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शुक्रनीति

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  • दीर्घदर्शी सदा च स्यात, चिरकारी भवेन्न हि।
मनुष्य आज जो भी कार्य कर रहा है उसे भविष्य को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए। साथ ही आज का काम कल पर नहीं टालना चाहिए। इसका वास्तविक अर्थ यह हुआ कि मनुष्य को भविष्य की योजनाएं अवश्य बनाना चाहिए। उसे यह ध्यान रखना चाहिए कि आज वह जो भी कार्य कर रहा है उसका भविष्य में क्या परिणाम होगा। साथ ही जो काम आज करना है उसे आज ही करें। आलस्य करते हुए उसे भविष्य पर कदापि न टालें।
  • साहसाधिपतिञ्चैव ग्रामनेतारमेव च ।
भागहारं तृतीयन्तु लेखकञ्च चतुर्थकम् ॥
शुल्कयाहं पञ्चमञ्च प्रतिहारं तथैव च ।
षट्कमेतन्नियोक्तव्यं ग्रामे ग्रामे पुरे पुरे ॥ -- शुक्रनीति, अध्याय २, १२०-१२१[]
इन छः अधिकारियों को गाँव-गाँव और नगर-नगर में नियुक्त करना चाहिये- साहसाधिपति, ग्रामनेता, भागहार, लेखक, शुल्कग्राहक तथा प्रतिहार।
  • क्षत्रिय को साहसाधिपति (साहस करने या बल प्रयोग करने वाले के द्वारा हए अपराधों पर दण्ड देने वाला) बनाना चाहिये, ग्रामनेता ब्राह्मण को बनाया जाय, भागहार (राजकीय कर उगाहने वाला) क्षत्रिय हो, लेखक (लिपिक) कायस्थ हो, शुल्कयाह (चुंगी एकत्र करने वाला) वैश्य हो तथा प्रतिहार (ग्राम-सीमा पर रक्षा करने वाला) शुद्र हो।
  • ग्राम का अधिपति माता-पिता के समान, लुटेरे, चोर और अधिकारी गणों से प्रजा की रक्षा करने में दक्ष होना चाहिए। साहसाधिपति न बहुत क्रूर न बहुत मृदु होना चाहिए और उसे दण्ड का विधान इस प्रकार करना चाहिए कि प्रजा नष्ट न हो। भागहार इस प्रकार से काम करने वाला हो जो माली के समान वृक्षों को पुष्ट कर उनसे फल और फूल बीने अर्थात्‌ वह इस बात की भी व्यवस्था करे कि लोगों की खेती आदि उत्तम हो तथा वह उतना ही भाग उसमें से ले जिसमें लोग नष्ट न हो जांय। लेखक अर्थात्त्‌ ग्राम की पुस्तकों आदि की देख-भाल करने वाला (पटवारी अथवा लेखपाल) ऐसा व्यक्ति हो जो अपना लेख असंदिग्ध और बिना गूढ़ार्थ के लिखे, गणित में कुशल तथा देश की भाषा को अच्छी प्रकार जानने वाला होना चाहिए । प्रतिहार (चौकीदार) शास्त्रास्त्र में कुशल, दृढ़ शरीर वाला, निरालसी, विनम्र और ठीक प्रकार से पुकार करने वाला (पुकार लगाने वाला तथा बुलाने वाला) होता चाहिए। शुल्क-ग्राह अथवा दौल्किक ऐसा होना चाहिए जो इस प्रकार शुल्क ले जिससे व्यापारियों का मूल धन नष्ट न हो। -- शुक्रनीति (अध्याय २, १७१ से १७५)
  • आयुर्वित्तं गृहच्छिद्रं मंत्रमैथुनभेषजम्।
दानमानापमानं च नवैतानि सुगोपयेत्॥ -- शुक्राचार्य
अपनी आयु , वित्त, गृह के दोष, मंत्र, मैथुन, औषधि, दान, मान, अपमान -- इन नौ को छुपाकर रखना चाहिए (अन्यथा नुकसान उठाना पड़ सकता है)।
  • यो हि मित्रमविज्ञाय यथातथ्येन मन्दधिः।
मित्रार्थो योजयत्येनं तस्य सोर्थोवसीदति॥
मनुष्य को अपने मित्र बनाने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। बिना सोचे-समझे किसी से भी मित्रता कर लेना आपके लिए कई बार हानिकारक भी हो सकता है, क्योंकि मित्र के गुण-अवगुण, उसकी अच्छी-बुरी आदतें हम पर समान रूप से असर डालती है। इसलिए बुरे विचारों वाले या बुरी आदतों वाले लोगों से मित्रता नहीं करना चाहिए।
  • नात्यन्तं विश्वसेत् कच्चिद् विश्वस्तमपि सर्वदा।
शुक्र नीति कहती है किसी व्यक्ति पर विश्वास करें लेकिन उस विश्वास की भी कोई सीमा रेखा होना चाहिए। शुक्राचार्य ने यह स्पष्ट कहा है कि किसी भी व्यक्ति पर हद से ज्यादा विश्वास करना घातक हो सकता है। कई लोग ऊपर से आपके भरोसेमंद होने का दावा करते हैं लेकिन भीतर ही भीतर आपसे बैर भाव रख सकते हैं इसलिए कभी भी अपनी अत्यंत गुप्त बातें करीबी मित्र से भी न कहें।
  • अन्नं न निन्घात्।
मनुष्य को तुष्ट, पुष्ट करने वाले अन्न का कभी अपमान नहीं करना चाहिए। अन्न प्रत्येक मनुष्य के जीवन का आधार होता है, इसलिए जो भी भोजन आपको प्रतिदिन के आहार में प्राप्त हो उसे परमात्मा का प्रसाद समझते हुए ग्रहण करें। अन्न का अपमान करने वाला मनुष्य नर्क में घोर पीड़ा भोगता है।
  • धर्मनीतिपरो राजा चिरं कीर्ति स चाश्रुते।
हर व्यक्ति को अपने धर्म का सम्मान और उसकी बातों का पालन करना चाहिए। जो मनुष्य अपने धर्म में बताए अनुसार जीवनयापन करता है उसे कभी पराजय का सामना नहीं करना पड़ता। धर्म ही मनुष्य को सम्मान दिलाता है।
  • अमन्त्रमक्षरं नास्ति नास्ति मूलमनौषधम् ।
अयोग्यः पुरुषो नास्ति योजकस्तत्र दुर्लभः॥२-१२६॥ -- सुभाषितरत्नाकर ; शुक्रनीति २-१२६
बिना मन्त्रशक्ति के कोई अक्षर नहीं ,बिना औषधि गुण के कोई पौधा नहीं; बिना गुण के कोई व्यक्ति नहीं; परन्तु ऐसे व्यक्ति दुर्लभ है,जो हर वस्तु में गुणों को देख उन्हें उपयोग में ला सकें।

इन्हें भी देखें

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