भाग्य
भाग्य अर्थात दैवयोग से बिना कुछ किये ही फल मिल जाना।
उक्तियाँ
[सम्पादन]- विक्लवो वीर्यहीनो य: स दैवमनुवर्तते।
- वीराः संभावितात्मानो न दैवं पर्युपासते॥ -- वाल्मीकिरामायणम् , अयोध्याकाण्ड
- बलहीन या कापुरुष ही भाग्य के भरोसे बैठा रहता है। स्वावलम्बी पुरुष कर्म के माध्यम से सब कुछ प्राप्त कर लेता है, वह केवल भाग्य के भरोसे नहीं बैठा रहता है।
- कादर मन कहुँ एक अधारा। दैव दैव आलसी पुकारा॥ -- रामचरितमानस, सुन्दरकाण्ड
- (लक्ष्मणजी ने कहा-) यह दैव (भाग्य) तो कायर के मन का एक आधार (तसल्ली देने का उपाय) है। आलसी लोग ही दैव-दैव पुकारा करते हैं॥
- उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी
- दैवेन देयमिति कापुरुषा वदन्ति ।
- दैवं निहत्य कुरु पौरुषमात्मशक्त्या
- यत्नेकृते यदि न सिद्ध्यति कोऽत्रदोषः॥ -- भर्तृहरि
- लक्ष्मी कर्म करने वाले पुरुषरूपी सिंह के पास आती है, "देवता (भाग्य) देने वाला हैं" ऐसा तो कायर पुरुष कहते हैं। इसलिए देव (भाग्य) को छोड़ कर अपनी शक्ति से पौरुष (कर्म) करो, प्रयत्न करने पर भी यदि कार्य सिद्ध नहीं होता है तो देखो क्या समस्या है (कोई और समस्या तो नहीं?)।
- मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं ही निर्माता है। -- स्वामी रामतीर्थ
- भाग्य पर वह भरोसा करता है, जिसमें पौरुष नहीं होता। -- प्रेमचंद
- विचार सारे भाग्य का प्रारंभिक बिंदु है। -- नेपोलियन हिल
- भाग्य के भरोसे बैठे रहने पर भाग्य सोया रहता है, और साहसपूर्वक खड़े होने पर भाग्य भी उठ खड़ा होता है।
- ईश्वर या प्रारब्ध या भाग्य को कोसने से कोई लाभ नहीं क्योंकि अपने को अपमान और लांछना की स्थिति में ला पटकने की सारी जिम्मेदारी हमारी है। -- सुभाषित
- मृत अतीत को दफना दो, अनंत भविष्य तुम्हारे सामने है और स्मरण रखो कि प्रत्येक शब्द, विचार और कर्म तुम्हारे भाग्य का निर्माण करता है। -- विवेकानन्द
- जो कुछ भी होता है, वह अच्छे के लिए होता है। ईश्वर के पास हमेशा एक बेहतर योजना होती है। -- अज्ञात
- अपना सुख उसने अपने भुजबल से ही पाया है॥ -- रामधारी सिंह 'दिनकर'
- अपने पुरुषार्थ से अर्जित ऐश्वर्य का ही दूसरा नाम सौभाग्य है। -- अज्ञात
- भाग्य साहसी मनुष्य की सहायता करता है। -- वर्जिल
- प्रत्येक व्यक्ति का भाग्य एक बार अवश्य उदय होता है। यह बात अलग है कि वह उसका कितना लाभ उठाता है। -- भृगु
- भाग्यचक्र लगातार घूमा करता है, कौन कह सकता है कि आज मैं उच्च शिखर पर पहुँच जाऊंगा। -- कन्फ्यूशस
- सौभाग्य दरवाजा खटखटाता है और पूछता है - "क्या समझदारी घर में मौजूद है ?"
