अपराध

विकिसूक्ति से
  • अनागःस्विह भूतेषु य आगस्कृन्निरङ्कुशः।
आहर्तास्मि भुजं साक्षादमर्त्यस्यापि साङ्गदम् ॥ -- श्रीमद्भागवतम्
जो उद्दण्ड व्यक्ति निरपराधियों को सता कर अपराध करता है, वह मेरे द्वारा उखाड़ फेंका जायेगा, चाहे वह बाजूबंद तथा अन्य अलंकारों से युक्त स्वर्ग का निवासी ही क्यों न हो।
  • जिसने पहले तुम्हारा उपकार किया हो, वह यदि बड़ा अपराध करे तो भी उनके उपकार की याद करके उसका अपराध क्षमा दो। -- महाभारत
  • अपराधानुरूपो दण्डः। -- चाणक्य (अर्थशास्त्र में)
अपराध के अनुरूप ही दंड देना चाहिये।
  • कपट वचन अपराध तैं, निपट अधिक दुखदानि।
जरे अंग में संकु ज्यौं, होत विथा की खानि॥ -- मतिराम
कपट वचन बोलना अपराध से भी अधिक दुखदायी है। वे कपट वचन तो जले हुए अंग में मानो कील चुभाने के समान अधिक दुःखदायक और असत्य प्रतीत होते हैं।
  • समर शेष है , नहीं पाप का भागी केवल व्याध ।
जो तटस्थ हैं , समय लिखेगा उनके भी अपराध ॥ -- ' रामधारी सिंह 'दिनकर'
  • सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा एक बड़ा राष्ट्रीय अपराध है। -- स्वामी विवेकानन्द
  • अपराध करने के बाद भय उत्पन्न होता है और यही उसका दंड है। -- वाल्टेयर
  • अपराध करने वाले बड़े अन्धविश्वासी होते हैं। -- बैटमैन (१९३९)

इन्हें भी देखें[सम्पादन]