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  • यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्॥4.7॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे॥4.8॥ -- गीता में श्रीकृष्ण
हे भारत ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं स्वयं को प्रकट करता हूँ।
साधु पुरुषों के रक्षण के लिये, दुष्कृत्य करने वालों के नाश के लिये, तथा धर्म की स्थापना के लिये, मैं प्रत्येक युग में प्रगट होता हूँ।।
  • जब जब होइ धरम कै हानी। बाढ़इ असुर अधम अभिमानी।
तब तब प्रभु धरि विविध शरीरा। हरहिं दयानिधि सज्जन पीरा॥ -- तुलसीदास
जब-जब धर्म की हानि होति है और असुर, अधम और अभिमानी बढ़ जाते हैं तब-तब दयानिधि प्रभु विविध शरीर धारण करके सज्जनों के दुख दूर करते हैं।
  • यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति सुव्रत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदा प्रकृतिसंभवः।। -- अद्भुत रामायण
हे सुव्रत! जब-जब धर्म की ग्लानि होती है और अधर्म का उत्थान होता है, तब प्रकृति (काली) का जन्म होता है।
  • यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति वै प्रिये।
युगधर्मस्य मर्यादास्थापनाय भवाम्यहम्॥ -- भविष्यपुराणम् /पर्व ३ (प्रतिसर्गपर्व)/खण्डः ३/अध्यायः २२
  • यदायदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति यादव ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजत्यसौ ॥ -- विष्णुधर्मोत्तरपुराणम्/ खण्डः १/अध्यायाः १७१-१७५
  • यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
धर्मसंस्थापनार्थाय तदा सम्भवति प्रभुः॥ -- हरिवंशपुराणम्/पर्व १ (हरिवंशपर्व)/अध्यायः ४१
  • यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति जैमिने ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजत्यसौ॥ -- मार्कण्डेयपुराण ४.५३
  • यदा यदा च धर्मस्य ग्लानिः समुपजायते।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजत्यसौ॥ -- ब्रह्मपुराणम्/अध्यायः १८०
  • जो अपने कर्मों को इश्वर का कर्म समझकर करता है, वही ईश्वर का अवतार है। -- जयशंकर प्रसाद
  • आलसी व्यक्तियों के लिए भगवान अवतार नहीं लेते, वह मेहनती व्यक्तियों के लिए ही अवतरित होते हैं, इसलिए कार्य करना आरम्भ करें। -- बाल गंगाधर तिलक
  • एक व्यक्ति एक विचार के लिए मर सकता है, लेकिन वह विचार उसकी मृत्यु के बाद, एक हजार व्यक्तियों के जीवन में खुद को अवतार ले लेता है। -- सुभाष चन्द्र बोस