गुण
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गुण का शाब्दिक अर्थ है- अच्छाई ।
छः पदार्थों में से एक गुण है। दर्शन में गुण को दूसरा स्स्थान तथ आयुर्वेद में तीसरा स्थान दिया गया है। दर्शन के अनुसार अधिकांशतः गुण भौतिक गुण हैं किन्तु आयुर्वेद के अनुसार अधिकांशतः गुण रासायनिक गुण हैं।
महर्षि कणाद ने २४ गुणों का वर्णन इस प्रकार किया है –
- १. रूप, २. रस, ३. गन्ध, ४. स्पर्श, ५. संख्या ६. परिमाण, ७. पृथक्त्व, ८. संयोग, ९. विभाग १०. परत्व, ११. अपरत्व, १२. गुरुत्व, १३. द्रवत्व, १४. स्नेह, १५. शब्द, १६. बुद्धि, १७. सुख, १८. दुःख, १९. इच्छा, २० द्वेष, २१. प्रयत्न, २२. धर्म, २३. अधर्म और २४. संस्कार।
गुरु आदि २० गुणों का वर्णन महर्षि वाग्भट ने किया है। इनके अतिरिक्त पाँच ज्ञानेन्द्रियों के विषय- शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध इन्हें भी गुण कहा गया है।
उक्तियाँ
[सम्पादन]- सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ते -- भर्तृहरि
- सभी गुण स्वर्ण पर ही आश्रय पाते हैं।
- शरीरस्य गुणानाश्च दूरमन्त्य अन्तरम् ।
- शरीरं क्षणं विध्वंसि कल्पान्त स्थायिनो गुणाः ॥ -- चाणक्यनीति
- शरीर और गुण इन दोनों में बहुत अन्तर है। शरीर थोड़े ही दिनों का मेहमान होता है जबकि गुण प्रलय काल तक बने रहते हैं।
- विद्या वितर्को विज्ञानं स्मृतिः तत्परता क्रिया ।
- यस्यैते षड्गुणास्तस्य नासाध्यमतिवर्तते ॥
- विद्या, तर्कशक्ति, विज्ञान, स्मृतिशक्ति, तत्परता, और कार्यशीलता, ये छः जिसके पास हैं, उसके लिए कुछ भी असाध्य नहीं है।
- उद्यमं सक्षमं धैर्यं बुद्धिः शक्तिः पराक्रमः।
- षडेते यत वर्तन्ते तत्र दैवो सहायकृत॥
- प्रयास , साहस , धैर्य , बुद्धि , शक्ति तथा पराक्रम - जहां ये छः गुण होते हैं , वहां दैव (भाग्य) भी सहायक होता है।
- बलं वीर्यं च तेजश्च शीघ्रता लघुहस्तता।
- अविषादश्च धैर्यं च पार्थान्नान्यत्र विद्यते॥ -- महाभारत, उद्योगपर्व ५९/२९
- बल, वीर्य (पराक्रम), तेज, शीघ्रता, लघुहस्तता, विषादहीनता और धैर्य - ये सात गुण अर्जुन के अतिरिक्त कहीं और नहीं मिलते।
- शुश्रूषा श्रवणं चैव ग्रहणं धारणं तथा ।
- ऊहापोहोऽर्थ विज्ञानं तत्त्वज्ञानं च धीगुणाः ॥
- शुश्रूषा, श्रवण, ग्रहण, धारण, चिन्तन, उहापोह (तर्क-वितर्क), विशिष्ट ज्ञान, और तत्त्वज्ञान – ये बुद्धि के गुण हैं ।
- ग्रन्थार्थस्य परिज्ञानं तात्पर्यार्थ निरुपणम् ।
- आद्यन्तमध्य व्याख्यान शक्तिः शास्त्र विदो गुणाः ॥
- ग्रंथ का संपूर्ण ज्ञान, तात्पर्य निरुपण करने की समझ, और ग्रंथ के आदि, अन्त और मध्य किसी भी भाग पर विवेचन करने की शक्ति – ये शास्त्रविद् के गुण हैं।
- वरमेको गुणी पुत्रो न च मूर्खाः शतान्यपि
- एक ही गुणी पुत्र श्रेष्ठ है, सैकड़ों मूर्ख नहीं।
- गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।
- सुस्वादुतोयाः प्रभवन्ति नद्यः समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः॥
