कोएनराड एल्स्ट

कोएनराड एल्स्ट (जन्म 7 अगस्त 1959) एक फ्लेमी (Flemish) लेखक तथा हिन्दू समर्थक दक्षिणपन्थी विचारक हैं। वे इस विचार के समर्थक हैं कि आर्य भारतीय मूल के हैं तथा वे भारत से प्रवास करते हुए अन्य देशों में जा बसे हैं। वे फ्लेमी आन्दोलन (Flemish movement) से भी जुड़े हैं जो प्रत्यक्ष लोकतन्त्र की मांग करती है। एल्स्ट, २० से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं। उनकी ये पुस्तकें इतिहास, हिन्दुत्व, और भारतीय राजनीति से सम्बन्धित हैं। उनकी रुचि के प्रमुख विषय ये हैं- हिन्द-यूरोपीय भाषाओं का मूल, राम मन्दिर विवाद, भारत में पन्थनिरपेक्षता, तथा महात्मा गाँधी की ऐतिहासिक विरासत।
विचार[सम्पादन]
- जनजातीय अन्तर्विवाह (सगोत्रीय विवाह) में हिन्दुओं की जाति व्यवस्था की व्याख्या छिपी हुई है। हिन्दुओं का वैदिक समाज वर्णाश्रम की सुव्यवस्था से युक्त एक उन्नत और विभेदित समाज था। उत्तर-पश्चिम से आरम्भ होकर यह समाज भारत के आन्तरिक भागों में फैला। और अधिक जनजातियाँ इसमें सम्मिलित हुईं। लेकिन वे अपनी विशिष्ट परम्पराओं, जैसे सगोत्रीय विवाह, का पालन करने के लिये स्वतन्त्र थे। इस प्रकार अन्तर्विवाह करने वाले विभिन्न प्राचीन जनजातीय समाज ही आज की 'जातियाँ' हैं। -- कोएनराड एल्स्ट, The Sarna : a case study in natural religion
- हिंदू धर्म का सार 'सत्य' है न कि 'सहनशीलता' या 'सभी धर्मों के लिए समान सम्मान'। सतही तौर पर ईसाई धर्म और इस्लाम के साथ समस्या उनकी असहिष्णुता और कट्टरता है। लेकिन यह असहिष्णुता इन धर्मों की असत्यता का परिणाम है। यदि आपका 'धर्म' भ्रम पर आधारित है, तो आप इस धर्म की तर्कपूर्ण परीक्षा की अनुमति ही नहीं देंगे और इसको अधिक स्थायी विचार प्रणालियों से बचायेंगे। एकेश्वरवादी धर्मों के साथ मूल समस्या यह नहीं है कि वे असहिष्णु हैं बल्कि यह कि वे असत्य या अनृत हैं। -- "Sita Ram Goel: Jesus Christ - An Artifice for Aggression (1994)" में
- "गुलामी का इस्लामी सिद्धान्त" इस्लाम पर विश्वास करने वाले और उस पर विश्वास न करने वालों के बीच अपरिहार्य संघर्ष के सिद्धान्त के साथ निकटता से जुड़ा हुआ था। ... और जब कभी मुसलमान पगानों को अपने अधिकार में ले लेते थे तो प्रायः इन पगानों को गुलाम के रूप में बेच दिया जाता था।" -- एल्स्ट की Indigenous Indians, 375, 381 में ; के.एस. लाल (1994) द्वारा Muslim slave system in medieval India. नयी दिल्ली : अदित्य प्रकाशन में उद्धृत