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कर्म

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  • अकर्मा दस्यु रभि नो अमन्तुर न्य व्रतो अमानुषः।
त्वं तस्या मित्र हन्व धर्दा सस्य दम्भयः॥ -- ऋग्वेद
जो कर्म नहीं करता वह दस्यु है। उसे कोई सुख न होवे, तुम शत्रुओं के समान उसका वध कर दो अथवा दास के समान उस पर अनुशासन करो।
  • कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः।
एवं त्वयि ना न्यचेतोअस्ति न कर्मं लिप्यते नरे॥ -- ईशावास्‍योपनिषद्
इस संसार में (अच्छे) कर्म करते हुए सौ वर्ष तक जीवन जीने की इच्छा करनी चाहिए। इस प्रकार जो धर्मयुक्त कर्मों में लगा रहता है, वह अधर्मयुक्त कर्मों में अपने को नहीं लगाता।
  • किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः।
तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्॥ -- गीता ४.१६
कर्म क्या है और अकर्म क्या है - इस प्रकार इस विषयमें विद्वान् भी मोहित हो जाते हैं। अतः वह कर्म-तत्त्व मैं तुम्हें भलीभाँति कहूँगा, जिसको जानकर तू अशुभ- (संसार-बन्धन-) से मुक्त हो जायगा।
  • कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। -- गीता
अर्थ : कर्म करने में ही तुम्हारा अधिकार है, कभी भी फल में नहीं।
  • ज्ञानं ज्ञेयं परिज्ञाता त्रिविधा कर्मचोदना।
करणं कर्म कर्तेति त्रिविधः कर्मसंग्रहः॥ -- भगवद्गीता ; अध्याय-१८
ज्ञान, ज्ञेय और परिज्ञाता -- इन तीनों से कर्मप्रेरणा होती है तथा करण, कर्म और कर्ता -- इन तीनों से कर्मसंग्रह होता है।
  • कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः।
अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः॥ -- श्रीमद् भगवद्गीता, ४-१७
कर्म का तत्त्व भी जानना चाहिये और अकर्म का तत्त्व भी जानना चाहिये तथा विकर्म का तत्त्व भी जानना चाहिये; क्योंकि कर्म की गति गहन है।
  • तत्कर्म यन्न बन्धाय सा विद्या या विमुक्तये।
आयासायापरं कर्म विद्याऽन्या शिल्पनैपुणम् ॥ -- विष्णुपुराण १-१९-४१
कर्म वह है जो बन्धन में न डाले ; विद्या वह है जो मुक्त कर दे। अन्य कर्म करना मात्र श्रम करना है तथा अन्य विद्याएँ शिल्प में निपुणता मात्र हैं।
  • ननुनाभुक्तं क्षीयते कर्म कल्पकोटिशतैरपि।
अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्॥ -- ब्रह्मवैवर्तपुराण १/४४/७४
मनुष्य जो कुछ अच्छा या बुरा कार्य करता है, उसका फल उसे भोगना ही पड़ता है। अनन्त काल बीत जाने पर भी कर्म, फल को प्रदान किए बिना नाश को प्राप्त नहीं होता।
  • न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ॥ भगवद्गीता, अध्याय-३
निःसंदेह कोई भी मनुष्य किसी भी काल में क्षणमात्र भी बिना कर्म किए नहीं रहता क्योंकि सारा मनुष्य समुदाय प्रकृति जनित गुणों द्वारा परवश हुआ कर्म करने के लिए बाध्य किया जाता है।
  • गुरुलाघवमर्थानामारम्भे कर्माणां फलम् ।
दोषं वा यो न जानाति स बाल इति होच्यते ॥ -- रामायण, अयोध्याकाण्ड
Before starting on an endeavor if one does not analyze the outcome of his actions in terms of profit-loss, good-bad then he can only be branded as foolish (or naive).
