वामदेव शास्त्री

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पण्डित वामदेव शास्त्री (डॉ० डेविड फ्रॉली) एक चिन्तक, लेखक और संस्कृत विद्वान हैं जिन्हें भारत में वेदाचार्य के रूप में मान्यता प्राप्त है। उनके अध्ययन के दायरे में आयुर्वेद, योग, वेदान्त और वैदिक ज्योतिष के साथ-साथ ऋग्वेद की प्राचीन शिक्षाएं भी शामिल हैं। वे सांता फे, न्यू मैक्सिको में अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ वैदिक स्टडीज के निदेशक हैं।

विचार[सम्पादन]

  • भारत में हिंदू बहुसंख्यक जरूर हैं लेकिन नेहरू के समय से सरकार ने ज्यादा लेफ्टिस्ट पॉलिसी अपनाई। अगर हम भारत के स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली इतिहास की किताबें देखें तो प्राचीन भारत पर जो भी लिखा है, वह सब कम्युनिस्टों ने लिखा है। इतिहास को पॉलिटिकल अजेंडे के लिए तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है।
  • नेहरू ने ब्रिटिश कल्चर को फॉलो किया, वह रिलीजियस नहीं थे। वह अलग तरह का भारत बनाना चाहते थे। कई मामलों में वह गांधी से अलग थे। जो नेहरू ने किया वह इंदिरा गांधी ने भी किया। जेएनयू को देखिए। वहां आप हिंदुत्व पढ़ नहीं सकते, योग की भी वहां इजाजत नहीं है। वह लेफ्टिस्ट ओरिएंटेड ऑर्गनाइजेशन बना है। दुनिया में चीन को छोड़कर भारत ही अकेला ऐसा देश दिख रहा है जहां कम्युनिस्ट स्टूडेंट यूनियन है। यूएस में कम्युनिस्ट स्टूडेंट यूनियन बैन हैं।
  • भारत में सोशलिजम को हटा देना चाहिए। सोशलिजम दुनिया भर में असफल रहा। इंडिया में लेफ्ट और राइट भी बहुत फनी चीज है। जैसे मैं वेजिटेरियन हूं, योग करता हूं, आयुर्वेद सिखाता हूं। ये अमेरिका में लेफ्ट विंग सब्जेक्ट हैं और यहां भारत में मैं राइट विंग का कह दिया जाऊंगा।
  • हम वेस्ट के हिसाब से हिंदुत्व को डिफाइन नहीं कर सकते। वेस्ट में रिलिजन मतलब गॉड है, फेथ है। यह ईस्ट के रिलीजियस ट्रेडिशन से मेल नहीं खाता। अगर हम कहें हिंदुत्व रिलिजन है तो यह कहा जाएगा कि फिर इसे ईसाइयत और इस्लाम की तरह होना चाहिए जो यह नहीं हैं। अगर कहें कि यह रिलिजन नहीं बल्कि वे ऑफ लाइफ है, तब कहा जाएगा कि इसका मतलब हिंदुत्व का आध्यात्मिकता से कोई मतलब नहीं, लेकिन ऐसा नहीं है। धर्म एक 'लॉ ऑफ नेचर' है। इसलिए हिंदुत्व, रिलिजन से काफी ज्यादा है।
  • संस्कृत केवल एक भाषा नहीं बल्कि संस्कृति और परिष्कार का एक तरीका और ज्ञान का भंडार है। भारतीय संस्कृति का विचार स्वाभाविक रूप से भारतीय या भारतीय शास्त्रीय संगीत, नृत्य, काव्य, दर्शन, चिकित्सा, गणित और विज्ञान की संस्कृति को वापस लाता है और आधुनिक युग में उनके लिए पुनर्जागरण का लक्ष्य रखता है। इसमें देश की प्राकृत या क्षेत्रीय भाषाओं के साथ-साथ उनकी सांस्कृतिक परंपराएँ भी शामिल हैं, जो सभी एक साथ जुड़ी हुई है।
  • भारतीय संस्कृति काफी हद तक ज्ञान की संस्कृति है और ध्यान को अध्ययन का सबसे महत्वपूर्ण रूप मानते हुए सीखने को बढ़ावा देती है। भारतीय संस्कृति का प्रतीक ध्यान मुद्रा में बैठे योगी या बुद्ध हैं। ज्ञान की यह धार्मिक संस्कृति विज्ञान के साथ-साथ आध्यात्मिकता को भी अपना सकती है और चेतना को संपूर्ण ब्रह्मांड की अंतर्निहित भूमि के रूप में देखती है। सीखने और ज्ञान की भारतीय परंपरा अमेरिका, ब्रिटेन और पश्चिमी दुनिया में भारतीय प्रवासियों की सफलता का आधार है।
  • भारतीय मॉडल आधुनिक युग के लिए एक उत्कृष्ट मॉडल है जिसमें हमें दुनिया भर की कई संस्कृतियों को एकीकृत करना होगा। संस्कृति के समावेशी और सिंथेटिक भारतीय मॉडल की तुलना में, समाजवादी और मार्क्सवादी मॉडल संकीर्ण, दमनकारी और भौतिकवादी हैं। यहां तक ​​कि पूंजीवादी मॉडल में भी धार्मिक दृष्टिकोण की गहराई और करुणा की भावना का अभाव है।
  • भारत में किसी भी आधुनिक देश या संस्कृति की तुलना में सबसे लंबी और सबसे व्यापक साहित्यिक निरंतरता है। यह अपने विशाल संस्कृत साहित्य के माध्यम से तमिल से हिंदी तक मुख्य स्थानीय भाषाओं तक फैला हुआ है, जो संस्कृत से जुड़े हुए हैं, और अक्सर आधुनिक यूरोपीय देशों के साहित्य की तुलना में उनके स्वयं के बड़े साहित्य होते हैं।
  • महाभारत केवल प्राचीन राजाओं की कहानी नहीं है बल्कि उस क्षेत्र के राज्यों, देशों और संस्कृतियों की रूपरेखा प्रस्तुत करता है । यह हिंदू धर्म के सभी मुख्य संप्रदायों जैसे वैष्णव, शैव, गणपत और शाक्त को दर्शाता है, लेकिन आध्यात्मिक और सांसारिक कई विषयों की जांच करने वाले व्यापक संवादों के साथ विचार और जांच की स्वतंत्रता का भी सम्मान करता है। इसमें राजाओं के नियम-कानून और जीवन के सभी पहलुओं में धर्म की भूमिका पर चर्चा की गई है। किसी भी अन्य देश या क्षेत्र में, चाहे यूरोप, चीन या मध्य पूर्व, महाभारत के समान विस्तार और संस्कृति की निरंतरता का पाठ नहीं है।

इन्हें भी देखें[सम्पादन]