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'''[[w:भारत|भारत]]''' (आधिकारिक नाम : भारत गणराज्य) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। समय-समय पर और अलग-अलग संस्कृतियों में इसको भारतवर्ष, अल-हिन्द, हिन्दुस्तान, इन्डिया आदि नामों से भी जाना जाता रहा है। तिब्बती लोग इसे 'ग्यगर' , 'मध्यदेश' तथा 'फ्यगुल' कहते थे। 'फ्यगुल' का अर्थ सभ्य, पवित्र, ज्ञानी और श्रेष्ठ लोगों की भूमि है।<ref>Toni Huber, 2008, [https://books.google.com/books?id=SjzSpGf1eM0C&q=Gyagar The Holy Land Reborn: Pilgrimage and the Tibetan Reinvention], शिकगो विश्वविद्यालय प्रेस, पृष्ठ 74-80</ref> चीनी भाषा में इसे 'तियानझु' कहते हैं। हिब्रू बाइबल में इसका नाम 'होदू' है। 'अन दो' (Ấn Độ ) भारत का वियतनामी भाषा का नाम है। |
'''[[w:भारत|भारत]]''' (आधिकारिक नाम : भारत हिंदुस्तान गणराज्य) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। समय-समय पर और अलग-अलग संस्कृतियों में इसको भारतवर्ष, अल-हिन्द, हिन्दुस्तान, इन्डिया आदि नामों से भी जाना जाता रहा है। तिब्बती लोग इसे 'ग्यगर' , 'मध्यदेश' तथा 'फ्यगुल' कहते थे। 'फ्यगुल' का अर्थ सभ्य, पवित्र, ज्ञानी और श्रेष्ठ लोगों की भूमि है।<ref>Toni Huber, 2008, [https://books.google.com/books?id=SjzSpGf1eM0C&q=Gyagar The Holy Land Reborn: Pilgrimage and the Tibetan Reinvention], शिकगो विश्वविद्यालय प्रेस, पृष्ठ 74-80</ref> चीनी भाषा में इसे 'तियानझु' कहते हैं। हिब्रू बाइबल में इसका नाम 'होदू' है। 'अन दो' (Ấn Độ ) भारत का वियतनामी भाषा का नाम है। |
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१२:२९, २ जून २०२४ का अवतरण
भारत (आधिकारिक नाम : भारत हिंदुस्तान गणराज्य) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। समय-समय पर और अलग-अलग संस्कृतियों में इसको भारतवर्ष, अल-हिन्द, हिन्दुस्तान, इन्डिया आदि नामों से भी जाना जाता रहा है। तिब्बती लोग इसे 'ग्यगर' , 'मध्यदेश' तथा 'फ्यगुल' कहते थे। 'फ्यगुल' का अर्थ सभ्य, पवित्र, ज्ञानी और श्रेष्ठ लोगों की भूमि है।[१] चीनी भाषा में इसे 'तियानझु' कहते हैं। हिब्रू बाइबल में इसका नाम 'होदू' है। 'अन दो' (Ấn Độ ) भारत का वियतनामी भाषा का नाम है।
सूक्तियाँ
- एतद्देशप्रसूतस्य सकासादग्रजन्मनः ।
- स्व स्व चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवाः ॥ -- मनु
- पुराने काल में, इस देश ( भारत ) में जन्में लोगों के सामीप्य द्वारा ( साथ रहकर ) पृथ्वी के सब लोगों ने अपने-अपने चरित्र की शिक्षा ली ।
- उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् ।
- वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः ॥ -- विष्णुपुराण २।३।१
- समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो पवित्र भूभाग स्थित है, उसका नाम भारतवर्ष है, जहाँ भरत के संतति निवास करते हैं ।
- गायन्ति देवाः किल गीतकानि धान्यास्तु ये भारतभूमिभागे।
- स्वर्गापवर्गास्पदहेतुभूते भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात्॥ -- विष्णुपुराण (२।३।२४)
- देवता गीत गाते हैं कि स्वर्ग और अपवर्ग की मार्गभूत भारत भूमि के भाग में जन्मे लोग देवताओं की अपेक्षा भी अधिक धन्य हैं। अर्थात् स्वर्ग और अपवर्ग (मोक्ष-कैवल्य) के मार्ग स्वरूप भारत-भूमि को धन्य धन्य कहते हुए देवगण इसका शौर्य-गान गाते हैं। यहां पर मनुश्य जन्म पाना देवत्व पद प्राप्त करने से भी बढकर है।
- ऋषभो मरुदेव्याश्च ऋषभात् भरतो भवेत्।
