आलोचना
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- निन्दक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय।
- बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय॥ -- कबीरदास(?)
- जो हमारी निन्दा करता है, उसे अपने अधिक से अधिक पास ही रखना चाहिए क्योंकि वह बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बताकर हमारे स्वभाव को साफ कर देता है।
- आलोचना एक भयानक चिन्गारी है- ऐसी चिंगारी, जो अहंकार रूपी बारूद के गोदाम में विस्फोट उत्पन्न कर सकती है और वह विस्फोट कभी-कभी मृत्यु को शीघ्र ले आता है। -- डेल कारनेगी
- कभी-कभी आलोचना अपने मित्र को भी शत्रु के शिविर में भेज देती है। -- अज्ञात
- किसी का सहारा लिए बिना कोई ऊंचे नहीं चढ़ सकता, अत: सबको किसी प्रधान आश्रय का सहारा लेना चाहिए। -- वेदव्यास
- दूसरों में दोष न निकालना, दूसरों को उतना उन दोषों से नहीं बचाता जितना अपने को बचाता है। -- स्वामी रामतीर्थ
- स्वस्थ आलोचना मनुष्य को जीवन का सही मार्ग दिखाती है। जो व्यक्ति उससे परेशान होता है, उसे अपने बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। -- महात्मा गांधी
- आलोचना से परे कोई भी नहीं है, न साहूकार और न मजदूर। आलोचना से हर कोई सबक ले सकता है। -- गणेश शंकर विद्यार्थी
- आलोचना और दूसरों की बुराइयां करने में बहुत अन्तर है। आलोचना निकट लाती है और बुराई दूर करती है। -- प्रेमचंद
- समकालीन व्यक्ति गुण की अपेक्षा मनुष्य की प्रशंसा करते हैं, आने वाले समय में पीढ़ियां मनुष्य की अपेक्षा उसके गुणों का सम्मान किया करेंगी। ~ कोल्टन
- गुण ग्राहकता और चापलूसी में अंतर है। गुण ग्राहकता सच्ची होती है और चापलूसी झूठी। गुणग्राहकता हृदय से निकलती है और चापलूसी दांतों से। एक निःस्वार्थ होती है और दूसरी स्वार्थमय। एक की संसार में सर्वत्र प्रशंसा होती है और दूसरे की सर्वत्र निंदा। -- डेल कारनेगी