युक्तेश्वर गिरि

युक्तेश्वर गिरि (10 मई 1855 - 9 मार्च 1936) महान क्रियायोगी एवं उत्कृष्ट ज्योतिषी थे । वह लाहिड़ी महाशय के शिष्य थे।
उद्धरण
[सम्पादन]- कुछ लोग दूसरों के सिर काटकर स्वयं ऊँचा बनने का प्रयास करते हैं!
- श्री श्री परमहंस योगानन्द (2005), लाहिड़ी महाशय का अवतार सदृश जीवन Page : 184, योगी कथामृत। अभिगमन तिथि : 2019।
- जिस प्रकार भूख का एक यथार्थ उद्देश्य है, परन्तु लोलुपता का नहीं, उसी प्रकार काम प्रवृत्ति को भी प्रकृति ने केवल प्रजाति के प्रवर्तन के लिये बनाया है, कभी तृत्त न हो सकने वाली वासनाओं को जगाने के लिये नहीं। अपनी गलत इच्छाओं को अभी ही नष्ट कर दो, अन्यथा स्थूल शरीर छूट जाने के बाद भी सूक्ष्म शरीर में वे तुम्हारे साथ चिपकी रहेंगी। शरीर को रोक पाना भले ही कठिन हो, पर मन में निरन्तर विरोध करते ही रहना चाहिये। यदि प्रलोभन निष्दुरतापूर्वक तुम पर आक्रमण करे तो साक्षीभाव से उसका विश्लेषण करके अदम्य इच्छाशक्ति अपनी शक्तियों को बचा कर रखो। विशाल समुद्र के समान बनो जिसमें इन्द्रियों की सब नदियाँ चुपचाप विलीन होती चली जायें। प्रतिदिन नयी शक्ति के साथ जागती वासनाएँ तुम्हारी आंतरिक शान्ति को सोख लेंगी; ये वासनाएँ जलाशय में बने छिद्रों के समान हैं जो प्राणमूलक जल को विषयासक्ति के रेगिस्तान में नष्ट होने के लिये बहा देते हैं। मनुष्य को बाध्य करने वाला कुवासनाओं का शक्तिशाली आवेग उसके सुख का सबसे बड़ा शत्रु है। आत्म-संयम के सिंह बनकर संसार में विचरण करो। इन्द्रिय-दुर्बलताओं के मेंढकों की लातें खाकर इधर से उधर लुढ़कते मत रहो।
- श्री श्री परमहंस योगानन्द (2005), अपने गुरु के आश्रम की कालावधि Page : 174 - 175, योगी कथामृत। अभिगमन तिथि : 2019।
- इसे सदा याद रखो कि ईश्वर को पाने का अर्थ होगा सभी दुःखों का अन्त।
- श्री श्री परमहंस योगानन्द (2005), लाहिड़ी महाशय का अवतार सदृश जीवन Page : 177, योगी कथामृत। अभिगमन तिथि : 2019।
- ईश्वर को पाने का अर्थ है – समस्त दुखों का अंतिम संस्कार।
Paramahansa Yogananda (1946). Autobiography of a Yogi – Chapter 25. https://www.ananda.org/autobiography/#chap25. अभिगमन तिथि: 2025.
- सामान्य प्रेम स्वार्थी होता है, इच्छाओं और संतुष्टि में जकड़ा होता है। दिव्य प्रेम बिना शर्त, बिना सीमा और अपरिवर्तनीय होता है।
Paramahansa Yogananda (1946). Autobiography of a Yogi – Chapter 10. https://www.ananda.org/autobiography/#chap10. अभिगमन तिथि: 2025.
- छिछले मनों में छोटी सोचों की मछलियाँ बहुत हलचल मचाती हैं। लेकिन गहरे समुद्र जैसे मनों में प्रेरणाओं की व्हेलें भी मुश्किल से कोई हलचल पैदा करती हैं।
Paramahansa Yogananda (1946). Autobiography of a Yogi – Chapter 12. https://www.ananda.org/autobiography/#chap12. अभिगमन तिथि: 2025.
- मानव का व्यवहार तब तक अस्थिर रहेगा जब तक वह ईश्वर में स्थिर नहीं हो जाता। यदि तुम अभी आध्यात्मिक प्रयास कर रहे हो, तो भविष्य में सब कुछ सुधरेगा।
Paramahansa Yogananda (1946). Autobiography of a Yogi – Chapter 12. https://www.ananda.org/autobiography/#chap12. अभिगमन तिथि: 2025.
- अच्छे शिष्टाचार बिना ईमानदारी के एक सुंदर लेकिन मृत स्त्री के समान हैं। विनम्रता के साथ ईमानदारी उपयोगी और सराहनीय है।
Paramahansa Yogananda (1946). Autobiography of a Yogi – Chapter 24. https://www.ananda.org/autobiography/#chap24. अभिगमन तिथि: 2025.
- तीव्र बुद्धिमत्ता एक दोधारी तलवार के समान है। यह या तो अज्ञानता के फोड़े को काट सकती है, या स्वयं का सिर। बुद्धि तब ही सही दिशा में चलती है जब मन आध्यात्मिक नियमों की अपरिहार्यता को स्वीकार करता है।
Paramahansa Yogananda (1946). Autobiography of a Yogi – Chapter 12. https://www.ananda.org/autobiography/#chap12. अभिगमन तिथि: 2025.
- शब्दज्ञान को समझदारी मत समझो।पवित्र ग्रंथ केवल तभी लाभकारी हैं जब उन्हें धीरे-धीरे आत्मसात किया जाए – एक श्लोक एक बार। लगातार बौद्धिक अध्ययन से केवल अहंकार और अपच किए हुए ज्ञान का मिथ्या सुख मिलता है।
Paramahansa Yogananda (1946). Autobiography of a Yogi – Chapter 12. https://www.ananda.org/autobiography/#chap12. अभिगमन तिथि: 2025.