- भरताद् भारतं वर्षं, भरतात् सुमतिस्त्वभूत्॥ -- विष्णुपुराण (२।१।३१)
- ऋषभ का जन्म मरुदेवी से हुआ, ऋषभ से भरत हुए, भरत से भारतवर्ष और भारतवर्ष से सुमति हुए।
- ततश्च भारतं वर्षमेतल्लोकेषुगीयते।
- भरताय यत: पित्रा दत्तं प्रतिष्ठिता वनम्॥ -- विष्णुपुराण (२।१।३२)
- इसके बाद भारतवर्ष (की चर्चा करते हैं)। सभी लोकों में इसकी प्रशांशा के गीत गाये जाते हैं। पिता इसे (पुत्र) भरत को देकर वन में रहने के लिये चले गये।
- अहो अमीषां किमकारि शोभनं
- प्रसन्न एषां स्विदुत स्वयं हरिः ।
- यैर्जन्म लब्धं नृषु भारताजिरे
- मुकुन्दसेवौपयिकं स्पृहा हि नः ॥ -- भागवतपुराण
- देवता लोग इस देश के गुण-गान करते हुए कहते हैं कि अहो! ईश्वर के द्वारा कितना सुदंर बनाया गया, जिससे मनुष्य भारत भूमि पर हरि के सेवा योग्य बन जाता है। मेरी भी इच्छा भारत भूमि पर जन्म लेने को है। अर्थात् जिस पर ईश्वर की कृपा होती है, वहीं भारत भूमि पर जन्म लेते हैं।
- हिमालयं समारभ्य यावादिन्दुसरोवरम्
- तम् देवनिर्मितम् देशम् हिन्दुस्थानम् प्रचक्षते॥ -- ऋग्वेद की बार्हस्पत्य संहिता से
- हिमालय से लेकर इन्दु (हिन्द महासागर) तक फैली देवताओं द्वारा बनाई गई भूमि को हिन्दुस्थान कहा जाता है।
- तुमि विद्या तुमि धर्म तुमि हरि तुमि कर्म।
- त्वं हि प्राणाः शरीरे। वन्दे मातरम्॥ -- बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय, आनन्दमठ में
- तू ही मेरा ज्ञान, तू ही मेरा धर्म है, तू ही भगवान, तू ही कर्म है, तू ही मेरे शरीर का प्राण है, मैं तेरी वन्दना करता हूँ।
- भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात।
- विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात॥ -- भारतेंदु हरिश्चंद्र
- अरुण यह मधुमय देश हमारा।
- जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा॥
- सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर।
- छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा॥
- लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे।
- उड़ते खग जिस ओर मुँह किए, समझ नीड़ निज प्यारा॥
- बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल।
- लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा॥
- हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे।
- मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा॥ -- जयशंकर प्रसाद
- भू-लोक का गौरव प्रकृति का पुण्य लीला-स्थल कहाँ ?
- फैला मनोहर गिरी हिमालय और गंगाजल जहाँ ।
- सम्पूर्ण देशों से अधिक किस देश का उत्कर्ष है,
- उसका कि जो ऋषिभूमि है, वह कौन ? भारत वर्ष है॥१५॥
- हाँ, वृद्ध भारतवर्ष ही संसार का सिरमौर है,
- ऐसा पुरातन देश कोई विश्व में क्या और है ?
- भगवान की भव-भूतियों का यह प्रथम भण्डार है,
- विधि ने किया नर-सृष्टि का पहले यहीं विस्तार है॥१६॥
- यह पुण्य भूमि प्रसिद्ध है, इसके निवासी 'आर्य्य' हैं;
- विद्या, कला-कौशल्य सबके, जो प्रथम आचार्य्य हैं ।
- सन्तान उनकी आज यद्यपि, हम अधोगति में पड़े;
- पर चिन्ह उनकी उच्चता के, आज भी कुछ हैं खड़े॥१७॥ -- मैथिलीशरण गुप्त (भारत-भारती से)
- मस्तक ऊँचा हुआ मही का, धन्य हिमालय का उत्कर्ष।
- हरि का क्रीड़ा-क्षेत्र हमारा, भूमि-भाग्य-सा भारतवर्ष॥
- हरा-भरा यह देश बना कर विधि ने रवि का मुकुट दिया,
- पाकर प्रथम प्रकाश जगत ने इसका ही अनुसरण किया।
- प्रभु ने स्वयं 'पुण्य-भू' कह कर यहाँ पूर्ण अवतार लिया,
- देवों ने रज सिर पर रक्खी, दैत्यों का हिल गया हिया!