- गुण, गुणी लोगों में ही गुण होते हैं / कहलाते हैं। वे निर्गुण व्यक्ति के पास पहुँचकर दोष हो जाते हैं।
- लालनाद् बहवो दोषास्ताडनाद् बहवो गुणाः।
- तस्मात्पुत्रं च शिष्यं च ताडयेन्न तु लालयेत् ॥ -- चाणक्य
- लाड़-दुलार से बहुत से दोष पैदा हो जाते हैं। इसके विपरीत, दण्ड देने से या परीक्षा लेने से उनमें जीवन जीने के गुण विकसित होते हैं। इसलिये पुत्रों और शिष्यों को ताड़ना देना चाहिये, लाड़-दुलार नहीं।
- स जीवति गुणा यस्य धर्मो यस्य स जीवति।
- गुणधर्मविहीनो यो निष्फलं तस्य जीवितम्॥
- जिसके पास गुण हैं, तथा जिसके पास धर्म है, वही वास्तव में जी रहा है। गुण और धर्म- दोनों जिसके पास नहीं है, उसका जीवन निरर्थक है।
- षड्गुणाः शक्तयस्त्तिस्रः सिद्धयश्चोदयास्त्रयः ।
- ग्रन्थानधीत्य व्याकर्तुमिति दुर्मेधसोऽप्यलम् ॥ -- शिशुपालवध, २-२७
- छः गुण (सन्धि, विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव, समाश्रय), तीन शक्तियाँ (प्रभुत्व, मन्त्र, उत्साह) और इनको उदित करने वाली तीन सिद्धियों (प्रभुसिद्धि, मन्त्रसिद्धि, उत्साहसिद्धि) को उनिशन आदि के ग्रन्थों का आश्रय लेकर मन्द बुद्धि के लोग भी अवश्य ही प्राप्त कर सकते हैं।
- पर्वत कहता शीश उठाकर तुम भी ऊँचे बन जाओ।
- सागर कहता है लहराकर मन में गहराई लाओ॥
- समझ रहे हो क्या कहती है उठ-उठ गिर गिर तरल तरंग।
- भर लो, भर लो अपने मन में मीठी-मीठी मृदुल उमंग॥
- धरती कहती धैर्य न छोड़ो कितना ही हो सिर पर भार
- नभ कहता है फैलो इतना ढक लो तुम सारा संसार ॥ -- सोहनलाल द्विवेदी
- प्रतिभावान का गुण यह है कि वह मान्यताओं को हिला देता है। -- गेटे
- बिना साहस के हम कोई दूसरा गुण भी अनवरत धारण नहीं कर सकते । हम कृपालु, दयालु , सत्यवादी , उदार या इमानदार नहीं बन सकते । -- ?
- अपने अनुभवों से बड़ा गुण कोई नहीं। -- अज्ञात
- अभिप्राय में उदारता, कार्य सम्पादन में मानवता, सफलता में संयम, इन्हीं तीन गुणों से मानव महान बन जाता हैं। -- बिस्मार्क
- आकाश-मंडल में दिवाकर के उदित होने पर सारे फूल खिल जाते हैं, इस में आश्चर्य ही क्या? प्रशंसनीय है तो वह हारसिंगार फूल (शेफाली) जो घनी आधी रात में भी फूलता है। -- आर्यान्योक्तिशतक
- आलसी सुखी नहीं हो सकता, निद्रालु ज्ञानी नहीं हो सकता, ममत्व रखनेवाला वैराग्यवान नहीं हो सकता और हिंसक दयालु नहीं हो सकता। -- भगवान महावीर
- कलाविशेष में निपुण भले ही चित्र में कितने ही पुष्प बना दें पर क्या वे उनमें सुगंध पा सकते हैं और फिर भ्रमर उनसे रस कैसे पी सकेंगे। -- पंडितराज जगन्नाथ
- किसी के गुणों को गाने में अपना समय नष्ट करने के बजाय उसे अपनाने में लगाओ। -- कार्ल मार्क्स
- कुल की प्रशंसा करने से क्या लाभ? शील ही (मनुष्य की पहचान का) मुख्य कारण है। क्षुद्र मंदार आदि के वृक्ष भी उत्तम खेत में पड़ने से अधिक बढते-फैलते हैं। -- मृच्छकटिक
