आलोचना
दिखावट
- परवाच्येषु निपुणः सर्वो भवति सर्वदा ।
- आत्म्य्वाच्यं न जानाति जानन्नपि च गुह्यते ॥ -- संस्कृत सुभाषित
- दूसरों की कमियों की आलोचना करने में सभी लोग सदैव निपुण होते हैं, परन्तु स्वयं अपनी कमियों को या तो नहीं जानते और यदि जानते भी हों तो उन्हें छिपाते हैं।
- न विना परवादेन रमते दुर्जनो जनः।
- श्वा हि सर्वरसान् भुक्त्वा विनामेध्यं न तृप्यति॥ -- वल्लभदेव सुभाषित
- लोगों की निन्दा किये बिना दुष्ट व्यक्तियों को आनन्द नहीं आता। जैसे कौवा सब रसों का भोग करता है परन्तु गंदगी के बिना उसकी तृप्ति नहीं होती ।
- स हानिं लभते मन्दो यस्तुङ्गं परिनिन्दति।
- धूलिं क्षिपति यो भानौ तस्यास्ति मलिनं मुखम्॥
- वह मन्द व्यक्ति स्वयं को ही नुकसान पहुँचाता है जो महापुरुष (तुङ्ग) की घोर निन्दा करता है। जो व्यक्ति सूर्य की तरफ धूल फेंकता हैं, उसी का मुख मलिन होता है।
- ये नाम केचिदिह नः प्रथयन्त्यवज्ञां
- जानन्ति ते किमपि तान्प्रति नैष यत्नः।
- उत्पत्स्यतेऽस्ति मम कोऽपि समानधर्मा
- कालो ह्ययं निरवधिर्विपुला च पृथ्वी॥ -- भवभूति
- जो लोग मेरी रचना का उपहास करते हुए मेरी अवज्ञा कर रहे हैं उनका ज्ञान संकुचित है । मैंने मेरी रचना उनके लिए नहीं रची है। मेरा समानधर्मा कोई न कोई गुणग्राही रसिक आगे पीछे कभी न कभी अवश्य ही जन्म लेगा और मेरी रचनाओं का उचित मू्ल्यांकन करेगा, क्योंकि काल भी अनन्त हैं और संसार (वसुंधरा) भी विशाल है।
- निन्दक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय।
- बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय॥ -- कबीरदास(?)
- जो हमारी निन्दा करता है, उसे अपने अधिक से अधिक पास ही रखना चाहिए क्योंकि वह बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बताकर हमारे स्वभाव को साफ कर देता है।
- किसी का सहारा लिए बिना कोई ऊंचे नहीं चढ़ सकता, अतः सबको किसी प्रधान आश्रय का सहारा लेना चाहिए। -- वेदव्यास
- आलोचना और दूसरों की बुराइयां करने में बहुत अन्तर है। आलोचना निकट लाती है और बुराई दूर करती है। -- प्रेमचंद
- दूसरों में दोष न निकालना, दूसरों को उतना उन दोषों से नहीं बचाता जितना अपने को बचाता है। -- स्वामी रामतीर्थ
- स्वस्थ आलोचना मनुष्य को जीवन का सही मार्ग दिखाती है। जो व्यक्ति उससे परेशान होता है, उसे अपने बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। -- महात्मा गांधी
- आलोचना से परे कोई भी नहीं है, न साहूकार और न मजदूर। आलोचना से हर कोई सबक ले सकता है। -- गणेश शंकर विद्यार्थी
- समकालीन व्यक्ति गुण की अपेक्षा मनुष्य की प्रशंसा करते हैं, आने वाले समय में पीढ़ियां मनुष्य की अपेक्षा उसके गुणों का सम्मान किया करेंगी। -- कोल्टन
- गुण ग्राहकता और चापलूसी में अंतर है। गुण ग्राहकता सच्ची होती है और चापलूसी झूठी। गुणग्राहकता हृदय से निकलती है और चापलूसी दांतों से। एक निःस्वार्थ होती है और दूसरी स्वार्थमय। एक की संसार में सर्वत्र प्रशंसा होती है और दूसरे की सर्वत्र निंदा। -- डेल कारनेगी
- आलोचना एक भयानक चिन्गारी है- ऐसी चिंगारी, जो अहंकार रूपी बारूद के गोदाम में विस्फोट उत्पन्न कर सकती है और वह विस्फोट कभी-कभी मृत्यु को शीघ्र ले आता है। -- डेल कारनेगी
- कभी-कभी आलोचना अपने मित्र को भी शत्रु के शिविर में भेज देती है। -- अज्ञात
