राष्ट्र
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- आ राष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्योऽतिव्याधी महारथो जायताम् -- यजुर्वेद
- अर्थात् हमारे राष्ट्र में क्षत्रिय, वीर, धनुषधारी, लक्ष्यवेधी और महारथी हों। [१]
- माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः -- अथर्ववेद
- भूमि माता है, मैं पृथ्वी का पुत्र हूँ।
- श्रेष्ठं यविष्ट भारताग्ने द्युमन्तमा भर।
- वसो पुरुस्पृहं रयिम ॥ -- ऋग्वेद 2.7.1
- अर्थात भारत वह देश है जहां के ऊर्जावान युवा सब विद्याओं में अग्नि के समान तेजस्वी विद्वान हैं, सब का भला करने वाले हैं, सुखी हैं और जिन्हें ऋषिगण उपदेश देते हैं कि वे कल्याणमयी, विवेकशील तथा सर्वप्रिय लक्ष्मी को धारण करें। वैदिक परंपरा में ब्राह्मण के लिए लक्ष्मी ज्ञान है, क्षत्रिय के लिए बल है, वैश्य के लिए धन है और शूद्र के लिए सेवा है।
- समानी व आकूति: समाना हृदयानि व:
- समानमस्तु वो मनो यथा व: सुसहासति।। -- (ऋग्वेद 10/191/4)
- तुम्हारी भावना या संकल्प समान हो, तुम्हारे हृदय समान हों। तुम्हारा मन समान हो, जिससे तुम लोग परस्पर सहकार कर सको। [२]
- देशरक्षा समं पुण्यं देशरक्षा समं व्रतम् ।
- देशरक्षासम योगो दृष्टो नैव च नैवच ॥
- देश की रक्षा के समान पुण्य, देशरक्षा के समान व्रत, और देशरक्षा के समान योग नहीं देखा गया है।
- राष्ट्र वह समाज है जो अपने पूर्वजों से सम्बन्धित भ्रमपूर्ण ज्ञान तथा अपने पड़ोसियों के प्रति समान घृणा के माध्यम से एकीकृत होता है। -- विलियम राल्फ इंगे, द एन्द ऑफ ऐन एज ऐण्ड अदर एस्सेज (1948), पृष्ट 127.
- कोई भी देश अपने भूत को समझे बिना अपने भविष्य की योजना नहीं बना सकता। -- अमीर ताहेरी, "Opinion: Iran must confront its past to move forwards", Ashraq Al-Awsat (February 6, 2015).
- जिस प्रकार मनुष्य का बचपन होता है, वैसे ही राष्ट्रों का भी बचपन होता है। -- Henry Bolingbroke, Letters on Study and Use of History (1752)
- महान राष्ट्र अपनी आत्मकथा तीन पाण्डुलिपियों के रूप मे लिखते हैं- एक अपने कर्मों की पुस्तक, एक अपने भाषा की पुस्तक और एक अपने कला की पुस्तक। इनमें से कोई भी पुस्तक अन्य दो को पढ़े बिना समझी नहीं जा सकती। लेकिन इनमें से सबसे विश्वसनीय कला की पुस्तक ही होती है। -- जॉन रस्किन, सेंट मार्क्स रेस्ट, द हिस्ट्री ऑफ वेनिस, प्राक्कथन पृष्ट १ (1885)
- शिक्षा, राष्ट्र की सस्ती सुरक्षा है।
- बड़े देशों ने सदा गिरोहबाजों की तरह काम किया है और छोटे देशों ने वेश्याओं की तरह। -- स्टैनली कुब्रिक, द गार्जियन (1963)