शुभ

विकिसूक्ति से
  • ब्राह्मणाक्षत्रिया वैश्याः शूद्रद्रोहिजनस्तिथा।
भाविताः पूर्णजा तीषु कर्मभिश्चशुभाशुभैः॥ -- वायुपुराण
सृष्टि के आदि काल में कर्मों के शुभ या अशुभ होने के अनुसार ब्राह्मणादि वर्ण बनाये गये थे।
  • एभिस्तु कर्म्मभिर्देवि शुभैराचरितैस्तथा।
शूद्रो ब्राह्मणातां गच्छेद्वैश्यः क्षत्रियतां ब्रजेत॥ -- महाभारत
हे देवि ! इन कर्मों के पालन करने से तथा शुभ आचरण से शूद्र भी ब्राह्मण बन जाता है और वैश्य क्षत्रिय हो जाता है।
  • नाभुक्तं क्षीयते कर्म कल्पकोटिशतैरपि।
अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम् ॥ -- ब्रह्मवैवर्तपुराणम्
किये हुए कर्म का फल सौ करोड़ कल्प तक भी क्षय नहीं होता। जो जैसा शुभ या अशुभ कर्म करता है, अवश्य ही उसका फल भोगेगा।
  • देह शिवा बर मोहि इहै , शुभ करमन तें कबहूँ न टरौं ।
जब जाइ लरौं रन बीच मरौं , या रण में अपनी जीत करौं ॥ -- गुरु गोविन्द सिंह, दसम ग्रन्थ में
  • शुभस्य शीघ्रम् अशुभस्य कालहरणम् । -- मरणासन्न रावण का लक्ष्मण को उपदेश
जब शुभ कर्म करने की इच्छा हो तो तुरन्त करना चाहिये किन्तु अशुभ कार्य करने की इच्छा होने पर उसमें देरी करनी चाहिये।
  • उपकारान् स्मरेन्नित्यम् अपकारांश्च विस्मरेत् ।
शुभे शैध्यं प्रकुर्वीत अशुभे दीर्घसूत्रता ॥ -- वाल्मीकि रामायण
उपकार को सदा याद रखना चाहिये और अपकार को भूल जाना चाहिये। शुभकार्य में शीघ्रता करनी चाहिये और अशुभ कार्य में दीर्घसूत्रता (टालमटोल)।

इन्हें भी देखें[सम्पादन]