लक्ष्मी

विकिसूक्ति से
  • उत्साहसम्पन्नमदीर्घसूत्रं क्रियाविधिज्ञं व्यसनेष्वसक्तम्।
शूरं कृतज्ञं दृढ़सौहृदं च लक्ष्मीः स्वयं याति निवासहेतोः॥ -- हितोपदेश
जो हमेशा उत्साह से भरे रहते हैं, किसी कार्य में देर नहीं करते, क्रियाविधि के ज्ञाता होते हैं, व्यसनों से दूर रहते हैं, साहसी होते हैं, कृतज्ञ होते हैं, दृढ़ निश्चयी होते हैं और सुन्दर हृदय ( सबको चाहने वाले ) होते हैं उनके पास लक्ष्मी स्वयं चल कर रहने के लिए आती हैं ।
  • उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी
दैवेन देयमिति कापुरुषा वदन्ति ।
दैवं निहत्य कुरु पौरुषमात्मशक्त्या
यत्नेकृते यदि न सिद्ध्यति कोऽत्रदोषः॥ -- भर्तृहरि
लक्ष्मी कर्म करने वाले पुरुषरूपी सिंह के पास आती है, "देवता (भाग्य) देने वाला हैं" ऐसा तो कायर पुरुष कहते हैं। इसलिए देव (भाग्य) को छोड़ कर अपनी शक्ति से पौरुष (कर्म) करो, प्रयत्न करने पर भी यदि कार्य सिद्ध नहीं होता है तो देखो क्या समस्या है (कोई और समस्या तो नहीं?)।
  • यत्रोत्साहसमारम्भो यत्रालस्य विहीनता ।
नयविक्रम संयोगस्तत्र श्रीरचला ध्रुवम् ॥ -- पञ्चतन्त्र
जहाँ उत्साह है, आरम्भ (पहल) है, और आलस्य नहीं है, नय (नीति) और पराक्रम का समुचित समन्वय है, वहाँ से लक्ष्मी कहीं और नहीं जाती, यह निश्चित है।
  • शूरं त्यजामि वैधव्यादुदारं लज्जया पुनः ।
सापत्न्यात्पण्डितमपि तस्मात्कृपणमाश्रये ॥ -- सुभाषितरत्नाकर (स्फुट)
भावार्थ : (लक्ष्मी कहतीं हैं कि) मैं विधवा होने के डर से शूरवीर व्यक्तियों का वरण नहीं करती हूँ, उदारहृदय व्यक्तियों के साथ रहने मे मुझे लज्जा आती है (कि वे कहीं मुझे किसे अन्य व्यक्ति को न दे दें ) तथा किसी विवाहित विद्वान के साथ भी रहना नहीं चाहती हूँ। इसीलिये मैं एक कृपण व्यक्ति के आश्रय में ही रहती हूँ।
  • सत्यानुसारिणी लक्ष्मीः कीर्तिस्त्यागानुसारिणी।
अभ्याससारिणी विद्या बुद्धिः कर्मानुसारिणी॥
लक्ष्मी सत्य का अनुसरण करती है। कीर्ति त्याग के पीछे जाती है। विद्या अभ्यास से ही प्राप्त होती है और बुद्धि पर कर्म का ही अंकुश रहता है।
  • जहां मूर्ख पूजे नहीं जाते, अन्न संचित रहता है और जहां पत्नी-पति में कलह नहीं होता वहाँ लक्ष्मी आप ही आकर आसन जमाती है। -- कालिदास
  • व्यापारे वसते लक्ष्मी ।
व्यापार में लक्ष्मी वसती हैं।
  • साहसे खलु श्री वसति।
साहस में ही लक्ष्मी का वास होता है।
  • यत्रोत्साहसमारम्भो यत्रालस्य विहीनता ।
नयविक्रम संयोगस्तत्र श्रीरचला ध्रुवम् ॥ -- पञ्चतन्त्र
जहाँ उत्साह है, आरम्भ (पहल) है, और आलस्य नहीं है, नय (नीति) और पराक्रम का समुचित समन्वय है, वहाँ से लक्ष्मी कहीं और नहीं जाती, यह निश्चित है।
  • सत्यमेवेश्वरो लोके सत्यं पद्माश्रिता सदा।
सत्यमूलानि सर्वाणि सत्यान्नास्ति परं पदम्॥ -- वाल्मीकि रामायण
संसार में सत्य ही ईश्वर है। सत्य ही लक्ष्मी (= धन-धान्य) का निवास है। सत्य ही सभी (अच्छाइयों) का मूल है। संसार में सत्य से बढ़कर और कोई परम पद नहीं है।
  • आलस्य में दरिद्रता का वास हैं और परिश्रम में लक्ष्मी बसती हैं। -- संत तिरूवल्लुवर
  • लक्ष्मी थिर न रहीम कह, यह जानत सब कोय।
पुरष पुरातन की वधू, क्यों न चंचला होय॥ -- रहीम
लक्ष्मी स्थिर नहीं है, यह सभी लोग जानते हैं। पुरुष पुरातन (विष्णु ; बूढ़े व्यक्ति) की पत्नी क्यों चंचला न होगी?

इन्हें भी देखें[सम्पादन]