सोना
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(स्वर्ण से अनुप्रेषित)
- सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ते । -- भर्तृहरि
- सभी गुणों का आश्रय सोना है।
- न भुज्यते व्याकरणं बुभुक्षितैः
- पिपासितैः काव्यरसो न पीयते।
- न विद्यया केनचिदुद्धृतं कुलं
- हिरण्यमेवार्जय निष्फलाः कलाः॥ -- माघ, शिशुपालवध में
- भूखा व्यक्ति व्याकरण नहीं खाता। प्यासा हुआ व्यक्ति काव्यरस नहीं पीता। विद्या से कुल का कोई उद्धार नहीं होता। इसलिए सोना ही कमाओ, सभी कलाएं फलहीन हैं।
- स्वर्णं यथा ग्रवसु हेमकारः
- क्षेत्रेषु योगैस्तदभिज्ञ आप्नुयात् ।
- क्षेत्रेषु देहेषु तथात्मयोगै-
- राधात्मविद् ब्रह्मगतिं लभेत ॥ -- भागवत पुराण, सर्ग ७
- भावार्थ - एक विशेषज्ञ भूविज्ञानी यह समझ सकता है कि सोना कहाँ है और विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा सोने के अयस्क से इसे निकाल सकता है। इसी तरह, एक आध्यात्मिक रूप से उन्नत व्यक्ति यह समझ सकता है कि शरीर के भीतर आध्यात्मिक कण कैसे मौजूद है, और इस प्रकार आध्यात्मिक ज्ञान की खेती करके वह आध्यात्मिक जीवन में पूर्णता प्राप्त कर सकता है। हालाँकि, जो व्यक्ति विशेषज्ञ नहीं है वह यह नहीं समझ सकता कि सोना कहाँ है, एक मूर्ख व्यक्ति जिसने आध्यात्मिक ज्ञान की खेती नहीं की है वह यह नहीं समझ सकता कि शरीर के भीतर आत्मा कैसे मौजूद है।
- कनक कनक तें सौगुनी मादकता अधिकाय।
- या खाए बौराय जग वा पाए बौराय ॥ -- कबीरदास
- सोने में धतूरे से सौ गुनी मादकता होती है क्योंकि धतूरे को खाने से आदमी बौरा जाता है, जबकि सोने को पाने मात्र से वह बौरा जाता है।
- सोना, सज्जन, साधु जन, टूट जुड़ै सौ बार।
- दुर्जन कुम्भ कुम्हार के, एके धका दरार॥ -- कबीरदास
- पैसा सोना है, और कुछ नहीं। -- जे पी मार्गन, १९१२ में
- स्वर्णिम नियम याद रखो-
- जिसके पास स्वर्ण है, वही नियम बनाता है। -- Brant Parker और Johnny Har