रॉबर्ट ओपेनहाइमर

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जुलियस रॉबर्ट ओपेनहाइमर (22 अप्रैल 1904 – 18 फरवरी 1967) अमेरिका के एक भौतिकविज्ञानी थे। वे मैनहट्टन परियोजना के निदेशक थे। इसी परियोजना के परिणामस्वरूप परमाणु बम बने और १९४५ में जापान पर गिराये गये।

ओपेनहाइमर आत्म आनन्द के लिये गीता पढ़ते थे और कभी-कभी इसे मित्रों के साथ साझा भी करते थे। उनके प्रिंसटन के अध्ययन कक्ष में गीता की एक प्रति मौजूद थी। उन्होंने बर्कली के प्रोफेसर आर्थर डब्ल्यू. राइडर से संस्कृत की शिक्षा भी ली थी। इसे वे अपनी आठवीं भाषा बना लिए थे। उन्होंने अपनी मोटरकार का नाम 'गरुड' रखा था।

उक्तियाँ[सम्पादन]

  • मैं यदि यह कहूँ कि मुझे मित्रों की अपेक्षा भौतिकी की अधिक आवश्यकता है तो इसमें कुछ अटपटा नहीं है। -- अपने भाई फ्रैंक ओपेनहाइमर को लिखे पत्र में (14 अक्टूबर 1929)
  • इस प्रस्ताव (प्रमाणु बम बनाने का प्रस्ताव) में मानवता के लिये भीषण संकट छिपा हुआ है जो इससे होने वाले किसी भी सैनिक लाभ से बहुत बड़ा है। -- रॉबर्ट ओपेनहाइमर और अन्य, सन १९४९ की सामान्य सलाहकार समिति की रिपोर्ट में।
  • प्रकृति के संसार में कोई रहस्य नहीं है। (लेकिन) मनुष्य के विचार और इच्छाएँ रहस्य से भरी हुई हैं। -- एडवर्ड आर मर्रो के साथ साक्षात्कार में (१९५५)।
  • विज्ञान का इतिहास ऐसे उदहरणों से भरा पड़ा है जिनमें अलग-अलग सन्दर्भ में विकसित हुईं दो तकनीकों, दो विचारों को किसी नये सत्य के आविष्कार के लिये एकसाथ लाना फलदायी रहा है। -- Science and the Common Understanding (1954); 1953 के Reith lectures पर आधारित।
  • मानव और जीवन के अन्य रूपों के के भविष्य के बारे में बहुत कुछ कहा गया है, कि ये लुप्त हो जायेंगे। समय आने पर, शायद बहुत लम्बा समय न लगे, यह सम्भव हो सकता है। इससे भी अधिक सुनिश्चित और शीघ्र होने वाली बात यह है कि मानव की अधिकांश विरासत नष्ट हो जायेगी और वे सारी चीजे नष्ट हो जायेंगी जिनसे हमारी सभ्यता और मानवता बनी हुई है। -- विज्ञान और हमारा युग ( Science and our Times), 1956
  • जब तक ब्लास्ट पूरा नहीं हुआ तब तक हम प्रतीक्षा करते रहे, उसके बाद शरणागाह से बहर आये और इसके बाद वातावरण अत्यन्त मौन हो गया। हम जानते थे कि संसार वही नहीं रहा। कुछ लोग हंसे, कुछ लोग रोये, अधिकांश लोग मौन थे। हिन्दू धर्मग्रन्थ भगवद्गीता की ये पंक्तियाँ मुखे याद आयीं- विष्णु (श्रीकृष्ण) राजकुमार (अर्जुन) को समझा रहे हिं कि वह अपना कर्तव्य करे। और, अर्जुन को प्रभावित करने के लिये वे अपना बहुभुज रूप दिखाते हैं और कहते हैं कि अब मैं संसार का नाश करने वाली मृत्यु हूँ।[१] मुझे लगता है कि हम सभी किसी न किसी रूप में यही सोच रहे थे। -- एक साक्षात्कार में 'ट्रिनिटी' नामक प्रथम परमाणु बम परीक्षण के बारे में बोलते हुए ; यह एक टीवी डॉक्युमेंटरी के रूप में प्रसारित हुआ था जिसका नाम था "The Decision to Drop the Bomb" (1965)
  • विज्ञान सब कुछ नहीं है लेकिन विज्ञान बहुत सुन्दर है। -- "With Oppenheimer on an Autumn Day", Look, Vol. 30, No. 26 (19 December 1966) के अन्तिम कुछ शब्द
  • यह एक गहन और आवश्यक सत्य है कि विज्ञान की गहरी चीजों का ज्ञान इस कारण नहीं हुआ कि वे उपयोगी थीं बल्कि उनका ज्ञान इस कारण हो पाया कि उनको पाना सम्भव था। -- रॉबर्ट वी मूडी द्वारा "Why Curiosity Driven Research?" में उद्धृत (17 February 1995)

हिन्दू धर्म और गीता पर[सम्पादन]

  • मैंने यूनानी साहित्य पढ़ा है, मैं हिन्दुओं के साहित्य को उससे अधिक गहन पाता हूँ। - - प्राचीन यूनानियों के साहित्य पर डेविड हकिंस से चर्चा करते हुए, द्वितीय विश्वयुद्ध के पूर्व[२]
  • गीता अत्यन्त सरल और अद्भुत है। यह किसी भी ज्ञात वर्तमान भाषा की सबसे सुन्दर दार्शनिक गीत है। -- अपने भाई फ्रैंक को लिखे पत्र में

इन्हें भी देखें[सम्पादन]

सन्दर्भ[सम्पादन]

  1. कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।
  2. Scott et al. 1994, p. 60.