भारतीय गणित
भारतीय गणित से यहाँ आशय प्राचीन भारतीयों द्वारा संस्कृत आदि भाषाओं में रचित ग्रन्थों में अन्तर्निहित गणित से है।
भारतीय ग्रन्थों से उद्धरण
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वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों मे गणित का स्थान सबसे उपर है।
- यथा शिखा मयूराणां , नागानां मणयो यथा।
- तथा वेदांगशास्त्राणां , गणितं मूर्ध्नि स्थितम्॥ -- वेदाङ्ग ज्योतिष
- जैसे मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों मे गणित का स्थान सबसे उपर है।
- बहुभिर्प्रलापैः किम् त्रयलोके सचरारे।
- यद् किंचिद् वस्तु तत्सर्वम् गणितेन् बिना न हि॥ -- महावीराचार्य, जैन गणितज्ञ
- बहुत प्रलाप करने से क्या लाभ है? इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है। उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता।
- लौकिके वैदिके वापि तथा सामयिकेऽपि यः।
- व्यापारस्तत्र सर्वत्र संख्यानमुपयुज्यते॥ -- महावीराचार्य द्वारा रचित गणितसारसङ्ग्रह में गणितशास्त्रप्रशंसा के अन्तर्गत
- अर्थ: लौकिक, वैदिक तथा सामयिक में जो व्यापार है वहाँ सर्वत्र संख्या का ही उपयोग होता है।
- गण्यते संख्यायते तद्गणितम्। तत्प्रतिपादकत्वेन तत्संज्ञं शास्त्रं उच्यते। -- भारतीय गणितज्ञ गणेश दैवज्ञ, अपने ग्रन्थ बुद्धिविलासिनी में
- जो परिकलन करता और गिनता है, वह गणित है तथा वह विज्ञान जो इसका आधार है वह भी गणित कहलाता है।
- परिकर्मविंशतिं यस्सङ्कलिताद्यां पृथक्विजानाति।
- अष्टौ च व्यवहारान् छायान्तान् भवति गणकस्सस्॥ -- ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त
- लघुकरणोहापोहानालस्यग्रहणधारणोपायैः।
- व्यक्तिकरांकविशिष्टैर् गणकोऽष्टाभिर् गुणैर् ज्ञेयः॥ -- गणितसारसंग्रह, गणकगुणनिरुपणम्
- लघुकरण, उह, अपोह, अनालस्य, ग्रहण, धारण, उपाय, व्यक्तिकरांकविशिष्ट - इन आठ गुणों से गणक को जाना जाता है।
- भोज्यं यता सर्वरसं विनाज्यं राज्यं यथा राजविवर्जितं च।
- सभा न भातीव सुवक्तृहीना गोलानभिज्ञो गणकस्तथात्र॥ -- भास्कराचार्य, सिद्धान्तशिरोमणि, गोलाध्याय, श्लोक 4
- खगोल तथा गणित में एक दूसरे से अनभिज्ञ पुरुष उसी प्रकार महत्त्वहीन है जैसे घृत के बिना व्यंजन, राजा के बिना राज्य, तथा अच्छे वक्ता के बिना सभा महत्वहीन होती है।
महावीराचार्य द्वारा रचित गणितसारसङ्ग्रह में गणितशास्त्र की प्रशंसा
[सम्पादन]- लौकिके वैदिके वापि तथा सामयिकेऽपि यः।
- व्यापारस्तत्र सर्वत्र संख्यानमुपयुज्यते॥९॥
- कामतन्त्रेऽर्थशास्त्रे च गान्धर्वे नाटकेऽपि वा।
- सूपशास्त्रे तथा वैद्ये वास्तुविद्यादिवस्तुषु॥१०॥
- छन्दोऽलंकारकाव्येषु तर्कव्याकरणादिषु।
- कलागुणेषु सर्वेषु प्रस्तुतं गणितं परम्॥११॥
- सूर्यादिग्रहचारेषु ग्रहणे ग्रहसंयुतौ।
- त्रिप्रश्ने चन्द्रवृत्तौ च सर्वत्रांगीकृतं हि तत्॥१२॥
- द्वीपसागरशैलानां संख्याव्यासपरिक्षिपः।
- भवनव्यन्तरज्योतिर्लोककल्पाधिवासिनाम्॥१३॥
- नारकाणां च सर्वेषां श्रेणीबन्धेन्द्रकोत्कराः।
- प्रकीर्णकप्रमाणाद्या बुध्यन्ते गणितेन् ते॥१४॥
- प्राणिनां तत्र संस्थानमायुरष्टगुणादयः।
- यात्राद्यास्संहिताद्याश्च सर्वे ते गणिताश्रयाः॥१५॥
- बहुभिर्प्रलापैः किं त्रैलोक्ये सचराचरे।
- यत्किंचिद्वस्तु तत् सर्वं गणितेन् बिना न हि॥१६॥
- तीर्थकृद्भ्यः कृतार्थेभ्यः पूज्येभ्यो जगदीश्वरैः।
- तेषां शिष्यप्रशिष्येभ्यः प्रसिद्धाद्गुरुपर्वतः ॥१७॥
- जलधेरिव रत्नानि पाषाणादिव काञ्चनम्।
