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माता

विकिसूक्ति से
(जननी से अनुप्रेषित)
  • माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः। (ऋग्वेद, पृथ्वी सूक्त)
अर्थ : भूमि माता है और मैं उसका पुत्र हूँ।
  • जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी। (रामायण)
अर्थ - जननी (माता) और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं।
  • मातृ देवो भव। -- तैत्तिरीयोपनिषद् शिक्षावल्ली ११.२
माता को देवता के समान मानो।
  • मातुर्लोके मार्दवं साम्यशून्यम्।
माँ की सहृदयता संसार में अतुल्य है।
  • नास्ति मातृसमो गुरुः। -- महाभारत, अनुशासन पर्व १०५.१४
इस संसार में माँ के समान कोई गुरु नहीं है।
  • गुरूणां चैव सर्वेषां माता परमेको गुरुः॥ -- महाभारत, आदिपर्व १९५.१६
  • गुरूणां माता गरीयसी॥ -- चाणक्य सूत्र ३६२
माता (माँ) सभी गुरुओं में श्रेष्ठ है।
  • सहस्रं हि पितुर्माता गौरवेणातिरिच्यते॥ -- बालरामायण ४.३०
महत्व (गौरव) की दृष्टि से माँ (माता) पिता से हजार गुना श्रेष्ठ है।
  • माता गुरुतरा भूमेः॥ -- महाभारत वनपर्व ३१३.६०
माता, भूमि से भी गुरुतर (भारी) है।
  • नास्ति मातृसमा छाया नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राणं नास्ति मातृसमा प्रिया॥ -- महाभारत शान्तिपर्व २६६.३०
माता से बढ़कर इस संसार में कोई छाय (सहारा) नहीं है। माँ की छाया में ही जीवन का सुख है। कोई माँ के समान जीवन की रक्षा नहीं कर सकता है तथा माँ के समान इस संसार में कोई प्रिय वस्तु नहीं है।
  • मातृलाभे सनाथत्वमनाथत्वं विपर्यये॥
माता के जीवित या साथ रहने पर हर कोई अपने आप को सनाथ अनुभव करता है। माँ के साथ न रहने पर वह अनाथ हो जाता है।
  • न स्वेच्छया क्षणमपि माता पुत्रं रहयति।
यद्वत्सुपुत्रभवति तद्वत्कुपुत्रकमपि॥
माता अपनी इच्छा से तनिक भी अपने पुत्र का परित्याग नहीं करती है। माता जिस प्रकार सुपुत्र का भरण-पोषण और रक्षा करती है, उसी प्रकार कुपुत्र का भी भरण-पोषण और रक्षा करती है।
  • जननात् जननी स्मृता।
जन्म देने के कारण माता को जननी कहते है।
  • माता जानाति यद्गोत्रं माता जानाति यस्य सः।
मातुर्भरणमात्रेण प्रीतिः...............॥ -- महा. शान्ति. २६६.३५
पुत्र का गोत्र क्या है तथा उसका पिता कौन है, यह सब माता ही जानती है। गर्भ में धारण करने के कारण माता ही पुत्र से अधिक प्रेम करती है।
  • दश चैव माता सर्वां वा पृथिवीमपि।
गौरवेणाभिभवति नास्ति मातृसमो गुरुः॥ -- महा.अनु. १०५.१५
माता का गौरव (महत्व) दश पिताओं से भी अधिक होता है। माँ के गौरव के सामने पृथिवी का गौरव न्यूनतम है। माता के समान इस संसार में कोई गुरु नहीं है।
  • माता गरीयसी यच्च तेनैतां मन्यते जनः। -- महाभारत अनुशासन पर्व १०५.१६
माता का गौरव सर्वाधिक है इसलिए संसार के लोग माँ का आदर करते है।
  • मातुर्या भगिनी ज्येष्ठा मातुर्या च यवीयसी।
मातामही च धात्री च सर्वास्ता मातरः समृताः॥
माँ की छोटी और बड़ी बहनें, नानी और धाय ये सब माँ तुल्य हैं। माता के समान ही इनका आदर करना चाहिए।
  • कुक्षिसंधारणाद् धात्री जननाज्जननी स्मृता।
अङ्गानां वर्धनादम्बा वीरसूत्वेन वीरसूः॥ -- महाभारत शान्तिपर्व २६६.३२
पुत्र को गर्भ में धारण करने के कारण माता धात्री कहलाती है। जन्म देने के कारण माँ जननी कहलाती है। पालन-पोषण करने के कारण माता अम्बा कहलाती है और सुयोग्य वीर को जन्म देने के कारण माँ वीरसू कहलाती है।
  • यो ह्यं मयि संघाते मर्त्यत्वे पाञ्चभौतिकः।
अस्य में जननी हेतुः पावकस्य यथारणिः॥ -- महाभारत शान्तिपर्व २६६.२५
मनुष्य को जो यह पांचभौतिक शरीर प्राप्त हुआ है, इसे माँ ने वैसे ही बनाया है जैसे अरणि से आग बनती है।
  • अन्य धन के समान कोई दान नहीं, द्वादशी के समान कोई तिथि नहीं, गायत्री मंत्र से बड़ा कोई मंत्र नहीं और माँ से बढ़कर कोई देवता नहीं है । -- चाणक्य
  • एक माँ का हाथ कोमलता से बना होता है और बच्चे उसमे गहरी नीद में सोते है। -- विक्टर ह्यूगो
  • नास्ति मातृ समो गुरु
अर्थ : माता के समान गुरु नहीं । -- वेदव्यास
  • मातृत्व कठिन है और लाभप्रद भी। -- ग्लोरिया एस्तिफैन
  • भगवान सभी जगह नहीं हो सकते इसलिए उसने माएं बनायीं। -- रुडयार्ड किपलिंग
  • मातृत्व : सारा प्रेम वही से आरम्भ और अंत होता है। -- राबर्ट ब्राउनिंग
  • जवानी फीकी पड़ जाती है; प्यार मुरझा जाता है; दोस्ती की पत्तियाँ झड़ जाती हैं; पार एक माँ की छुपी हुई आशा उन सभी के पार होती है। -- Oliver Wendell Holmes

इन्हें भी देखें

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