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भारत में जाति प्रथा

विकिसूक्ति से
  • जाति-पांति पूछे नहिं कोई , हरि को भजै सो हरि को होई। -- स्वामी रामानन्द
  • जनम जात मत पूछिए, का जात अरू पात।
रैदास पूत सब प्रभु के, कोए नहिं जात कुजात॥ -- सन्त रविदास
सन्त रविदास (रैदास) कहते हैं कि किसी की जाति नहीं पूछनी चाहिए क्योंकि संसार में कोई जाति−पाँति नहीं है। सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं। यहाँ कोई जाति, बुरी जाति नहीं है।
  • रैदास इक ही बूंद सो, सब ही भयो वित्थार।
मुरखि हैं तो करत हैं, बरन अवरन विचार॥ -- सन्त रविदास
रविदास कहते हैं कि यह सृष्टि एक ही बूँद का विस्तार है अर्थात् एक ही ईश्वर से सभी प्राणियों का विकास हुआ है; फिर भी जो लोग जात-कुजात का विचार अर्थात् जातिगत भेद−विचार करते हैं, वे नितान्त मूर्ख हैं।
  • रैदास ब्राह्मण मति पूजिए, जए होवै गुन हीन।
पूजिहिं चरन चंडाल के, जउ होवै गुन प्रवीन॥ -- रविदास
रैदास कहते हैं कि उस ब्राह्मण को नहीं पूजना चाहिए जो गुणहीन हो। गुणहीन ब्राह्मण की अपेक्षा गुणवान चांडाल के चरण पूजना श्रेयस्कर है।
  • जात पांत के फेर मंहि, उरझि रहइ सब लोग।
मानुषता कूं खात हइ, रैदास जात कर रोग॥ -- सन्त रविदास
अज्ञानवश सभी लोग जाति−पाति के चक्कर में उलझकर रह गए हैं। रैदास कहते हैं कि यदि वे इस जातिवाद के चक्कर से नहीं निकले तो एक दिन जाति का यह रोग संपूर्ण मानवता को निगल जाएगा।
  • बेद पढ़ई पंडित बन्यो, गांठ पन्ही तउ चमार।
रैदास मानुष इक हइ, नाम धरै हइ चार॥ -- रविदास
सब मनुष्य एक समान हैं किन्तु उसके चार नाम (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र) रख दिए हैं, जैसे वेद पढ़ने वाला मनुष्य पंडित (ब्राह्मण) और जूता गाँठने वाला मनुष्य चर्मकार (शूद्र) कहलाता है।
  • जात-पात भारतीय जीवन की सबसे सशक्त प्रथा रही है, यहाँ जीवन जाति की सीमाओं के भीतर ही चलता है। -- राममनोहर लोहिया
  • भारत में कौन राज करेगा ये तीन चीजों से तय होता है। उंची जाति, धन और ज्ञान। जिनके पास इनमे से कोई दो चीजें होती हैं वह शासन कर सकता है। -- राममनोहर लोहिया
  • जाति प्रथा को तोड़ने का एक ही उपाय है, वह है ऊँची और नीची जातियों के बीच बराबर के हिस्से का रोटी और बेटी का सम्बन्ध। -- राममनोहर लोहिया
  • आधुनिक अर्थव्यवस्था के माध्यम से गरीबी को दूर करने के साथ, ये अलगाव (जाति के) अपने आप ही गायब हो जाएंगे। -- राममनोहर लोहिया
  • मैं इस बात को जोर दे कर कहना चाहता हूं कि मनु ने जाति की व्यवस्था की स्थापना नहीं की क्योंकि यह उनके बस की बात नहीं थी। मनु के जन्म के पहले भी जाति की व्यवस्था कायम थी। मनु का योगदान बस इतना है कि उन्होंने इसे एक दार्शनिक और वैधानिक आधार दिया। जाति का दायरा इतना बड़ा है कि उसे एक आदमी, चाहे वह जितना ही बड़ा ज्ञाता या शातिर हो, संभाल ही नहीं सकता। -- भीमराव आम्बेडकर, अपने लेख 'जाति का विनाश' में