- कुलीनता यही है और गुणों का संग्रह भी यही है कि सदा सज्जनों से सामने विनयपूर्वक सिर झुक जाए। -- दर्पदलनम् १.२९
- गहरी नदी का जल प्रवाह शांत व गंभीर होता है । -- शेक्सपीयर
- गुण और ज्ञान पाने के पश्चात इस जगत में कोई भी झंझट शेष नहीं रह जाता। -- ओशो
- गुण और ज्ञान वही सिद्ध हैं, जिससे मनुष्यता का भला होता हैं। -- महात्मा गांधी
- गुण तो आदमी उसमें देखता हैं, जिसके साथ जन्म भर निर्वाह करना हो। -- प्रेमचंद
- गुण सब स्थानों पर अपना आदर करा लेता हैं। -- कालिदास
- गुणवान के गुण के अलावा कुछ नहीं देखा जाता। -- प्रेमचंद
- गुणवान पुरुषों को भी अपने स्वरूप का ज्ञान दूसरे के द्वारा ही होता है। आंख अपनी सुन्दरता का दर्शन दर्पण में ही कर सकती है। -- वासवदत्ता
- गुणवान व्यक्ति की परीक्षा धन से नहीं सद्गुण और शीलता से होती हैं, जिस प्रकार घोड़ा अपनी साज-सज्जा से नहीं बल्कि ताकत और दौड़ने के गुण से जाना जाता हैं। -- सुकरात
- गुणवान व्यक्ति दूसरे की गलतियों से अपनी गलती सुधारते हैं। -- साइरस
- गुणवान से उसकी जाति नहीं पूछी जाती। -- प्रेमचंद
- गुणवान होने के लिए विनम्रता, जिज्ञासा और सेवा को अपने व्यवहार में सम्मिलित करना चाहिए। तब हमें अमिट ज्ञान की प्राप्ति होगी। -- श्रीमदभगवद्गीता
- गुरु के दुर्गुण त्यागो, शत्रु के गुण ग्रहण करो। -- अज्ञात
- घमंड करना जाहिलों का काम है। -- शेख सादी
- जिस तरह जौहरी ही असली हीरे की पहचान कर सकता है, उसी तरह गुणी ही गुणवान् की पहचान कर सकता है । -- कबीर
- जीवन की जड़ संयम की भूमि में जितनी गहरी जमती है और सदाचार का जितना जल दिया जाता है उतना ही जीवन हरा भरा होता है और उसमें ज्ञान का मधुर फल लगता है। -- दीनानाथ दिनेश
- जो मनुष्य अपनी उन्नति चाहता है, उसे चाहिए कि वह दूसरों के गुण देखने की आदत डालें और स्वयं पर लागू करे। -- अज्ञात
- जो वीरता से भरा हुआ है, जिसका नाम लोग बड़े गौरव से लेते हैं, शत्रु भी जिसके गुणों की प्रशंसा करते हैं, वही पुरूष वास्तव में पुरूष है। -- गणेश शंकर विद्यार्थी
- तुम प्लास्टिक सर्जरी करवा सकते हो, तुम सुन्दर चेहरा बनवा सकते हो, सुंदर आंखें सुंदर नाक, तुम अपनी चमड़ी बदलवा सकते हो, तुम अपना आकार बदलवा सकते हो। इससे तुम्हारा स्वभाव नहीं बदलेगा। भीतर तुम लोभी बने रहोगे, वासना से भरे रहोगे, हिंसा, क्रोध, ईर्ष्या, शक्ति के प्रति पागलपन भरा रहेगा। इन बातों के लिये प्लास्टिक सर्जन कुछ कर नहीं सकता। -- ओशो
- दान करके गुप्त रखना चाहिए, घर आये शत्रु का सत्कार करना चाहिए, परोपकार करके मौन रहना चाहिए, और दूसरों के उपकार को प्रकट करते रहना चाहिए। धन वैभव होने पर अभिमान नहीं करना चाहिए, पीठ पीछे निंदा नहीं करना चाहिए, अपना दोष बताये जाने पर क्रोधित नहीं होना चाहिए और उपकार करने वाले प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए ये ऐसे सद्गुण है, जो साधारण पुरूष को महापुरूष बना देते हैं। -- अज्ञात
