कुल

विकिसूक्ति से
  • यस्य कस्य प्रसूतोऽपि गुणवान्पूज्यते नरः ।
धनुर्वशविशुद्धोऽपि निर्गुणः किं करिष्यति ॥
किसी भी वंश में उत्पन्न मनुष्य यदि गुणी है तो समाज में उसका सम्मान होता है।जैसे श्रेष्ठ बांस से बने हुए भी गुण रहित धनुष से क्या उपयोग लिया जा सकता है, अर्थात कोई नहीं ।
  • देशवंशजनैकोऽपि कायवाक्चेतसां चयै ।
येन नोपकृतः पुंसा तस्य जन्म निरर्थकम् ॥
जिस किसी पुरूष ने शरीर, वाणी और मन इन तीनों द्वारा अथवा इसमें से किसी एक के द्वारा देश का अथवा अपने वंश का एक भी उपकार यदि न किया तो ऐसे अनुपकारी पुरूष का जन्म लेना ही व्यर्थ है।
  • आरोग्यं विद्वत्ता सज्जनमैत्री महाकुले जन्म ।
स्वाधीनता च पुंसां महदैश्वर्यं विनाप्यर्थे: ॥
आरोग्य, विद्वता, सज्जनों से मैत्री, श्रेष्ठ कुल में जन्म, दूसरे के ऊपर निर्भर न होना यह सब धन नहीं होते हुए भी पुरुषों का ऐश्वर्य है।
  • क्षुधातृषाशाः कुटुम्बन्य मयि जीवति न अन्यगाः।
ताषां आशा महासाध्वी कदाचित् मां न मुञ्चति॥
क्षुधा (भूख), तृषा (प्यास) और आशा मनुष्य की पत्नियाँ हैं जो जीवनपर्यन्त मनुष्य का साथ निभाती हैं। इन तीनों में आशा महासाध्वी है क्योंकि वह क्षणभर भी मनुष्य का साथ नहीं छोड़ती, जबकि भूख और प्यास कुछ कुछ समय के लिए मनुष्य का साथ छोड़ देते हैं।
  • कुलस्यार्थे त्यजेदेकं ग्राम्स्यार्थे कुलं त्यज्येत्।
ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्॥ -- चाणक्य
कुटुम्ब के लिए स्वयं के स्वार्थ का त्याग करना चाहिए, गाँव के लिए कुटुम्ब का त्याग करना चाहिए, देश के लिए गाँव का त्याग करना चाहिए और आत्मा के लिए समस्त वस्तुओं का त्याग करना चाहिए।
  • कस्य दोषः कुलेनास्ति व्याधिना को न पीडितः ।
व्यसनं के न संप्राप्तं कस्य सौख्यं निरन्तरम् ॥
इस संसार में ऐसा किस का घर है जिस पर कोई कलंक नहीं, वह कौन है जो रोग और दुख से मुक्त है. सदा सुख किस को रहता है?
  • आचारः कुलमाख्याति देशमाख्याति भाषणम् ।
सम्भ्रमः स्नेहमाख्यातिवपुराख्याति भोजनम् ॥
मनुष्य के कुल की ख्याति उसके आचरण से होती है, बोलचाल से उसके देश की ख्याति बढ़ती है, मान-सम्मान उसके प्रेम को बढ़ता है, एवं उसके शारीर का गठन उसके भोजन से बढ़ता है।
  • सत्कुले योजयेत्कन्यां पुत्रं विद्यासु योजतेत् ।
व्यसने योजयेच्छत्रुं मित्रं धर्मे नियोजयेत् ॥
अपनी कन्या का ब्याह अच्छे कुल में करना चाहिए। पुत्र को अच्छी शिक्षा देनी चाहिए। शत्रु को आपत्ति और कष्टों में डालना चाहिए एवं मित्रों को धर्म कर्म में लगाना चाहिए।
  • एदतर्थं कुलोनानां नृपाः कुर्वन्ति संग्रहम् ।
आदिमध्यावसानेषु न स्यजन्ति च ते नृपम् ॥
राजा लोग अपने आस पास अच्छे कुल के लोगों को इसलिए रखते है क्योंकि ऐसे लोग ना आरम्भ में, ना बीच में और ना ही अंत में साथ छोड़ कर जाते है।
  • रूपयौवनसम्पन्ना विशालकुलसम्भवाः ।
विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इवकिशुकाः ॥
रूप और यौवन से सम्पन्न तथा कुलीन परिवार में जन्मा लेने पर भी विद्या हीन पुरुष पलाश के फूल के समान है जो सुन्दर तो है लेकिन खुशबू रहित है.
  • जेठ स्वामि सेवक लघु भाई। दिनकर कुल यह रीति सुहाई॥ -- रामचरितमानस
रघुकुल में बड़ा भाई स्वामी और छोटा भाई सेवक होता था, ऐसी सुंदर रीति थी।
  • तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के,
पाते हैं जग में प्रशस्ति अपना करतब दिखला के।
हीन मूल की ओर देख जग गलत कहे या ठीक,
वीर खींच कर ही रहते हैं इतिहासों में लीक॥ -- रामधारी सिंह 'दिनकर' , रश्मिरथी में

इन्हें भी देखें[सम्पादन]