सन्धि

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सन्धि का अर्थ समझौता या करार है। संधि दो पक्षों के बीच मेल-मिलाप है, सुलह है, ‘ट्रीटी’,है। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में दो विवादित मुद्दों पर अन्ततः एक ‘संधि’ कायम हो जाना आम बात है। प्रायः अदालत के बाहर दो पक्षों के बीच जो ‘स्वतन्त्र रूप से एक सहमति’ बन जाती है, उसे मान्यता प्रदान कर अदालत उस संधि पर अपनी मुहर लगा देती है, और दावे वापस ले लिए जाते हैं। आर्थिक और सामाजिक जीवन में तो कदम कदम पर समझौते करने ही पड़ते हैं अन्यथा हमेशा संघर्ष की स्थितियां बनी रहें। राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक समझौते कभी लम्बे समय तक कायम रहते हैं तो कभी जल्दी ही टूट जाते हैं। सन्धियाँ देर-सबेर नई संधियों को जगह देते हुए शायद टूटने के लिए ही होतीं हैं।

उक्तियाँ[सम्पादन]

  • अनेक शत्रुओं की स्थिति में केवल एक के साथ ही संधि करनी चाहिए। यदि एक से अधिक शत्रु हों तो एक के साथ ही संधि कर लेनी चाहिए। सभी शत्रुओं से संधि राज्य के हित के लिए विनाशकारी हो सकती है। शत्रु के क्रोध से अपनी रक्षा करनी चाहिए। राज्य को आंतरिक और बाहरी शत्रुओं से बचाना चाहिए क्योंकि ये दोनों ही आगजनी और हिंसा आदि द्वारा राज्य को कमजोर करते हैं। कमजोर व्यक्ति को मजबूत की शरण लेनी चाहिए। जिस शासक के पास सैन्य शक्ति, किलेबंदी और राजकोष की कमी हो, उसे इनसे संपन्न व्यक्ति की शरण लेनी चाहिए। निर्बलों की शरण से दुःख होता है। कमजोर के साथ गठबंधन से हानि होती है। ऐसे कमज़ोर शासक के साथ संबंध बनाने का क्या फ़ायदा जो अपनी समस्याओं को स्वयं नहीं संभाल सकता? -- आचार्य चाणक्य
  • निर्बल राजा को तत्काल संधि करनी चाहिए। -- आचार्य चाणक्य
  • दुर्बल के साथ संधि न करे। ठंडा लोहा लोहे से नहीं जुड़ता। -- चाणक्य

इन्हें भी देखें[सम्पादन]