- दूसरों का जो आचरण तुम्हें पसंद नहीं , वैसा आचरण दूसरों के प्रति न करो।
- धन से सद्गुण नहीं उत्पन्न होते, लेकिन सद्गुणों से धन एवं दूसरी वस्तुएं प्राप्त होती हैं। -- कन्फ्यूशियस
- नम्रता सारे गुणों का दृढ़ स्तम्भ है।
- पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती लेकिन मानव के सदगुण की महक सब ओर फैल जाती है । -- गौतम बुद्ध
- बुद्धिमान किसी का उपहास नहीं करते हैं।
- मनुष्य गुणों से श्रेष्ठ बनता हैं, आसन पर बैठने से नहीं। महल के शिखर पर बैठने से कौआ गरुड़ नहीं बन जाता। -- चाणक्य नीति
- मनुष्य सुसंगति में रहकर गुण पाता है तो अपने एक अवगुण से भी मुक्त हो जाता हैं। -- एकनाथ
- मानव जब तक तृष्णा से दूर हैं, गुणवान बना रहता हैं। -- अज्ञात
- मैं कोयल हूँ और आप कौआ हैं- हम दोनों में कालापन तो समान ही है किंतु हम दोनों में जो भेद है, उसे वे ही जानते हैं जो कि ‘काकली’ (स्वर-माधुरी) की पहचान रखते हैं। -- साहित्यदर्पण
- यदि राजा किसी अवगुण को पसंद करने लगे तो वह गुण हो जाता है -- शेख सादी
- यदि हम सद्गुण के उपदेशों को आचरण में लायें तो हमारे अंतर में छिपी अपार अध्यात्मिक शक्ति हमें प्राप्त हो जाएगी। -- गुरूनानक
- शिष्टाचार शारीरिक सुन्दरता के अभाव को पूर्ण कर देता हैं। शिष्टाचार के अभाव में सौन्दर्य का कोई मूल्य नहीं रहता। -- स्वेट मार्टन
- सज्जनों का स्वभाव गुणों को पास रखना हैं और दुर्जनों का स्वभाव अवगुणों को अपने पास रखना हैं। -- भर्तृहरि
- सज्जनों के मन घोड़े से गुणों के कारण फूलों की भांति ग्रहण करने योग्य हो जाते हैं। -- बाणभट्ट
- सद्गुण, अपना ही पुरस्कार है। (Virtue is its own reward.) -- सुकरात
- सद्गुण ही ज्ञान हैं। -- सुकरात
- सभी लोगों के स्वभाव की ही परीक्षा की जाती है, गुणों की नहीं। सब गुणों की अपेक्षा स्वभाव ही सिर पर चढ़ा रहता है (क्योंकि वही सर्वोपरि है)। -- हितोपदेश
- समस्त गुण विनय की दास्तान कहते हैं। विनम्रता का जन्म नम्रता की कोख से होता हैं, अतः जो नम्र है, वही सद्गुण सम्पन्न है। -- अज्ञात
- संसार में अपने गुणों को, अपने पंखों को फ़ैलाना सीखो, क्योंकि दूसरों के गुणों से और पंखों से न विद्वता संभव है न उड़ान। -- इकबाल
- संसार में आदरपूर्वक जीने का सरल और शर्तिया उपाय यह है कि हिम जो कुछ बाहर दिखना चाहते हैं, वैसे ही वास्तव में हों भी। -- सुकरात
- सुन्दरता बढ़ जाती है यदि आपमें गुण भी हों। -- चाणक्य
आयुर्वेद में गुण
[सम्पादन]- समवायी तु निःचेष्टः कारणं गुणः । -- चरकसंहिता १/५१[१]
- जो द्रव्य में निश्चेष्ट होकर रहता है उसे गुण कहते हैं।
- विश्वलक्षणा गुणाः । -- रस वैशेषिक सूत्र, १/१६
- गुण विभिन्न प्रकार के लक्षणों वाले हैं।
- गुणत्व जातिमान् ।
- गुण शब्द इसकी जाति का प्रतिनिधित्व करता है।
- सार्था गुर्वादयो बुद्धिः प्रयत्नान्ताः परादयः। गुणाः प्रोक्ताः ...॥
- सार्था, गुर्वादि, बुद्धि-से-प्रयत्न-तक-के-शब्द और परादि (कुल ४१) गुण कहे जाते हैं।