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  • भगवद्गीता कर्म का तत्त्व भी जानना चाहिये और अकर्म का तत्त्व भी जानना चाहिये तथा विकर्म का तत्त्व भी जानना चाहिये; क्योंकि कर्म की गति गहन है। तत्कर्म यन्न बन्धाय...
    ११ KB (७५३ शब्द) - ०९:५३, ५ मार्च २०२४
  • । जो नारि सोई पुरुष या में कुछ न विभक्ति ॥ (बालाबोधिनी के मुखपृष्ठ पर) विक्रम की बीसवीं शताब्दी का प्रथम चरण समाप्त हो जाने पर जब भारतेन्दु ने हिन्दी-गद्य...
    २६ KB (१,९४३ शब्द) - ०७:०८, १४ जुलाई २०२३
  • प्रतिकूलं तथा दैवं पौरुषेण विहन्यते । मङ्गलाचारयुक्तानां नित्यमुत्थानशालिनाम् ॥ येषां पूर्वकृतं कर्म सात्त्विकं मनुजोत्तम । पौरुषेण विना तेषां केषांचिद् दृश्यते...
    १६ KB (९८८ शब्द) - २२:०८, १३ अगस्त २०२३
  • अणावो, इणीं परिषे त्रे जावो।२। षातां न षूटै, देतां न निठै, जम बार नहीं जाइ।। मछीन्द्र प्रसादै जती गोरष बोल्या, नित नवेरड़ौ थाइ।૪। इस पवन रुपी कृषक के...
    ४८५ KB (३९,२९५ शब्द) - १६:१३, १९ फ़रवरी २०२३
  • कोलाहल में भी संगीत को सुन सकता है, वह महान उपलब्धि को प्राप्त करता है । –डा विक्रम साराभाई     चिन्तन / मनन जब सब एक समान सोचते हैं तो कोई भी नहीं सोच रहा...
    २८१ KB (१९,७५२ शब्द) - १४:५५, ११ जनवरी २०२३
  • कोलाहल में भी संगीत को सुन सकता है, वह महान उपलब्धि को प्राप्त करता है। -डा विक्रम साराभाई मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता...
    २५७ KB (१९,१५७ शब्द) - १०:१८, ८ मार्च २०२२
  • कोलाहल में भी संगीत को सुन सकता है, वह महान उपलब्धि को प्राप्त करता है । –डा विक्रम साराभाई     चिन्तन / मनन जब सब एक समान सोचते हैं तो कोई भी नहीं सोच रहा...
    ३०४ KB (२१,२०६ शब्द) - २१:०८, ३ फ़रवरी २०२२