- आज का पुरुषार्थ ही कल का भाग्य है। -- पाल शिरट
इन्हें भी देखें
[सम्पादन]साँचा:लेख शीर्ष भाग्य (दैव, प्रारब्ध, नसीब) का अर्थ है बिना प्रयास के प्राप्त होने वाला फल। यह एक दार्शनिक, धार्मिक और सांस्कृतिक अवधारणा है, जिसमें यह विश्वास किया जाता है कि जीवन की कुछ घटनाएँ पूर्व निर्धारित होती हैं या दिव्य योजना के अनुसार घटित होती हैं। किंतु भारत के कई दर्शन, ग्रंथ और विचारक यह मानते हैं कि भाग्य से अधिक महत्वपूर्ण **पुरुषार्थ** (कर्म और प्रयास) है।
परिभाषा
[सम्पादन]- **संस्कृत में** – "दैवयोग" अर्थात ईश्वर की इच्छा या पूर्व जन्म का फल।
- **हिन्दू दृष्टिकोण** – प्रारब्ध के अनुसार भाग्य की बात होती है, किंतु कर्म को ही प्रमुख माना गया है।
- **आधुनिक सोच** – भाग्य से अधिक स्वयं का प्रयास, निर्णय और विवेक ही भविष्य निर्धारित करता है।
प्राचीन ग्रंथों से उद्धरण
[सम्पादन]वाल्मीकि रामायण, अयोध्याकाण्ड
[सम्पादन]- "विक्लवो वीर्यहीनो य: स दैवमनुवर्तते।
वीराः संभावितात्मानो न दैवं पर्युपासते॥" बलहीन या कापुरुष ही भाग्य के भरोसे बैठा रहता है। वीर पुरुष अपने पुरुषार्थ से ही फल प्राप्त करते हैं।
रामचरितमानस, सुन्दरकाण्ड
[सम्पादन]- "कादर मन कहुँ एक अधारा। दैव दैव आलसी पुकारा॥"
दैव (भाग्य) कायर के मन का एक तसल्ली देने वाला बहाना है। केवल आलसी लोग ही दैव की दुहाई देते हैं।
नीति शतक – भर्तृहरि
[सम्पादन]- "उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी
दैवेन देयमिति कापुरुषा वदन्ति। दैवं निहत्य कुरु पौरुषमात्मशक्त्या यत्नेकृते यदि न सिद्ध्यति कोऽत्र दोषः॥" लक्ष्मी उस उद्योगी पुरुष के पास आती है जो शेर की तरह कर्मशील है। 'दैव देता है' - यह तो कायर कहते हैं। अगर पूरे प्रयास के बाद भी सफलता न मिले, तो दोष खोजो।
आधुनिक विचारकों के उद्धरण
[सम्पादन]भारतीय विचारक
[सम्पादन]- "मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं निर्माता है।" — स्वामी रामतीर्थ
- "भाग्य पर वह भरोसा करता है, जिसमें पौरुष नहीं होता।" — प्रेमचंद
- "मृत अतीत को दफना दो, अनंत भविष्य तुम्हारे सामने है और स्मरण रखो कि प्रत्येक शब्द, विचार और कर्म तुम्हारे भाग्य का निर्माण करता है।" — स्वामी विवेकानन्द
- "ईश्वर या प्रारब्ध या भाग्य को कोसने से कोई लाभ नहीं, क्योंकि अपमानजनक स्थिति में हम स्वयं ही जिम्मेदार हैं।" — सुभाषित
- "अपना सुख उसने अपने भुजबल से ही पाया है।" — रामधारी सिंह 'दिनकर
- "अपने पुरुषार्थ से अर्जित ऐश्वर्य का ही दूसरा नाम सौभाग्य है।" — अज्ञात
अंतरराष्ट्रीय व्यक्तित्व
[सम्पादन]- "विचार सारे भाग्य का प्रारंभिक बिंदु है।" — नेपोलियन हिल
- "भाग्य साहसी मनुष्य की सहायता करता है।" — वर्जिल
- "प्रत्येक व्यक्ति का भाग्य एक बार अवश्य उदय होता है, यह बात अलग है कि वह उसका कितना लाभ उठाता है।" — भृगु
- "भाग्यचक्र लगातार घूमता है। कौन जानता है कि आज कौन शिखर पर पहुँच जाए।" — कन्फ्यूशियस
- "सौभाग्य दरवाजा खटखटाता है और पूछता है — क्या समझदारी घर में मौजूद है?" — अज्ञात
- "आज का पुरुषार्थ ही कल का भाग्य है।" — पाल शिरट
- "जो कुछ भी होता है, वह अच्छे के लिए होता है। ईश्वर के पास हमेशा एक बेहतर योजना होती है।" — अज्ञात
सन्दर्भ
[सम्पादन]- रामचरितमानस
- वाल्मीकि रामायण
- नीति शतक – भर्तृहरि
- स्वामी विवेकानन्द – 'कार्य और विचार'
- प्रेमचंद – निबंध संग्रह
- दिनकर – 'रश्मिरथी'