्ट्राय, इदं न मम्’ लेख में
  • उन दिनों एक बड़ी समस्या थी कि राष्ट्रवाद, राष्ट्रीयता और भारत माता, इन शब्दों के प्रति तथाकथित प्रगतिशील लोगों के मन में बड़ी चिढ़ थी। हम भारत माता की जय कहते तो प्रगतिशील नेता कहते इस नारे का यहां ट्रेड यूनियन क्षेत्र में क्या प्रयोजन है? यहां तो बोनस, महंगाई भत्ता, वेतन वृद्धि आदि का सवाल है। भारत माता को यहां क्यों घसीट लाते हो। नारे भी अलग लगते थे। उनका नारा था ‘चाहे जो मजबूरी हो, मांग हमारी पूरी हो।’ उस नारे के स्थान पर हमने कहा ‘देश के हित में करेंगे काम, काम के लेंगे पूरे दाम।' यानी राष्ट्रवाद को प्रखरता से लाना और राष्ट्रहित की चौखट में रहकर मजदूरों का हित करना, यह हमारा ध्येय है। हमारी प्राथमिकता का क्रम है कि पहले राष्ट्रहित, फिर मजदूरहित और अंत में भारतीय मजदूर संघ का हित। इसमें कोई संस्थागत अहंकार नहीं। राष्ट्र का कल्याण हो, मजदूरों का कल्याण हो, यह हमारा सिद्धान्त और लक्ष्य है। -- भारतीय मजदूर संघ की स्थापना के समय की स्थिति को स्पष्ट करते हुए ‘इदं राष्ट्राय, इदं न मम्’ लेख में
  • आत्मविकास करना और अपने श्रेष्ठ गुणों का फल राष्ट्रदेवता के श्रीचरणों में अर्पित करके इस धरती से शान्तिपूर्वक निकल जाना, यह आदर्श स्थिति है। अपने महान राष्ट्र की आधारशिला का एक लघु पाषाणकण बन कर नींव में गढ़े रहना ही मैं पसन्द करूंगा।
  • हम यह अच्छी तरह जानते हैं कि स्वदेशी का मतलब हम राष्ट्र तक संकुचित हैं, ऐसा नहीं है। हमारे प.पू. गुरुजी ने कई बार यह कहा कि विश्वशांति के लिए एक विश्व संकल्पना की आवश्यकता है। एक विश्व संकल्पना का अर्थ एक विश्व सरकार, एक विश्व शासन नहीं बल्कि हरेक राष्ट्र अपना-अपना कारोबार ठीक ढंग से चलाए । हरेक राष्ट्र की अपनी संस्कृति है उस संस्कृति के अनुसार हरेक राष्ट्र अपनी-अपनी प्रगति का मॉडल, नमूना बनाए ।
  • आज तृतीय विश्व के सभी देशों में वैसे ही स्वदेशी आंदोलन शुरू हुए हैं जैसा जैसा हमारा स्वदेशी जागरण मंच का कार्य है। स्वदेशी की भावना उन सभी देशों में जागृत की जा रही है। जब 'स्वदेशी' कहा जाता है तो उसका संबंध केवल वस्तुओं से नहीं है- स्वदेशी एक भावना है, एक स्पिरिट है । स्वदेशी का मतलब होता है कि हरेक देश अपनी संस्कृति के अनुसार, अपनी-अपनी पद्धति के अनुसार अपना विकास करे।

दत्तोपन्त ठेंगड़ी के विषय में अन्य लोगों के विचार[सम्पादन]

  • दत्तोपंत जी ने लगातार 25 घंटे और वर्ष में 13 महीने काम करते हुए उस कार्य को एक ही जन्म में सम्पन्न कर दिया जिसे दस जन्मों में पूरा किया जा सकता था। -- प्रख्यात विचारक एस० गुरुमूर्ति

बाहरी कड़ियाँ[सम्पादन]