- लेखा श्रेष्ट इसे शिष्टों ने, दुष्टों ने देखा दुर्द्धर्ष!
- हरि का क्रीड़ा-क्षेत्र हमारा, भूमि-भाग्य-सा भारतवर्ष॥ -- मैथिलीशरण गुप्त (मंगलघट पुस्तक के 'भारतवर्ष' शीर्षक से)
- यूनान मिश्र रोमां सब मिट गये जहाँ से ।
- अब तक मगर है बाकी , नाम-ओ-निशां हमारा ॥
- कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी ।
- शदियों रहा है दुश्मन , दौर-ए-जहाँ हमारा ॥ -- मुहम्मद इक़बाल
- भारत वस्तुतः विश्व पुरुष की कुंडलिनी शक्ति है। जब भारत जागृत होगा तो विश्व पुरुष का दिवता में रूपान्तरण हो जाएगा। अगर भारत सो गया , न जागा तो विश्व-मानवता ही समाप्त हो जाएगी। -- श्री अरविन्द
- मैं भौगोलिक मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करता हूँ। मेरा भरत जड़ भारत नहीं है , अपितु वह ज्ञानलोक है , जिसका आविर्भाव ऋषियों की आत्मा में हुवा है। -- गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- अगर कोई देश है जो मानवता के लिए पूर्ण और आदर्श है, तो एशिया की ओर ऊँगली उठाऊंगा जहाँ भारत है। -- मैक्समूलर
- यदि मुझसे पूछा जाये कि किस आकाश के नीचे मानवीय मस्तिष्क ने अपने कुछ चुनिन्दा उपहारों को विकसित किया है, जीवन की सबसे बड़ी समस्याओं पर गहन विचार किया है और उनके हल निकाले है, तो मैं भारत की तरफ़ इशारा करूँगा। -- मैक्स मूलर
- भारत मानवता का पलना है। इसके ऊंचे हिमालय से ज्ञान-विज्ञानं की सरिताएँ निकली हैं। सृष्टि की उषा में इसका आंगन ज्ञान से आलोकित हुवा था। मैं भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि भारत का अतीत मेरी मातृभूमि के भविष्य में बदल जाए। -- जैको लाइट ने ' बाइबिल इन इण्डिया ' में
जब तुम भारत के सान्निध्य में आओगे तो तुम्हें अनश्वर शांति का दिव्य मार्ग मिलेगा।
- अमेरिकी इतिहासकार विल डूरण्ट ('सभ्यताओं का इतिहास' में)
भारत हमारी सम्पूर्ण (मानव) जाति की जननी है तथा संस्कृत यूरोप के सभी भाषाओं की जननी है। भारतमाता हमारे दर्शनशास्त्र की जननी है, अरबों के रास्ते हमारे अधिकांश गणित की जननी है, बुद्ध के रास्ते इसाईयत मे निहित आदर्शों की जननी है, ग्रामीण समाज के रास्ते स्व-शाशन और लोकतंत्र की जननी है। अनेक प्रकार से भारत माता हम सबकी माता है।
- — विल्ल डुरन्ट , अमरीकी इतिहासकार
भारत हमें एक परिपक्व मन की सहिष्णुता और नम्रता, भावनाओं को समझान और समेकक करना , और सभी मनुष्यों को प्रेम से संतुष्ट करना सिखाएगा।
हम भारतीयों के बहुत ऋणी हैं जिन्होने हमे गिनना सिखाया, जिसके बिना कोई भी मूल्यवान वैज्ञानिक खोज सम्भव नही होती।
जब यूरोप के लोग भरतीय दर्शन के सम्पर्क में आयेंगे तो उनके विचार और आस्थाएँ बदलेंगी। वे बदले हुवे लोग यूरोप के विचारों और विश्वास को प्रभावित करेंगे। आगे चलकर यूरोप में ही ईसाई-धर्म को संकट उत्पन्न हो जाएगा।
- प्रसिद्ध दार्शनिक आर्थर शापेनहावर
भारत मानव जाति का पलना है , मानव-भाषा की जन्मस्थली है , इतिहास की जननी है , पौराणिक कथाओं की दादी है, और प्रथाओं की परदादी है। मानव इतिहास की हमारी सबसे कीमती और सबसे ज्ञान-गर्भित सामग्री केवल भारत में ही संचित है।
यदि इस धरातल पर कोई स्थान है जहाँ पर जीवित मानव के सभी स्वप्नों को तब से घर मिला हुआ है जब मानव अस्तित्व के सपने देखना आरम्भ किया था , तो वह भारत ही है।
