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वन्दे मातरम्

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वन्दे मातरम् (शाब्दिक अर्थ : माँ की वन्दना करता हूँं) बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित एक संस्कृत गीत है। इसकी रचना उन्होने १८७० के दशक में की थी। इसे उन्होंने १८८२ में स्वरचित आनन्दमठ नामक बांग्ला उपन्यास में सम्मिलित किया।

वन्दे मातरम् पर विचार

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  • यह एक साम्राज्यवाद-विरोधी नारा था... मेरा मन वंदे मातरम् में लीन हो गया था, और जब मैंने इसे पहली बार गाते हुए सुना तो इसने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया। मैंने इसके साथ शुद्धतम राष्ट्रीय भावना को जोड़ा... इसके चुने हुए श्लोक पूरे देश को बंगाल की देन हैं। -- महात्मा गांधी, १९३९ में हरिजन में
  • बंकिम [चंद्र चटर्जी] की अपने राष्ट्र के लिए सर्वोच्च सेवा यह थी कि उन्होंने हमें अपनी माता का दर्शन कराया ...। जब तक मातृभूमि मन की आंखों के सामने खुद को पृथ्वी के एक टुकड़े से अधिक के रूप में प्रकट नहीं करती है, जब तक वह सुंदरता के रूप में एक महान दैवीय और मातृ शक्ति के रूप में आकार नहीं लेती है, तब तक वह देशभक्ति पैदा नहीं होती जो चमत्कार करती है और एक विनष्ट राष्ट्र को बचा लेती है। बत्तीस साल पहले बंकिम ने अपना महान गीत लिखा और कुछ ने सुना। लंबे भ्रम से जागने के क्षण में बंगाल के लोग स्त्य की खोज में चारों ओर देख रहे थे। तभी किसी ने बंदे मातरम् गाया। इस प्रकार उन्हें वह मन्त्र मिल गया जिसने एक ही दिन में पूरे देश को देशभक्ति के रंग में रंग दिया। माँ ने स्वयं प्रकट किया था। -- महर्षि अरविन्द घोष, १६ अप्रैल १९०७

इन्हें भी देखें

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