  • सकल पदरथ एहि जग माँही । करमहीन नर पावत नाहीं॥ -- तुलसीदास
अर्थ : इसी संसार में सभी पदार्थ मौजूद हैं किन्तु कर्महीन व्यक्ति को वे नहीं मिलते।
  • काल्ह करै सो आज कर, अज करै सो अब।
पल में परलय होयगी, बहुरि करैगा कब॥ (कबीरदास)
  • करम गति टारै नाहिं टरी॥
मुनि वसिस्थ से पण्डित ज्ञानी, सिधि के लगन धरि।
सीता हरन मरन दसरथ को, बन में बिपति परी॥1॥
कहँ वह फन्द कहाँ वह पारधि, कहँ वह मिरग चरी।
कोटि गाय नित पुन्य करत नृग, गिरगिट-जोन परि॥2॥
पाण्डव जिनके आप सारथी, तिन पर बिपति परी।
कहत कबीर सुनो भै साधो, होने होके रही॥3॥ -- कबीरदास
  • कर्मणा सिद्धिः । (कर्म से ही सिद्धि मिलती है।)
  • कर्मप्रधान बिश्व रचि राखा।
जो जस करई सो तस फल चाखा॥ (तुलसीदास)
अर्थ - यह विश्व कर्मप्रधान है। जो जैसा करता है वह वैसा ही फल पाता (चखता) है।
  • ज्ञानं भारः क्रियां बिना। -- हितोपदेश
आचरण के बिना ज्ञान केवल भार होता है।
  • उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
नहिं सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥ -- हितोपदेश
कार्य उद्यम से ही सिद्ध होते हैं , मनोरथ मात्र से नहीं। सोये हुए शेर के मुख में मृग प्रवेश नहीं करते।
  • देह शिवा बर मोहि इहै , शुभ करमन तें कबहूँ न टरौं ।
जब जाइ लरौं रन बीच मरौं , या रण में अपनी जीत करौं ॥ -- गुरू गोविन्द सिंह, दसम ग्रन्थ में
  • निज-कर-क्रिया रहीम कहि , सिधि भावी के हाथ ।
पांसा अपने हाथ में , दांव न अपने हाथ ॥
  • जो क्रियावान है , वही पण्डित है । ( यः क्रियावान् स पण्डितः )
  • जीवन की सबसे बडी क्षति मृत्यु नही है । सबसे बडी क्षति तो वह है जो हमारे अन्दर ही मर जाती है । -- नार्मन कजिन
  • आरम्भ कर देना ही आगे निकल जाने का रहस्य है। -- सैली बर्जर
  • जो कुछ आप कर सकते हैं या कर जाने की इच्छा रखते है उसे करना आरम्भ कर दीजिये । निर्भीकता के अन्दर मेधा ( बुद्धि ), शक्ति और जादू होते हैं । -- गोथे
  • छोटा आरम्भ करो, शीघ्र आरम्भ करो।
  • प्रारम्भ के समान ही उदय भी होता है । ( प्रारम्भसदृशोदयः ) -- रघुवंश महाकाव्यम्
  • यो विषादं प्रसहते विक्रमे समुपस्थिते ।
तेजसा तस्य हीनस्य पुरुषार्थो न सिद्धयति ॥ -- वाल्मीकि रामायण
पराक्रम दिखाने का समय आने पर जो पीछे हट जाता है, उस तेजहीन का पुरुषार्थ सिद्ध नही होता।
  • हजारों मील की यात्रा भी प्रथम चरण से ही आरम्भ होती है। -- चीनी कहावत
  • सम्पूर्ण जीवन ही एक प्रयोग है। जितने प्रयोग करोगे उतना ही अच्छा है। -- इमर्सन
  • सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आप चौबीस घण्टे मे कितने प्रयोग कर पाते है। -- एडिशन
  • उच्च कर्म महान मस्तिष्क को सूचित करते हैं। -- जान फ़्लीचर
  • मानव के कर्म ही उसके विचारों की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या है। -- लाक
  • जो जैसा शुभ व अशुभ कार्य करता है, वो वैसा ही फल भोगता है । -- वेदव्यास
  • अकर्मण्य मनुष्य श्रेष्ठ होते हुए भी पापी है। -- ऐतरेय ब्राह्मण-३३।३
  • मानव के कर्म ही उसके विचारों की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या है । -- जान लाक
  • मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है । -- विनोबा
  • सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही महान फल देता है । -- कथासरित्सागर

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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