बह्यः को्ट्यस्त्वृषीणां च ब्रह्मलोके वसन्त्युत ॥२॥ -- महाभारत
(भीष्म जी युधिष्ठिर से कहते हैं कि) हे राजन् ! तू ब्रह्मचर्य के गुण सुन । जो मनुष्य इस संसार में जन्म से लेके मरणपर्य्यन्त ब्रह्मचारी होता है उसको कोई शुभगुण अप्राप्त नहीं रहता। ऐसा तू जान कि जिसके प्रताप से अनेक करोड़ ऋषि ब्रह्मलोक अर्थात् सर्वानन्दस्वरूप परमात्मा में वास करते और इस लोक में भी अनेक सुखों को प्राप्त होते हैं।
जो निरन्तर सत्य में रमण, जितेन्द्रिय, शान्तात्मा, उत्कृष्ट, शुभगुण स्वभावयुक्त और रोगरहित पराक्रमसहित शरीर, ब्रह्मचर्य अर्थात् वेदादि और सत्य शास्त्र और परमात्मा की उपासना का अभ्यास कर्मादि करते हैं उनके वे सब बुरे काम और दुःखों को नष्ट कर सर्वोत्तम धर्मयुक्त कर्म और सब सुखों की प्राप्ति करानेहारे होते हैं । और इन्हीं के सेवन से मनुष्य उत्तम अध्यापक और उत्तम विद्यार्थी हो सकते हैं।
मन, वाणी तथा शरीर से सदा सर्वत्र तथा सभी परिस्थितियों में सभी प्रकार के मैथुनों से अलग रहना ही ब्रह्मचर्य है। -- याज्ञवल्क्य
जो इस ब्रह्मलोक को ब्रह्मचर्य के द्वारा जानते हैं, उन्हीं को यह ब्रह्मलोक प्राप्त होता है तथा उनकी सम्पूर्ण लोकों में यथेच्छ गति हो जाती है। -- छान्दोग्य उपनिषद्
स्त्री अथवा उसके चित्र के विषय में चिन्तन करना, स्त्री अथवा उसके चित्र की प्रशंसा करना, स्त्री अथवा उसके चित्र के साथ केलि करना, स्त्री अथवा उसके चित्र को देखना, स्त्री से गुह्य भाषण करना, कामुकता से प्रेरित होकर स्त्री के प्रति पापमय कर्म करने की सोचना, पापमय कर्म करने का दृढ संकल्प करना तथा वीर्यपात में परिणमित होने वाली क्रिया निवृत्ति - ये मैथुन के आठ लक्षण हैं। ब्रह्मचर्य इन आठ लक्षणों से सर्वथा विपरीत है। -- दक्षस्मृति
आपको ज्ञात हो कि आजीवन अखण्ड ब्रह्मचारी रहने वाले व्यक्ति के लिए इस संसार में कुछ भी अप्राप्य नहीं है। ..... एक व्यक्ति चारों वेदों का ज्ञाता है तथा दूसरा व्यक्ति अखण्ड ब्रह्मचारी है। इन दोनों में पश्चादुक्त व्यक्ति (दूसरा व्यक्ति) ही पूर्वोक्त ब्रह्मचर्य रहित व्यक्ति से श्रेष्ठ है। -- महाभारत
बुद्धिमान व्यक्ति को विवाहित जीवन से दूर रहना चाहिए जैसे कि वह जलते हुए कोयले का एक दहकता हुवा गर्त हो। सन्निकर्ष से संवेदन होता है, संवेदन से तृष्णा होती है और तृष्णा से अभिनिवेश होता है। सन्निकर्ष से विरत होने से जीव सभी पापमय जीवन धारण से बच जाता है। -- भगवान बुद्ध
ब्रह्मचर्य सर्वश्रेष्ठ तप है ऐसा निष्कलंक ब्रह्मचारी मनुष्य नहीं साक्षात देवता है। ...... अत्यन्त प्रयत्न पूर्वक अपने वीर्य की रक्षा करने वाले ब्रह्मचारी के लिए संसार में क्या अप्राप्य है? वीर्य संवरण की शक्ति से कोई भी व्यक्ति मेरे समान बन जायेगा। -- शंकर भगवत्पाद
काम की सहज प्रवृत्ति जो प्रथम तो एक सामान्य लघूर्मि की भांति होती है, कुसंगति के कारण सागर का परिमाण धारण कर लेती है। -- नारद
विषयासक्ति जीवन, कान्ति, बल, ओज, स्मृति, सम्पत्ति, कीर्ति, पवित्रता तथा भगवद्-भक्ति को नष्ट कर डालती है। -- भगवान श्रीकृष्ण
इसमें सन्देह नहीं है कि वीर्यपात से अकाल मृत्यु होती है। ऐसा जानकर योगी को सदा वीर्य का परिरक्षण तथा अति नियमनिष्ठ ब्रह्मचर्यमय जीवन यापन करना चाहिए। -- शिवसंहिता
ब्राह्मण नग्न स्त्री को न देखें। -- मनु
भोजन में सावधानी रखना तिगुना उपयोगी है; परन्तु मैथुन में संयम रखना चौगुना उपयोगी है। स्त्री की ओर कभी न देखना, यह सन्यासी के लिए एक नियम था और अब भी है। -- आत्रेय