- आलोचना करने का आनन्द हमसे कुछ बहुत अच्छी चीजों से प्रभावित होने का आनन्द छीन लेता है। -- जीन डे ला ब्रुएरे
- आलोचना स्वीकार्य नहीं हो सकती है, लेकिन यह आवश्यक है। यह मानव शरीर में दर्द के समान कार्य को पूरा करता है। यह चीजों की अस्वस्थ स्थिति की ओर ध्यान आकर्षित करता है। -- विंस्टन चर्चिल
- हम में से अधिकांश के साथ समस्या यह है कि हम आलोचना से बचने के बजाय प्रशंसा से बर्बाद हो जाते हैं। -- नॉर्मन विंसेंट पील
- बच्चों को आलोचकों के बजाय मॉडल की जरूरत होती है। -- जोसेफ जौबर्टा
- आप प्रशंसा या आलोचना को अपने पास नहीं आने दे सकते। किसी एक में फंसना कमजोरी है। -- जॉन वुडन
- इससे पहले कि आप जाएं और युवा पीढ़ी की आलोचना करें, बस यह याद रखें कि उन्हें किसने पाला। -- अज्ञात
- दूसरों में ताकत तलाशना कहीं अधिक मूल्यवान है। आप उनकी खामियों की आलोचना करने से कुछ हासिल नहीं कर सकते। -- दैसाकु इकेदा
- किसी को अन्य लोगों की इस आधार पर आलोचना नहीं करनी चाहिए कि वह स्वयं सीधा खड़ा नहीं हो सकता। -- मार्क ट्वेन
- मुझे कोई अधिकार नहीं है, मैं जो कुछ भी करता हूं या कहता हूं, किसी इंसान को उसकी नजर में नीचा दिखाने का। मायने यह नहीं रखता कि मैं उसके बारे में क्या सोचता हूँ; वह अपने बारे में यही सोचता है। मनुष्य के स्वाभिमान को ठेस पहुँचाना पाप है। -- ओंत्वान डे सेंट - एक्सुपरी
- उनकी आलोचना मत करो; वे वही हैं जो हम समान परिस्थितियों में होंगे। -- अब्राहम लिंकन
- कोई भी मूर्ख आलोचना, निंदा और शिकायत कर सकता है लेकिन समझने और क्षमा करने के लिए चरित्र और आत्म-संयम की आवश्यकता होती है। -- डेल कार्नेगी
- आप किसके साथ समय बिताते हैं? आलोचक या प्रोत्साहनकर्ता? अपने आप को उन लोगों के साथ घेरें जो आप पर विश्वास करते हैं। आपका जीवन किसी भी चीज़ से कम के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। -- स्टीव गुडियर
- आलोचना, बारिश की तरह, इतनी कोमल होनी चाहिए कि किसी व्यक्ति की जड़ों को नष्ट किए बिना उसके विकास को पोषण दे सके। -- फ्रैंक ए क्लार्क
- मेरी चापलूसी करो, और मैं तुम पर विश्वास नहीं कर सकता। मेरी आलोचना करेंगे तो मैं शायद आपको पसंद न करुं। मुझे अनदेखा करो, मैं आपको क्षमा नहीं कर सकता। मुझे प्रोत्साहित करो, और मैं तुम्हें नहीं भूलूंगा। मुझे प्यार करो और मैं तुमसे प्यार करने के लिए मजबूर हो सकता हूं। -- विलियम आर्थर वार्ड
- लोग अपने जीवनसाथी की उस क्षेत्र में सबसे अधिक आलोचना करते हैं, जहां उन्हें स्वयं सबसे गहरी भावनात्मक आवश्यकता होती है। -- गैरी चैपमैन
- कोई भी मूर्ख आलोचना, निंदा और शिकायत कर सकता है और ज्यादातर मूर्ख करते हैं। -- बेंजामिन फ्रैंकलिन
- वही करें जो आपको अपने दिल में सही लगे - क्योंकि वैसे भी आपकी आलोचना की जाएगी। यदि आप ऐसा करते हैं तो आप शापित होंगे और यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो शापित हो जाएंगे। -- एलेनोर रोसवैल्ट
- आलोचना एक ऐसी चीज है जिससे हम कुछ न कहकर, कुछ न करके और कुछ न होने से आसानी से बच सकते हैं। -- अरस्तू
- आलोचना लोगों की अस्वीकृति है, दोष होने के लिए नहीं, बल्कि अपने से अलग दोष होने के कारण। -- अज्ञात
- जो तुम नहीं समझते उसकी आलोचना मत करो बेटा। तुम उस आदमी की जगह कभी नहीं चले। -- एल्विस प्रेस्ली
- उसे आलोचना करने का अधिकार है, जिसके पास मदद करने का दिल है। -- अब्राहम लिंकन