- शुक्तेर्मुक्ताफलानीव सङ्ख्याज्ञान महोदधे ॥१८॥ [१]
अर्थ: लौकिक, वैदिक तथा सामयिक में जो व्यापार है वहाँ सर्वत्र संख्या का ही उपयोग होता है। कामशास्त्र, अर्थशास्त्र, गन्धर्वशास्त्र, गायन, नाट्यशास्त्र, पाकशास्त्र, आयुर्वेद, छन्द, अलंकार, काव्य, तर्क, व्याकरण आदि में तथा कलाओं में समस्त गुणों में गणित अत्यन्त उपयोगी है। सूर्य आदि ग्रहों की गति ज्ञात करने में, देश और काल को ज्ञात करने में सर्वत्र गणित अंगीकृत है। द्वीपों, समूहों और पर्वतों की संख्या, व्यास और परिधि, लोक, अन्तर्लोक, स्वर्ग और नरक के निवासी, सब श्रेणीबद्ध भवनों, सभा एवं मन्दिरों के निर्माण गणित की सहायता से ही जाने जाते हैं। अधिक कहने से क्या प्रयोजन? तीनों लोकों में जो भी वस्तुएँ हैं उनका अस्तित्व गणित के बिना नहीं हो सकता।
भारतीय ग्रन्थों में गणित के सूत्र
[सम्पादन]- दीर्घस्याक्षणया रज्जुः पार्श्वमानी तिर्यकं मानी च।
- यत्पृथग्भूते कुरुतस्तदुभयांकरोति ॥ -- वेदाङ्गज्योतिष
- किसी आयत का विकर्ण उतना ही क्षेत्र इकट्ठा बनाता है जितने कि उसकी लम्बाई और चौड़ाई अलग-अलग बनाती हैं।
- चतुरधिकं शतमष्टगुणं द्वाषष्टिस्तथा सहस्राणाम्।
- अयुतद्वयस्य विष्कम्भस्यासन्नो वृत्तपरिणाहः॥ -- आर्यभट, आर्यभटीयम् (गणितपाद) के दूसरे भाग में ; वृत्त की परिधि और उसके व्यास के अनुपात ( पाई ) के मान के बारे में
- १०० में चार जोड़ें, आठ से गुणा करें और फिर ६२००० जोड़ें। इस नियम से २०००० परिधि के एक वृत्त का व्यास ज्ञात किया जा सकता है।
- (१०० + ४) * ८ + ६२०००/२०००० = ३.१४१६
- त्रिभुजस्य फलशरीरं समदलकोटि भुजार्धसंवर्गः । -- आर्यभट, गणितपाद ६ में, त्रिभुज के क्षेत्रफल के बारे में
- किसी त्रिभुज का क्षेत्रफल, लम्ब के साथ भुजा के आधे के (गुणनफल के) परिणाम के बराबर होता है।
- मखि भखि फखि धखि णखि ञखि ङखि हस्झ स्ककि किष्ग श्घकि किघ्व।
- घ्लकि किग्र हक्य धकि किच स्ग झशंव क्ल प्त फ छ कला-अर्ध-ज्यास् ॥ -- आर्यभटीय के 'दशगीतिका' नामक प्रथम अध्याय का १२वाँ छन्द
- इसमें आर्यभट ने श्लोक रूप में अक्षर-समूहों का प्रयोग करते हुए ज्या (sine) के मान दिये हैं।
विदेशी विद्वानों के विचार
[सम्पादन]- पश्चिम में गणित का अध्ययन लम्बे समय से कुछ हद तक राष्ट्र केंद्रित पूर्वाग्रह से प्रभावित रहा है, एक ऐसा पूर्वाग्रह जो प्रायः बड़बोले जातिवाद के रूप में नहीं बल्कि गैरपश्चिमी सभ्यताओं के वास्तविक योगदान को नकारने या मिटाने के प्रयास के रूप में परिलक्षित होता है। पश्चिम अन्य सभ्यताओं विशेषकर भारत का ऋणी रहा है। और यह ऋण ’’पश्चिमी’’ वैज्ञानिक परंपरा के प्राचीनतम काल - ग्रीक सम्यता के युग से प्रारंभ होकर आधुनिक काल के प्रारंभ, पुनरुत्थान काल तक जारी रहा है - जब यूरोप अपने अंधयुग से जाग रहा था। -- डेविड ग्रे (David Grey), भारत और वैज्ञानिक क्रांति' (Indic Mathematics: India and the Scientific Revolution) में [२][३][४]
- यूरोप में वैज्ञानिक क्रांति के विकास में भारत का योगदान केवल हासिये पर लिखी जाने वाली टिप्पणी नहीं है जिसे आसानी से और अतार्किक तौर पर यूरोप केंद्रित पूर्वाग्रह के आडम्बर में छिपा दिया गया है। ऐसा करना इतिहास को विकृत करना है और वैश्विक सभ्यता में भारत के महानतम योगदान को नकारना है। -- डेविड ग्रे (David Grey), भारत और वैज्ञानिक क्रांति' (Indic Mathematics: India and the Scientific Revolution) में
