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  • सिपाही' भी कहा जाता है। हम इह काज जगत मो आए। धरम हेतु गुरुदेव पठाए॥ जहां-जहां तुम धरम बिथारो। दुसट दोखियनि पकरि पछारो॥ याही काज धरा हम जनमे। समझ लेहु साधू...
    ३२ KB (२,५२१ शब्द) - १८:३५, १६ जनवरी २०२४
  • घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥ तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान। कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥ खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान। रहिमन...
    ९ KB (७६१ शब्द) - २३:०४, ४ दिसम्बर २०१८
  • हमारे से दीन गृहस्थों को घर बैठे दर्शन देते हैं क्योंकि जो लोग गृहस्थ और काम काजी हैं वे स्वभाव ही से गृहस्थी के बन्धनों से ऐसे जकड़ जाते हैं कि साधु संगम...
    १७८ KB (१४,५३५ शब्द) - ००:०३, ११ मार्च २०१४
  • बहुत बड़ा उत्तरदायित्व सँभालना है। - सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या नागरीप्रचारिणी सभा, काशी की हीरकजयंती के पावन अवसर पर उपस्थित न हो सकने का मुझे बड़ा खेद है।...
    १०५ KB (७,०२६ शब्द) - २०:२८, २४ सितम्बर २०२३
  • करो। पूस उजेली सप्तमी, अष्टमी नौमी जाज। मेघ होय तो जान लो, अब सुभ होइहै काज।। अर्थ : यदि पूस सुदी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बदली और गर्जना हो तो सब काम...
    १९ KB (१,४८९ शब्द) - १८:०८, २२ अगस्त २०१९
  • होते, उन्हें देखने से ही बड़ा पाप लगता है। अपने पर्वत के समान दुःख को धूल के समान और मित्र के धूल के समान दुःख को सुमेरु (बड़े भारी पर्वत) के समान जाने॥1॥...
    १०० KB (७,९९९ शब्द) - ०९:५२, १८ जून २०२३
  • खाक में हम काहिलों को क्या। ऐ मीरे फर्श रंज उठाना नहीं अच्छा ।। और क्या। काजी जो दुबले क्यों, कहैं शहर के अंदेशे से। अरे ‘कोउ नृप होउ हमें का हानी, चैरि...
    ७९ KB (६,२१० शब्द) - ००:०८, १७ मार्च २०१४
  • बनाना न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी : न कारण होगा, न कार्य होगा बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैया : रुपये वाला ही ऊँचा समझा जाता है। भेड़ जहाँ जायेगी, वहीं...
    ५६ KB (४,४९४ शब्द) - १८:०६, २३ दिसम्बर २०१९
  • मिरचा लहसुन पियाज टिकोरा। ले फालसा खिरनी आम अमरूद निबुहा मटर होरहा। जैसे काजी वैसे पाजी। रैयत राजी टके सेर भाजी। ले हिन्दुस्तान का मेवा फूट और बैर। मुगल :...
    ४६ KB (३,६४३ शब्द) - ०८:४५, १९ अक्टूबर २०२२
  • बहुत बड़ी पुस्तक प्रत्येक सभा को जम्मु से बिना मूल्य मिल सकती है। ग्यारहवाँ प्रायश्चित – श्रीमान् स्वामी दयानन्द जी महाराज ने कराया अर्थात काजी मुहम्मद...
    ५० KB (३,८१३ शब्द) - २१:३२, २६ अप्रैल २०२४
  • राजा : तो कल हम बड़ी पूजा करैंगे एक लाख बकरा और बहुत से पक्षी मँगवा रखना। चोबदार : जो आज्ञा। पुरोहित : उठकर के नाचने लगा, अहा-हा! बड़ा आनंद भया, कल खूब...
    ६९ KB (५,२३३ शब्द) - ००:०२, ११ मार्च २०१४
  • गोरखनाथ पुस्तक जल्हण हाथ दै चलि गज्जन नृप काज । -- चंदबरदाई मनहु कला सभसान कला सोलह सौ बन्निय । -- चंदबरदाई राम सो बड़ो है कौन , मोसो कौन छोटो ? राम सो खरो...
    ८७ KB (६,२०८ शब्द) - १८:३३, ५ दिसम्बर २०२२
  • नही है। काजी मुलां कुरांण लगाया, ब्रह्म लगाया वेदं।१। कापड़ी संन्यासी तीरथ भ्रमाया, न पाया नृवांण पद का भेवं।२। महायोगी गोरख कहते है की काजी मुल्लाओं...
    ४८५ KB (३९,२९५ शब्द) - १६:१३, १९ फ़रवरी २०२३
  • खोंखी। अनुवाद- एक हर्रे, गाँवभर खाँसी। अर्थ- एक अनार सौ बीमार। बबुआ बड़ा ना भइया, सबसे बड़ा रुपइया। अर्थ- पैसे का ही महत्व होना। लबर-लबर लंगरो देवाल फानें।...
    १२२ KB (९,६४९ शब्द) - ११:३०, २२ जून २०२३