पृथ्वी

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  • माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः -- अथर्ववेद, भूमिसूक्त
अर्थ : पृथ्वी मेरी माता है और मैंं उसका पुत्र हूँ।
  • सत्यं बृहदृतमुग्रं दीक्षा तपो ब्रह्म यज्ञः पृथिवीं धारयन्ति ।
सा नो भूतस्य भव्यस्य पत्न्युरुं लोकं पृथिवी नः कृणोतु ॥ -- अथर्ववेद, भूमिसूक्त
अर्थात - महान् सत्य, कठोर नैतिक आचरण, शुभ कार्य करने का दृढ़ संकल्प, तपस्या, वैदिक स्वाध्याय अथवा ब्रह्मज्ञान और सर्वलोकहित के लिये समर्पित जीवन पृथ्वी को धारण करते हैं। इस पृथ्वी ने भूत काल में जीवों का पालन किया था और भविष्य काल में भी जीवों का पालन करेगी। इस प्रकार की पृथ्वी हमें निवास के लिए विशाल स्थान प्रदान करे।