कूटनीति

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  • कुलीनः कुलसम्पन्नो वाग्मी दक्षः प्रियंवचः।
यथोक्तवादी स्मृतिवान् दूतः स्यात् सप्तभिर्गुणैः ॥ -- महाभारत
कुलीनता, कुलसम्पन्नता, वाक्चातुर्य, दक्षता, प्रियवादिता, उचित संदेशवहन और स्मृतिशक्ति – ये दूत के सात गुण हैं।
  • नूनं व्याकरणं क्रित्स्नं अनेन बहुधा श्रुतम्।
बहु व्याहरतानेन न किंचिदपभाषितम् ॥
अविस्तरं असन्दिग्धं अविलम्बितं अद्रुतम्।
उरस्थं कन्ठगं वाक्यं वर्तते मध्यमे स्वरे ॥
उच्चारयति कल्याणीं वाचं हृदयदारिणीम्।
कस्य नाराध्यते चित्त्तमुद्यतासेररेरपि ॥
एवं विधो यस्य दूतो न भवेत् पार्थिवस्य तु।
सिध्यन्ति ही कथं तस्य कार्याणां गतयोनघ ॥ -- हनुमान का परिचय क्राते हुए राम लक्ष्मण से, रामायण में
अवश्य ही इन्होने सम्पूर्ण व्याकरण सुन लिया लिया है क्योंकि बहुत कुछ बोलने के बाद भी इनके भाषण में कोई त्रुटि नहीं मिली। यह बहुत अधिक विस्तार से नहीं बोलते; असंदिग्ध बोलते हैं; न धीमी गति से बोलते हैं और न तेज गति से। इनके हृदय से निकलकर कंठ तक आने वाला वाक्य मध्यम स्वर में होता है। ये कयाणमयी वाणी बोलते हैं जो दुखी मन वाले और तलवार ताने हुए शत्रु के हृदय को छू जाती है। यदि ऐसा व्यक्ति किसी का दूत न हो तो उसके कार्य कैसे सिद्ध होंगे?
  • राजा को राजदूत नियुक्त कर देना चाहिये, सेना को सेनापति पर आश्रित रहना चाहिये, प्रजा पर नियंत्राण सेना पर निर्भर करता है, राज्य की सरकार राजा पर, शांति और युद्ध राजदूत पर। -- मनु
  • योग्य व चतुर राजदूत मित्र राज्यों में मतभेद तथा शत्रु राज्यों के बीच मित्रता स्थापित करने में सफल होता है। -- मनु
  • दूत के तीन प्रमुख कार्य हैं- दूसरे राजा के साथ युद्ध अथवा शांति की घोषणा करना, संधियां करना और विदेशों में रहकर कार्य करना। -- मनु
  • राजा को आवश्यकता तथा परिस्थिति अनुसार अपने पड़ोसी राज्यों के साथ मित्रता, शत्रुता, आक्रमण, उपेक्षा, संरक्षण अथवा फूट डालने का प्रयत्न करना चाहिये। -- याज्ञवल्क्य स्मृति
  • दूतों के माध्यम से राज्य को अपने शत्रु और मित्र दोनों ही पक्षों के अभिलाषित विषय का ज्ञान प्राप्त कर लेना चाहिये। -- महाभारत
  • मैं तुम्हारी बात को कौरवों के दरबार में अच्छी प्रकार से रखूंगा और प्राणप्रण से यह चेष्टा करूंगा कि वे तुम्हारी मांग को स्वीकार कर लें। यदि मेरे सारे प्रयत्न असफल हो जायेंगे और युद्ध अवश्यम्भावी होगा, तो हम संसार को दिखायेंगे कि कैसे हम उचित नीति का पालन कर रहे हैं और वे अनुचित नीति का, जिससे विश्व हम दोनों के साथ अन्याय नही कर सके। -- कृष्ण, महाभारत में
  • सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि॥ -- रामचरितमानस, सुन्दरकाण्ड
(श्री रामजी फिर बोले-) जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान करके शरण में आए हुए का त्याग कर देते हैं, वे पामर (क्षुद्र) हैं, पापमय हैं, उन्हें देखने में भी हानि है (पाप लगता है)।
  • कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू। आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू ।
सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं॥
जिसे करोड़ों ब्राह्मणों की हत्या लगी हो, शरण में आने पर मैं उसे भी नहीं त्यागता। जीव ज्यों ही मेरे सम्मुख होता है, त्यों ही उसके करोड़ों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
  • घृणिततम बात को अतिसुन्दर ढंग से कहना और करना ही कूटनीति है। -- आइजाक
  • अशान्त जल में शन्तिरुपी मछली को खोजने की कला का नाम कूटनीति हैं। -- जे. सी. हेरोल्ड
  • कूटनीतिज्ञ : जो किसी घिसे-पिटे वाक्य और किसी गफलत के बीच हमेशा झूलता रहे और जनता को झुलाता रहे। -- हेराल्ड मैकमिलन
  • मुट्ठियां बाँध कर किसी से हाथ मिलाने की कला को कूटनीति कहते हैं। -- अज्ञात
  • कूटनीति मानवीय गुणों के विरूद्ध एक ऐसा दुर्गुण है जिसने दुनिया के बहुत बड़े भाग को गुलामी के जंजीरों में जकड़ रखा है और जो मानवता के विकास में सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है। -- रोमां रोलां
  • कूटनीतिज्ञ वह व्यक्ति है जो आपसे नर्क में जाने के लिए इस प्रकार कह सके कि आप सचमुच उसके संकेत के अनुसार तैयार होने लगें। -- कैसकी सिटनेट
  • केवल वीरता से नहीं, नीतियुक्त वीरता से जय होती है। -- अज्ञात
  • जैसे पानी को कभी सुखाया नहीं जा सकता हैं, ठीक उसी प्रकार किसी कूटनीतिज्ञ को कभी ईमानदार नहीं कहा जा सकता। -- जोसेफ स्टॅलिन
  • जिसे कूटनीति का अच्छा ज्ञान होता हैं, वही राजनीति में सफल होता है। -- अज्ञात

इन्हें भी देखें[सम्पादन]