राममनोहर लोहिया
डॉ राम मनोहर लोहिया (23 मार्च 1910 - 12 अक्टूबर 1967) भारत के उन कुछ चुनिन्दा राजनेताओं में शुमार किए जा सकते हैं जो मौलिक विचारक होने के साथ-साथ देश में मातृभाषा के पक्षधर थे। वे गैर-कांग्रेसवाद के शिल्पी थे, और उन्हीं के अथक प्रयास से कभी अपराजेय समझी जाने वाली कांग्रेस सन् 67 तक कई राज्यों में चुनाव हारी। वे देश में 'अंग्रेजी हटाओ' आन्दोलन के प्रणेता थे और इस मुद्दे पर वे बेबाक राय रखते थे। उनके लिए स्वभाषा राजनीति का मुद्दा नहीं बल्कि अपने स्वाभिमान का प्रश्न और लाखों-करोड़ों को हीन ग्रंथि से उबरकर आत्मविश्वास से भर देने का स्वप्न था। डॉ लोहिया न केवल एक गंभीर चिन्तक थे बल्कि सच्चे कर्मवीर भी थे। वे लोहिया ही थे जो राजनीति की गंदी गली में भी शुचिता व शुद्ध आचरण की बात करते थे। वे एक मात्र ऐसे नेता थे जिन्होंने अपनी पार्टी की सरकार से खुलेआम त्यागपत्र की मांग की, क्योंकि उस सरकार के शासन में आंदोलनकारियों पर गोली चलाई थी।
विचार
[सम्पादन]भारत में अंग्रेजी
[सम्पादन]- अंग्रेजो ने सिर्फ बंदूक की गोली और अंग्रेजी बोली के बल पर हम पर राज किया।
- जितने अंग्रेजी अख़बार भारत में छपते हैं उतना तो अंग्रेजों के देश में भी नहीं छपते। अंग्रेजी का दबदबा इतना कहीं नहीं है। इस कारण भारत आज आजाद होते हुए अंग्रेजी का गुलाम है।
- अंग्रेजी के प्रयोग से आप अपना मौलिक सोच नहीं सकते। इसलिए हमें गर्व से हिन्दी अपनाना चाहिए।
- मेरी यही इच्छा है कि हमारे देश के लोग अंग्रेजी न आने पर शर्माएं नहीं बल्कि गर्व करें क्योंकि वो भला शरीर ही किस काम की जहाँ की आत्मा अपने सोच और अपनी भाषा से नहीं हो।
- अंग्रेजी अल्पसंख्यक शासन और शोषण का एक साधन है, जिसका प्रयोग 40 या 50 लाख अल्पसंख्यक रूलिंग क्लास इंडियंस 40 करोड़ से अधिक लोगों पर अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए प्रयोग कर रहे हैं।
- अर्थव्यवस्था में एक माध्यम के तौर पर अंग्रेजी का प्रयोग काम की उत्पादकता को घटाता है। शिक्षा में सीखने को कम करता है और रिसर्च को लगभग ख़त्म कर देता है, प्रशासन में क्षमता को घटाता है और असमानता तथा भ्रष्टाचार को बढ़ाता है।
- अंग्रेजों ने बंदूक की गोली और अंग्रेजी की बोली से हमपर राज किया।
- अंग्रेजी का इतना दबदबा कहीं नहीं है। इसीलिए भारत आजाद होते हुए भी गुलाम है।
- अंग्रेजी का प्रयोग मौलिक सोच में अवरोध है, हीनता की भावनाओं का प्रजनक है और शिक्षित एवं अशिक्षित जनता के बीच की दूरी है। आइये, हम हिंदी की असल प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित करने के लिए संगठित हो जाएं।
जाति
[सम्पादन]- जात-पात भारतीय जीवन की सबसे सशक्त प्रथा रही है, यहाँ जीवन जाति की सीमाओं के भीतर ही चलता है।
- जाति व्यवस्था भारतीय जीवन की सबसे ताकतवर पहलू बन गया है। हम सिर्फ जाति बन्धन में जीते ही नही बल्कि इसे व्यवहार में भी लेकर चलते हैं।
- जाति अवसर को सीमित करती है। सीमित अवसर क्षमता को संकुचित करता है। संकुचित क्षमता अवसर को और भी सीमित कर देती है। जहाँ जाति का प्रचलन है, वहां अवसर और क्षमता हमेशा से सिकुड़ रहे कुछ लोगों के दायरे तक सीमित है।
- भारत में कौन राज करेगा ये तीन चीजों से तय होता है। उंची जाति, धन और ज्ञान। जिनके पास इनमे से कोई दो चीजें होती हैं वह शासन कर सकता है।
- भारत में जाति एक ऐसा अभेद किला बन गया है जिसे तोड़ नहीं सकते।
- जाति प्रथा को तोड़ने का एक ही उपाय है, वह है ऊँची और नीची जातियों के बीच बराबर के हिस्से का रोटी और बेटी का सम्बन्ध।
- जाति प्रथा के विरोध से ही देश में एक नई सोच आएगी इससे सबको नवजीवन मिलेगा, सबका उत्थान होगा।
- जाति प्रथा के विरुद्ध विद्रोह से ही देश में जागृति आयेगी।।
- आधुनिक अर्थव्यवस्था के माध्यम से गरीबी को दूर करने के साथ, ये अलगाव (जाति के) अपने आप ही गायब हो जाएंगे।