  • समाज सुधार के दो अर्थ है: एक पारिवारिक सुधार और दूसरा, समाज का पुनर्गठन। विधवा विवाह, बाल विवाह, स्‍त्री शिक्षा आदि पारिवारिक सुधार के अंतर्गत हैं तथा समाज में ऊंच-नीच, छूत-अछूत का अधिकार-भेद, वर्ण भेद या जाति भेद मिटाना सामाजिक सुधार है। हमारे देश में जो सांप्रदायिक बंटवारा (कम्‍यूनल अवार्ड) हुआ, वह सामाजिक सुधार न होने के कारण हुआ। यदि देश की सामाजिक व्‍यवस्‍था ठीक होती, तो सांप्रदायिक बंटवारे का प्रश्‍न ही न उठता।
    इतिहास इस बात का समर्थन करता है कि समुन्‍नत देशों में राजनैतिक क्रांतियों से पहले सामाजिक और धार्मिक क्रांतियां हुई हैं। लूथर द्वारा किया हुआ धार्मिक सुधार यूरोपीय लोगों के राजनैतिक उद्धार का पूर्व लक्षण था। प्‍यूरीटिनिज्‍म एक धार्मिक सुधार था और इसने नए संसार की नींव रखी, अमेरिकी स्‍वतंत्रता का युद्ध जीता। हजरत मुहम्‍मद द्वारा धार्मिक क्रांति होने के बाद ही अरबों ने राजनैतिक शक्ति प्राप्‍त की। भगवान बुद्ध द्वारा की हुई धार्मिक क्रांति के फलस्‍वरूप ही चंद्रगुप्‍त और अशोक जैसे सम्राट हुए। साधु-संतों द्वारा की हुई धार्मिक क्रांति के बाद ही शिवाजी हिंदू राष्‍ट्र की स्‍थापना कर सके। गुरु नानक द्वारा पैदा की गई धार्मिक क्रांति के फलस्‍वरूप ही सिखों ने राजनैतिक शक्ति प्राप्‍त की। तब कैसे कहा जा सकता है कि शक्तिशाली और सुदृढ़ राष्‍ट्र को बनाने के लिए धार्मिक और सामाजिक क्रांति की आवश्‍यकता नहीं है।-- भीमराव आम्बेडकर, अपने लेख 'जाति का विनाश' में[]
  • 'जाति! हाय री जाति !' कर्ण का हृदय क्षोभ से डोला,
कुपित सूर्य की ओर देख वह वीर क्रोध से बोला
'जाति-जाति रटते, जिनकी पूँजी केवल पाषंड,
मैं क्या जानूँ जाति ? जाति हैं ये मेरे भुजदंड।
'ऊपर सिर पर कनक-छत्र, भीतर काले-के-काले,
शरमाते हैं नहीं जगत् में जाति पूछनेवाले।
सूत्रपुत्र हूँ मैं, लेकिन थे पिता पार्थ के कौन?
साहस हो तो कहो, ग्लानि से रह जाओ मत मौन।
'मस्तक ऊँचा किये, जाति का नाम लिये चलते हो,
पर, अधर्ममय शोषण के बल से सुख में पलते हो।
अधम जातियों से थर-थर काँपते तुम्हारे प्राण,
छल से माँग लिया करते हो अंगूठे का दान। -- रामधारी शिंह 'दिनकर' , रश्मिरथी में
  • मेरे लिए सबसे बड़ी जाति है गरीब, मेरे लिए सबसे बड़ी जाति है युवा, मेरे लिए सबसे बड़ी जाति है महिलाएं, मेरे लिए सबसे बड़ी जाति है किसान। इन चार जातियों का उत्थान ही भारत को विकसित बनाएगा। -- नरेन्द्र मोदी, विकसित भारत संकल्प यात्रा के लाभार्थियों के साथ बातचीत करते हुए, 1 दिसंबर, 2023[]

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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