बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय
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बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय, बांग्ला के महान साहित्यकार थे। 'वन्दे मातरम्' उनकी ही रचना है जो 'आनन्दमठ' में है।
उक्तियाँ
[सम्पादन]- तुम वसन्त की कोयल हो, सुंदर आदमी। जब फूल खिलते हैं, दक्षिण की हवा चलती है, संसार सुख के स्पर्श से सिहर उठता है, तो तुम आकर रसिकता आरम्भ करो। और जब भीषण शीत से जीवलोक की थोरहरी कांपने लगती है, तो बापू, तुम कहाँ रहते हो? जब सावन की धारा में मेरे चालघर में नदी बहती है, जब वर्षा के चोट से कौआ, चील और भिजिया छिप जाते हैं, तो तुम्हारा गंदा काला शरीर कहाँ रहता है? (बसन्तेर कोकिल - कमलाकान्तेर दफ्तर)
- इस संसार में विशेष दुःख यही है कि मृत्यु के उपयुक्त समय पर कोई नहीं मरता। सभी असमय ही मरते हैं।
- पथिक, क्या तुम अपना रास्ता भूल गये हो?
- कुसुम आपके लिए नहीं खिलता, अपने हृदय में दूसरों के कुसुम को खिलने दें।
- जब किसी मनुष्य को संदेह होता है कि क्या करना चाहिये, तो उसे सबसे पहले जहाँ से बुलावा आता है, वह वहीं चला जाता है।
- अपना काम किए बिना मर जाना, क्या यह वांछनीय है?
- मुझे पता है कि मुझे अपने सपनों को वास्तविकता में बदलने के लिए कितने समय तक काम करने की आवश्यकता है।
- हे भगवान! हम अपनी भारत माता को फिर से इस वेश में कब देखेंगे - इतना उज्ज्वल और इतना हर्षित? केवल तभी जब मातृभूमि के सभी बच्चे पूरी ईमानदारी से माँ को पुकारेंगे।
- गद्य को ऐसी भाषा में लिखा जाना चाहिए जो उसके पाठकों द्वारा अच्छी तरह से समझी जा सके। दुनिया शायद ही उन साहित्यिक कृतियों को याद करेगी जिन्हें केवल आधा दर्जन पंडितों ने महारत हासिल की है।
- बिना किसी प्रणाली के किए गए किसी भी अध्ययन के परिणाम के फलदायी होने की संभावना नहीं होती। अधिकांश लोग जो ज्ञान के लिए ज्ञान की खोज करते हैं, लक्ष्यहीन और व्यभिचारी ढंग से उसका अनुसरण करते हैं।
- देशभक्ति धर्म है और धर्म भारत के लिए प्रेम है।
- हजारों पुरुष, महिलाएं और बच्चे भूख से मर सकते हैं ; फिर भी करों का संग्रह समाप्त नहीं होना चाहिए।
- नारी ईश्वरीय सृष्टि की सर्वोच्च उत्कृष्टता है ... महिला प्रकाश है, पुरुष छाया है।
- हमारे काम में हम हिंदू या मुसलमान, बौद्ध या सिख, पारसी या पारिया के बीच अंतर नहीं करते। यहाँ हम सब भाई हैं, एक ही भारत माता की संतान।
- महात्मा ने कहा, माँ ! यह भारत माता का मंदिर, मस्जिद, विहार और गुरुद्वारा है। अपने हृदय से सारे भय निकाल फेंको।
- अंग्रेज भारत को तलवार के बल पर अपने वश में रखते हैं और वह केवल तलवार के द्वारा ही छुड़ाई जा सकती है।
- क्षमा अतीत को नहीं बदलती, लेकिन यह भविष्य को बदल देती है।
- मातृभूमि हमारी एकमात्र माँ है। हमारी मातृभूमि स्वर्ग से भी महान है।
- भारत माता हमारी माता है। हमारी कोई और माँ नहीं है।
- यह देश हमारा है। यह हमारी मातृभूमि है। हम इस मिट्टी की संतान हैं।
बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय पर विद्वानों के विचार
[सम्पादन]- राममोहन ने बंग साहित्य को निमज्जन दशा से उन्नत किया, बंकिम ने उसके ऊपर प्रतिभा प्रवाहित की। बंकिम के कारण ही आज बंगभाषा मात्र प्रौढ़ ही नहीं, उर्वरा और शस्यश्यामला भी हो सकी है। -- रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- बंकिम के दोनों हाथो में बराबर ताकत थी, वे सही मायने में सब्यसाची थे। एक हाथ से उन्होंने उत्कृष्ट साहित्य का निर्माण किया और दूसरे से, युवा और महत्वकांक्षी लेखकों का मार्गदर्शन किया। एक हाथ से साहित्य द्वारा ज्ञान की मशाल जला कर रखी और दूसरे से, अज्ञानता और अंधविश्वास की सोच को मिटाया। -- रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- बंकिम के पूर्व बंग भाषा इकतारे की तरह एक ही तार में बंधी हुई थी, उसमें सीधे स्वरों द्वारा धर्मगीत मात्र गाये जा सकते थे। बंकिम ने अपने हाथों नए तार चढ़ाकर उसे वीणायंत्र बना दिया। पहले उसमें सिर्फ ग्राम्यसुर बजते थे, बंकिम के कारण वह विश्वसभा में ध्रुपद अंग की कलावती रागिनी का आलाप करने के उपयुक्त हो गई।-- रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- राममोहन ने बंग साहित्य को निमज्जन दशा से उन्नत किया, बंकिम ने उसके ऊपर प्रतिभा प्रवाहित करके स्तरबद्ध मूर्तिका अपसरित कर दी। बंकिम के कारण ही आज बंगभाषा मात्र प्रौढ़ ही नहीं, उर्वरा और शस्यश्यामला भी हो सकी है।-- रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- बंकिम ने एक भाषा, एक साहित्य, एक राष्ट्र की रचना की है। -- अरविन्द घोष
- स्वतंत्रता आन्दोलन के कई प्रतिभागी उस कार्य संगठन से प्रेरित थे जिसकी योजना बंकिम चंद्र ने अपने उपन्यास आनन्द मठ में बनाई थी। -- अरविन्द घोष, उग्रवादी राष्ट्रवाद के विषय पर अपने निबंध “बंकिम तिलक दयानन्द” में
- भारत के लोगों के लिए मनीषी बंकिमचंद्र की पहचान राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक के रूप में है। -- इतिहासकार डॉ. निशिथरंजन राय
- बंकिमचंद्र के कई उपन्यासों के ऐतिहासिक मूल्य को नकारा नहीं जा सकता। -- इतिहासकार सर जदुनाथ सरकार और प्रो. गौच (Prof. Gouch)
- बंकिम चन्द्र भारतीय राष्त्रवाद के असली जनक थे। -- मनीषी हिरेंद्रनाथ दत्त