- भारत में असमानता सिर्फ आर्थिक ही बल्कि सामाजिक और जाति व्यवस्था पर भी है।
- भारत में असमानता सिर्फ आर्थिक नहीं है; यह सामाजिक भी है।
राजनीति / समाजवाद
[सम्पादन]- हिन्दुस्तान में मेरी जिन्दगी का मकसद है सबकी बराबरी, जनतंत्र, विवेकीकरण, अहिंसा और समाजवाद।
- समाजवाद के जरिये दरिद्रता का बंटवारा नही बल्कि समृद्धि का आपसी वितरण है।
- छोटे-छोटे समूहों के शक्ति से इस विशाल लोकतंत्र का अस्तित्व सम्भव है।
- लोगों के छोटे समूहों को शक्ति देकर, प्रथम श्रेणी का लोकतंत्र संभव है।
- भारतीय राजनीति में अच्छाई और सच्चाई तभी देखने को मिल सकता है जब लोग चेहरे और पार्टी से से नहीं बल्कि कार्यों से लोगों की पहचान, तारीफ और आलोचना करें।
- यदि एक समाजवादी सरकार बल प्रयोग करे, जिसके परिणामस्वरूप कुछ लोगों की मौत हो जाए तो तो उसे शासन करने का कोई अधिकार नहीं है।
क्रान्ति
[सम्पादन]- भड़भड़ बोलने वाले क्रांति नहीं कर सकते, ज्यादा काम भी नहीं कर सकते। तेजस्विता की जरूरत है बकवास की नहीं।
- जिन्दा कौमें किसी भी बदलाव के लिए ५ साल का इन्तजार नही करतीं।
- जब भी सामाजिक परिवर्तन के कार्य प्रारम्भ होते हैं तो जरुर कुछ लोग इसका विरोध भी करेंगे और विरोध करते भी है।
- क्रांति टुकड़ों से नहीं बल्कि सामूहिक एकता से ही किया जा सकता है।
- जब जुल्म बढ़ जाए तो वक्त के पहले भी सरकारों को बदल देना चाहिए।
- बिना काम के सत्याग्रह क्रिया के बिना एक वाक्य की तरह है।
- मार्क्सवाद एशिया के खिलाफ यूरोप का अंतिम हथियार है।
अर्थनीति
[सम्पादन]- यदि हमारे कृषि को यंत्रीकृत कर दिया जाए तो इस आधार पर 8 करोड़ किसानो को शहरों में जाना पड़ेगा।
- अगर भारत बड़े पैमाने पर टेक्नोलॉजी का प्रयोग करता है, तो करोड़ों लोगों को ख़त्म करने की आवश्यकता पड़ेगी।
- अपने आर्थिक उद्देश्य में, पूंजीवाद बड़े पैमाने पर उत्पादन, कम लागत और मालिकों को लाभ पहुंचाना चाहता है।
- मिडल स्कूल तक शिक्षा मुफ्त और अनिवार्य होनी चाहिए और उच्च स्तर पर शैक्षिक सुविधाएं मुफ्त या सस्ते में उपलब्ध कराई जानी चाहिए, खासतौर से अनुसूचित जाति, जनजाति और समाज के अन्य गरीब वर्गों को। मुफ्त या सस्ती आवासीय सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
- हमें समृद्धि बढानी है, कृषि का विस्तार करना है, फैक्ट्रियों की संख्या अधिक करनी है लेकिन हमें सामूहिक सम्पत्ति बढाने के बारे में सोचना चाहिए; अगर हम निजी सम्पति के प्रति प्रेम को ख़त्म करने का प्रयास करें, तो शायद हम भारत में एक नए समाजवाद की स्थापना कर पाएं।
नारी
[सम्पादन]- नारी को गठरी के समान नहीं बल्कि इतनी शक्तिशाली होनी चाहिए कि समय आने पर पुरुष को गठरी बनाकर अपने साथ ले चले।
- भारतीय नारी को द्रौपदी के आदर्शो पर चलने वाली होनी चाहिए जिसने कभी भी पुरुषों के आगे हार नही खायी।
- इस देश की स्त्रियों का आदर्श सीता सावित्री नहीं, द्रौपदी होनी चाहिए।
- आज हिंदुस्तान की युवा सोच विकृत हो गयी है। यौन सम्बन्ध जितने पवित्र होते हैं उतने ही उसके प्रति आज की लोगो की गंदे विचार हो गये हैं।
विविध
[सम्पादन]- त्याग हमेशा जीवन को शांति और संतोष देने वाला होता है।
- ज्ञान और दर्शन से सब काम नहीं होता। ज्ञान और आदत, दोनों को ही सुधारने से मनुष्य सुधरता है।
- आज के युवाओं को आगे बढ़ने के लिए नये नेतृत्त्व और नये खूबियों की जरूरत है।
- हमें अपना कार्य वहाँ भी करते रहना चाहिए जहाँ इसकी कदर भी ना हो।
- मेरी सबसे बड़ी यही उपलब्धि है कि हर भारतीय मुझे अपना समझता है।
- सड़कें उस दिन सुनसान हो जाएंगी जिस दिन ये संसद आवरा हो जायेगा।
- मर्यादा केवल न करने की नहीं होती है, करने की भी होती है। बुरे की लकीर मत लांघो, लेकिन अच्छे की लकीर तक चहल पहल होनी चाहिए।