- — फ्रान्सीसी विद्वान रोमां रोलां
भारत अपनी सीमा के पार एक भी सैनिक भेजे बिना चीन को जीत लिया और लगभग बीस शताब्दियों तक उस पर सांस्कृतिक रूप से राज किया।
- — हू शिह , अमेरिका में चीन के भूतपूर्व राजदूत
दुनिया में कुछ ऐसी जगहें है जहाँ एक बार जाने पर वो आपके हृदय में बस जाती हैं और कभी निकलती नहीं. मेरे लिए, भारत एक ऐसी जगह हैं।
- – कीथ बेल्लोज
वेदों से हम सर्जरी, चिकित्सा, संगीत, घर बनाना, जिसमे यंत्रीकृत कला शामिल है, की व्यवहारिक कला सीखते हैं। वे जीवन के हर एक पहलू , संस्कृति, धर्म, विज्ञान, नैतिकता, कानून, ब्रह्माण्ड विज्ञान और मौसम विज्ञान के विश्वकोश हैं।
एक अरब वर्ष पुराने जीवाश्म साबित करते हैं की जीवन की शुरुआत भारत में हुई थी।
- – ऐ. ऍफ़. पी. वाशिंगटन
कुछ सन्दर्भों में प्राचीन भारत की न्यायिक प्रणाली सैद्धान्तिक रूप से हमारी आज की न्यायिक प्रणाली से उन्नत थी।
- (In some respects the judicial system of ancient India was theoretically in advance of our own today.)
- – जॉन डब्ल्यू स्पेलमैन (John W. Spellman)
दुर्भाग्य की बात है कि भारतीय लोग चीज़ों के ऐतिहासिक क्रम की ओर ध्यान नहीं देते और अपने राजाओं का तिथि के अनुसार क्रम बताने में बहुत असावधान हैं। यदि उनसे किसी घटना के बारे में पूछा जाता है तो उन्हें समझ में यह नहीं आता कि क्या कहें और निरपवाद रूप से क़िस्से-कहानी गढ़ने लगते हैं।
- - अलबरूनी, अपनी पुस्तक 'किताब-उल-हिन्द' या 'तहक़ीक़-ए-हिंद' में, भारत में इतिहास-लेखन के बारे में
इस विद्या में उन्होंने बहुत उन्नति की है। हमारे लोेग (मुसलमान) जब घाटों को देखते हैं तो चकित रह जाते हैं। वैसा बनाना तो दूर रहा, उनका वर्णन करने में भी हम असमर्थ हैं।
- - अलबरूनी, अपनी पुस्तक 'किताब-उल-हिन्द' या 'तहक़ीक़-ए-हिंद' में, भारतीय तीर्थों पर बने घाटों के बारे में
उसने (महमूद गजनवी) भारत के वैभव को सर्वथा नष्ट कर दिया और ऐसी चालें चलीं कि जिनसे हिंदू मिट्टी के परमाणुओं की भांति टूटकर बिखर गए और केवल एक ऐेतिहासिक बात रह गए। हिंदुओं के विद्वान, देश के उन भागों से जिन्हें हमने जीत लिया है, भागकर कश्मीर, बनारस आदि अन्य स्थानों में चले गए हैं, जहां हम नहीं पहुंच सकते।
- - अलबेरूनी, महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमणों के बारे में
इसके साथ ही दूसरी बात यह है कि भारतीय लेखक बड़े असावधान हैं। वे पुस्तक को मूल हस्तलेन के साथ मिला कर शुद्ध करने का कष्ट सहन नहीं करते। इसका यह परिणाम हुआ है कि ग्रंथकार के मानसिक विकास के उत्कृष्ट फल उनकी असावधानता के कारण नष्ट हो रहे हैं। उसकी पुस्तक एक दो प्रतियों में ही दोषों से ऐसी भर जाती है कि पिछली प्रति एक बिलकुल नवीन पुस्तक प्रतीत होने लगती है, और उसे न कोई विद्वान और न उस विषय से परिचित कोई और ही व्यक्ति, चाहे वह हिन्दू हो चाहे मुसलमान, समझ सकता ।
- - अलबेरूनी, अपनी पुस्तक 'किताब-उल-हिन्द' या 'तहक़ीक़-ए-हिंद' में, भारतीय ग्रन्थों के लिपिकारों के विषय में
इन्हें भी देखें
बाह्य सूत्र
सन्दर्भ
- ↑ Toni Huber, 2008, The Holy Land Reborn: Pilgrimage and the Tibetan Reinvention, शिकगो विश्वविद्यालय प्रेस, पृष्ठ 74-80