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विद्यार्थी

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विद्याथी अर्थात जो विद्या पाने का इच्छुक है। छात्र।

उक्तियाँ

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  • काकचेष्टा वकोध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च ।
अल्पहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पञ्चलक्षण्म् ॥
विद्यार्थी के पाँच लक्षण होते हैं : कौवे जैसी दृष्टि, बकुले जैसा ध्यान, कुत्ते जैसी नींद, अल्पहारी तथा गृह का त्याग करने वाला।
  • सुखार्थी त्यजेत विद्यां विद्यार्थी त्यजेत सुखम्।
सुखार्थिनः कुतो विद्या विद्यार्थिनः कुतो सुखम्॥
सुख चाहने वाले को विद्या और विद्या चाहने वाले को सुख त्याग देना चाहिए। सुख चाहने वाले के लिए विद्या कहाँ और विद्या चाहने वाले को सुख कहाँ है?
अनालस्यं ब्रह्मचर्यं शीलं गुरुजनादरः ।
स्वावलम्बः दृढाभ्यासः षडेते छात्र सद्गुणाः ॥
अनालस्य, ब्रह्मचर्य, शील, गुरुजनों के लिए आदर, स्वावलम्बी होना, और दृढ़ अभ्यास – ये छे छात्र के सद्गुण हैं ।
  • आचार्य पुस्तक निवास सहाय वासो ।
बाह्या इमे पठन पञ्चगुणा नराणाम् ॥
आचार्य, पुस्तक, निवास, मित्र, और वस्त्र – ये पाँच पठन के लिए आवश्यक बाह्य गुण हैं ।
  • गीती शीघ्री शिरःकम्पी यथालिखितपाठकः ।
अनर्थज्ञोऽल्पकण्ठश्च षडेते पाठकाधमाः ॥ -- पाणिनीय शिक्षा, ७.३२

गीती (गीत की तरह पढ़ना), शीघ्री (जल्दी-जल्दी पढ़ना), शिरःकम्पी (पढ़ते समय सिर हिलाने वाला), यथालिखित (जैसा लिखा है वैसा ही पढ़ने वाला), अनर्थज्ञ (अर्थ को समझे बिना ही पढ़ने वाला), अल्पकण्ठ (बहुत धीमी आवाज में पढ़ने वाला) - ये छः अधम पाठक हैं।

  • माधुर्यमक्षरव्यक्तिः पदच्छेदस्तु सुस्वरः ।
धैर्यं लयसमर्थं च षडेते पाठकाः गुणाः ॥ -- पाणिनीय शिक्षा, ७.३३
माधुर्य, अक्षरव्यक्ति (अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण करने वाला), पदच्छेद (पदों को अलग-अलग कर सकने में समर्थ), सुस्वर (अच्छे स्वर वाला), धैय तथा लयसमर्थ (लय से युक्त पढ़ने वाला) - ये अच्छे पाठक के छः गुण हैं।
  • कामं क्रोधं तथा लोभं स्वादं शृङ्गारकौतुके ।
अतिनिद्राऽतिसेवा च विद्यार्थी ह्यष्टवर्जयेत् ॥ -- चाणक्यनीति, ११.१०
विद्यार्थी को इन आठ चीजों को छोड़ देना चाहिये- काम (इच्छा), क्रोध, लोभ, स्वाद, शृंगारकौतुक, अतिनिद्रा और अतिसेवा ।

इन्हें भी देखें

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