- गिनती की भारतीय पद्धति शायद मानव द्वारा खोजी गयी सबसे सफल बौद्धिक नवाचार है। इसे सभी देशों ने अपना लिया है। यह सार्वदेशिक भाषा के सबसे निकट है। -- जॉन डी बैरो, The Book of Nothing (2009) पहला अध्याय "Zero—The Whole Story"
- ...विश्व भारत का गणित के क्षेत्र में सबसे अधिक ऋणी है। गुप्त काल में भारत में भारतीय गणित उस ऊँचाई पर पहुँच गया था जैसा प्राचीन काल के किसी भी अन्य राष्ट्र में नहीं पहुँच सका था। -- ए एल बाशम, आस्ट्रेलिया के भारतविद्
- यह (भास्कर की चक्रवाल पद्धति) सभी प्रशंसा से परे है: निश्चित रूप से यह लैग्रेंज से पहले संख्या-सिद्धान्त में हासिल की गई सबसे बेहतरीन चीज है। -- हर्मन हैंकेल् (1839 - 1873), प्रसिद्ध जर्मन गणितज्ञ
- भारत ही है जिसने हमें दस प्रतीकों के माध्यम से सभी संख्याओं को व्यक्त करने की सरल विधि दी है, प्रत्येक प्रतीक को स्थानीय मान के साथ-साथ पूर्ण मान भी प्राप्त होता है। आर्किमिडीज और अपोलोनियस की प्रतिभा भी यहाँ तक नहीं पहुँच पायी। -- पी. एस. लाप्लास, प्रमुख फ्रांसीसी गणितज्ञ
- सभी दार्शनिक और गणितीय सिद्धान्त जो पाइथागोरस के बताये जाते हैं, लगभग वे सभी भारत से प्राप्त हुए हैं। -- लियोपोल्ड वॉन श्रोएडर (1851-1920) जर्मन भारतविद्
- हम भारतीयों के अत्यन्त ऋणी हैं जिन्होंने हमें गिनना सिखाया, जिसके बिना कोई सार्थक वैज्ञानिक खोज नहीं की जा सकती। -- अल्बर्ट आइंस्टीन[५]
- संस्कृत में केवल ज्योतिष शास्त्र की ही १ लाख से अधिक पाण्डुलिपियाँ हैं। इनमें से कम से कम ३० हजार पाण्डुलिपियाँ गणित या खगोलिकी से हैं। -- अमेरिकी विद्वान डेविड पिंगरी, 'Census of Exact Sciences in Sanskrit' में।[६][७]
- ...nor did he [Thibaut] formulate the obvious conclusion, namely, that the Greeks were not the inventors of plane geometry, rather it was the Indians. -- A Seidenberg [८]
- Anyway, the damage had been done and the Sulvasutras have never taken the position in the history of mathematics that they deserve. -- A Seidenberg[९]
- I ndeed, if one understands by algebra, the application of arithmetical operations to complex magnitudes of all sorts, whether rational or irrational numbers or space-magnitudes, then the learned Brahmins of Hindostan are the real inventors of algebra. -- H Hankel
- The intellectual potentialities of the Indian nation are unlimited and not many years would perhaps be needed before India can take a worthy place in world Mathematics. -- (Andre Weil in 1936)
- The Hindus solved problems in interest, discount, partnership, alligation, summation of arithmetical and geometric series, and devised rules for determining the numbers of combinations and permutations. It may here be added that chess, the profoundest of all games, had its origin in India. -- F Cajori[१०]
सन्दर्भ
[सम्पादन]- ↑ गणितसारसङ्ग्रहः रङ्गाचार्येणानूदितः
- ↑ Indic Mathematics: India and the Scientific Revolution
- ↑ Facts About Hinduism : Mathematics
- ↑ THE GREATNESS OF ANCIENT INDIA’S DEVELOPMENTS
- ↑ Collection of Quotes on Indian Mathematics
- ↑ THE UNTAPPED WEALTH OF MANUSCRIPTS ON INDIAN ASTRONOMY AND MATHEMATICS
- ↑ Decoding manuscripts on mathematics
- ↑ Mathematics in Ancient India
- ↑ Mathematics in Ancient India
- ↑ F Cajori, History of Mathematics, Mac ~illan, 193