जन्म
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- स जातो येन जातेन याति वंश समुन्नतिम् ।
- परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते ॥ -- भर्तृहरि कृत नीतिशतकम्
- जन्म के बाद मृत्यु तो इस परिवर्तनशील संसार का नियम है, लेकिन केवल उसी व्यक्ति का जीवन वास्तव मे सार्थक है जिसके जन्म से उसके वंश (कुल) की प्रसिद्धि और उन्नति होती हैं।
- जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
- तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि॥ -- भगवद्गीता
- जिसने जन्म लिया है उसका मरण ध्रुव निश्चित है और जो मर गया है उसका जन्म ध्रुव निश्चित है इसलिये यह जन्ममरणरूप भाव अपरिहार्य है अर्थात् किसी प्रकार भी इसका प्रतिकार नहीं किया जा सकता इस अपरिहार्य विषयके निमित्त तुझे शोक करना उचित नहीं।
- अहो एषां वरं जन्म सर्व प्राण्युपजीवनम् ।
- धन्या महीरुहा येभ्यो निराशां यान्ति नार्थिनः ॥
- सब प्राणियों पर उपकार करनेवाले इन (वृक्षों) का जन्म श्रेष्ठ है, वृक्षों को धन्य है कि जिनसे याचक निराश नहीं होते ।
- बड़े भाग मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सदग्रंथनि गावा॥ -- रामचरितमानस
- बड़े भाग्य से यह मनुष्य शरीर मिला है। सब ग्रंथों ने यही कहा है कि यह शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है (कठिनता से मिलता है)।
- जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ेगा। -- स्वामी विवेकानन्द
- स्वाभाविक तौर पर तनाशाही का जन्म लोकतंत्र से ही होता है, और निरंकुशता व गुलामी का सबसे चरम रूप सबसे स्वच्छंद आजादी से जन्म लेता है। -- प्लेटो