उद्यम
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- उद्यमेन हि सिध्यन्ति कर्याणि न मनोरथै:
- नहि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥
- उद्यम से ही कार्य पूरा होते हैं, केवल इच्छ करने से नहीं। सोये हुए शेर के मुँह में हिरण प्रवेश नहीं करते।
- उद्यमः साहसं धैर्य बुद्धिः शक्ति पराक्रमः।
- षडेते यत्र वर्तन्ते तत्र दैवो सहायकः॥
- उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम - ये छः जहाँ होते हैं वहाँ भाग्य भी साथ देता है।
- उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी
- दैवेन देयमिति कापुरुषा वदन्ति ।
- दैवं निहत्य कुरु पौरुषमात्मशक्त्या
- यत्नेकृते यदि न सिद्ध्यति कोऽत्रदोषः॥ (भर्तृहरि)
- लक्ष्मी कर्म करने वाले पुरुषरूपी सिंह के पास आती है, "देवता (भाग्य) देने वाला हैं" ऐसा तो कायर पुरुष कहते हैं। इसलिए देव (भाग्य) को छोड़ कर अपनी शक्ति से पौरुष (कर्म) करो, प्रयत्न करने पर भी यदि कार्य सिद्ध नहीं होता है तो देखो क्या समस्या है (कोई और समस्या तो नहीं?)।
- विद्या-धन उद्यम बिना, कहा जु पावै कौन।
- बिना डुलाए ना मिले, ज्यों पंखा कौ पौन॥ (वृन्द)
- विद्या रूपी धन और उद्यम के बिना किसको क्या मिलता है? जिस प्रकार बिना पंखे को डुलाये पवन (हवा) नहीं मिलता।
- यथा हि एकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत् ।
- एवं पुरुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति ॥
- जिस प्रकार केवल एक पहिये से रथ चल नहीं सकता, उसी प्रकार पुरुषार्थ के बिना भाग्य भी सिद्ध नहीं होता।
- तुलसी उद्यम करम जुग, जब जेहि राम सुडीठि।
- होइ सुफल सोइ ताहि सब, सनमुख प्रभु तन पीठि॥ (तुलसीदास)