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अन्धविश्वास

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अन्धविश्वास का अर्थ है, बिना तर्क-वितर्क किये ही किसी बात को सत्य मान लेना। वैसे 'अंधविश्वास' यह शब्द एक गढ़ा हुआ शब्द है, भारतीय विचार परम्परा में इसका प्रयोग कहीं नहीं मिलता। तरह-तरह के धूर्त और पाखण्डी सीधे-साधे लोगों में अंधविश्वास फैलाकर उनका विविध प्रकार से शोषण करते हैं, जिससे सामाजिक विकास बाधित होता है। चतुर-चालाक लोग भ्रमजाल फैलाकर उन पर विश्वास करने वाले लोगों को मूर्ख बनाते और अप्रत्यक्ष रूप से लूटते हैं।

अज्ञानता, कार्य-कारण सम्बन्ध को न जानना, भाग्य पर विश्वास, जादू पर विश्वास, ग्रहों की स्थिति का मानव के जीवन पर प्रभाव में विश्वास, अज्ञात से डर, आदि अन्धविश्वास के मूल हैं।

उक्तियाँ

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  • सुगतो यदि सर्वज्ञः कपिलो नेति का प्रमा।
अथोभावपि सर्वज्ञौ मतभेदस्तयोः कथम। -- शान्तरक्षित, तत्वसंग्रह, अध्याय 26, श्लोक 3149
यदि बुद्ध को सर्वज्ञ माना गया है, तो कपिल को क्यों नहीं? यदि ये दोनों बराबर के सर्वज्ञाता हैं, तो ये आपस में असहमत क्यों हैं?
  • तातस्य कूपोऽयमिति ब्रबूणाः क्षारं जलं कापुरुषाः पिबन्ति॥ -- योगवासिष्ठ / पञ्चतन्त्र / भोजप्रबन्ध
यह अपने पिताजी का कुँआ है, ऐसा बोलने वाले कापुरुष खारा जल पीते हैं।
  • अरिहरन की चोरी करै, करे सूई का दान ।
ऊँचा चढि कर देखता, केतिक दूर विमान ॥ -- कबीरदास
अर्थ है- मानव कुमार्ग पर चलकर कमाए गए धन का नगण्य भाग दान करके आकाश की ओर देखता है कि उसे स्वर्ग ले जाने वाला विमान अभी कितनी दूर है? अज्ञानी मानव द्वारा ऐसा किया जाना अन्धविश्वास को ही दर्शाता है।
  • पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पुजूँ पहार ।
ताती यह चाकी भली पीस खाय संसार॥ -- कबीरदास
यदि पत्थर को पूजने से भगवान मिलें तो मं पहाड़ की पूजा करूँगा। इससे तो अच्छी चक्की (की पूजा करना) है जिससे पीसकर लोग खाते हैं।
  • जब अंधविश्वास आपकी शिक्षा पर हावी हो जाए तो समझ लीजिए कि आप मानसिक गुलाम बन चुके हैं। -- महात्मा बुद्ध
  • अब रह गई शीतला और मन्त्र, तन्त्र, यन्त्र आदि। ये भी ऐसे ही ढोंग मचाते है । कोई कहता है कि ‘जो हम मन्त्र पढ़ के डोरा वा यन्त्र बना देवें तो हमारे देवता और पीर उस मन्त्र यन्त्र के प्रताप से उस को कोई विघ्न नहीं होने देते’। उन को वही उत्तर देना चाहिये कि क्या तुम मृत्यु परमेश्वर के नियम और कर्मफल से भी बचा सकोगे? तुम्हारे इस प्रकार करने से भी कितने ही लड़के मर जाते हैं और तुम्हारे घर में भी मर जाते हैं और क्या तुम मरण से बच सकोगे? तब वे कुछ भी नहीं कह सकते और वे धूर्त जान लेते हैं कि यहां हमारी दाल नहीं गलेगी। इस से इन सब मिथ्या व्यवहारों को छोड़ कर धर्मिक सब देश के उपकार करना। निष्कपटता से सब को विद्या पढ़ाने वाले उन विद्वान् लोगों का प्रत्युपकार करना जैसा वे जगत् का उपकार करते हैं। इस काम को कभी न छोड़ना चाहिये और जितनी लीला, रसायन, मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण आदि करना कहते हैं उन को भी महापाप समझना चाहिये । -- दयानन्द सरस्वती
  • बहुत से ज्योतिषी लोग अपने लड़के वा लड़की का विवाह ग्रहों की गणित विद्या के अनुसार करते हैं, पुनः उन में विरोध वा विधवा अथवा मृतस्त्रीक पुरूष हो जाता है। जो फल सच्चा होता तो ऐसा क्यों होता? इसलिये कर्म की गति सच्ची और ग्रहों की गति सुख दुःख भोग में कारण नहीं। भला ग्रह आकाश में और पृथिवी भी आकाश में बहुत दूर पर हैं इनका सम्बन्ध कर्ता और कर्मों के साथ साक्षात् नहीं। -- दयानन्द सरस्वती
  • अज्ञानता से भय पैदा होता है, भय से अंधविश्वास पैदा होता है, अंधविश्वास से अंधभक्ति पैदा होती है, अंधभक्ति से आदमी का विवेक शून्य हो जाता है, और जिस आदमी का विवेक शून्य हो जाता है, फिर वह मानव नही, मानसिक गुलाम हो जाता है। इसलिए अज्ञानी नही, ज्ञानी बनो।
  • तर्क करने से अच्छे भविष्य का निर्माण होता है जबकि अन्धविश्वास से वर्तमान भी रोगग्रस्त हो जाता है। -- Iain Banks, Piece (1989)
  • अपराध करने वाले बड़े अन्धविश्वासी होते हैं। -- बैटमैन (१९३९)
  • सही रास्ते पर चलने की इच्छा रखने वाले को स्वयं सोचना पड़ेगा क्योंकि अन्धविश्वास संसार की सबसे बड़ी बुराइयों में से एक है। -- जिद्दू कृष्णमूर्ति, At the Feet of the Master (1911)
  • तीन चीजें सबसे अधिक हानि करतीं हैं- गल्प (गप्प), निर्दयता और अन्धविश्वास। -- -- जिद्दू कृष्णमूर्ति, At the Feet of the Master (1911)
  • डर, अन्धविश्वास का मुख्य स्रोत है और निर्दयता के प्रमुख स्रोतों में से एक है। -- बर्ट्रान्ड रसेल, An Outline of Intellectual Rubbish (1943), 23.

इन्हें भी देखें

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