श्यामसुन्दर दास
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- जब दो जातियों में परस्पर संबंध हो जाता है – चाहे वह संबंध मित्रता का हो चाहे अधीनता का हो, चाहे व्यवहार या व्यवसाय का हो, तब उसमें परस्पर भावों, विचारों आदि का विनिमय होने लगता है। जो जाति अधिक शक्तिशालिनी होती है उसका प्रभाव शीघ्रता से पड़ने लगता है और जो कम शक्तिशालिनी या निःसत्व होती है अथवा जो चिरकाल से पराधीन होती है, वह शीघ्रता से प्रभावित होने लगती है। -- ( साहित्यालोचन, पृष्ठ-55)
- क्या आप संसार में कहीं का भी एक दृष्टान्त उद्धृत कर सकते हैं जहाँ बालकों की शिक्षा विदेशी भाषाओं द्वारा होती हो?
- शब्द प्रयोग की दृष्टि से सबसे पहला स्थान शुद्ध हिन्दी के शब्दों को, उसके पीछे संस्कृत के सुगम और प्रचलित शब्दों को, इसके पीछे फारसी आदि विदेशी भाषाओं के साधारण और प्रचलित शब्दों को और सबसे पीछे संस्कृत के अप्रचलित शब्दों को स्थान दिया जाय। फारसी आदि विदेशी भाषाओं के कठिन शब्दों का प्रयोग कदापि न हो। -- मेरी आत्म कहानी, पृष्ठ -72 पर
बाबू श्यामसुन्दर दास पर महापुरुषों के विचार
[सम्पादन]- जिन्होंने बाल्यकाल ही से मातृभाषा हिन्दी में अनुराग प्रकट किया; जिनके उत्साह और अश्रान्त श्रम से नागरी प्रचारिणी सभा की इतनी उन्नति हुई; हिन्दी की दशा को सुधारने के लिए जिनके उद्योग को देखकर सहस्रशः साधु-वाद दिए बिना नहीं रहा जाता; जिन्होंने विगत दो वर्षों में, इस पत्रिका के संपादन कार्य को बड़ी ही योग्यता से निबाहा, उन विद्वान बाबू श्यामसुन्दर दास के चित्र को इस वर्ष, आदि में प्रकाशित करके, सरस्वती अपनी कृतज्ञता प्रदर्शित करती है। -- ‘सरस्वती’ पत्रिका के जनवरी १९०३ के अंक में सम्पादक महावीर प्रसाद द्विवेदी
- मातृभाषा के प्रचारक, बिमल बी.ए. पास।
- सौम्य शीलनिधान, बाबू श्यामसुंदर दास॥ -- महावीर प्रसाद द्विवेदी, सरस्वती के जनवरी १९०३ के अंक के मुखपृष्ट पर
- बाबू साहब ने बड़ा भारी काम लेखकों के लिए सामग्री प्रस्तुत करने का किया है। हिन्दी पुस्तकों की खोज के विधान द्वारा आपने साहित्य का इतिहास, कवियों के चरित्र और उनपर प्रबन्ध आदि लिखने का बहुत सा मसाला इकट्टा करके रख दिया। इसी प्रकार आधुनिक हिन्दी के नए- पुराने लेखकों के संक्षिप्त जीवनवृत्त ‘हिन्दी कोविदमाला’ के दो भागों में संग्रहीत किए हैं। शिक्षोपयोगी तीन पुस्तकें ‘भाषा विज्ञान’, ‘हिन्दी भाषा और साहित्य’ तथा ‘साहित्यालोचन’ – भी आपने लिखी या संकलित की है। -- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, हिन्दी साहित्य का इतिहास, पृष्ठ – 495 पर
- हिन्दी के हुए जो विगत वर्ष पचास । नाम उनका एक ही है श्यामसुन्दर दास॥ -- मैथिलीशरण गुप्त
- व्याख्या की पूर्णता के लिए विवेचन, तुलना, निष्कर्ष, उदाहरण, निर्णय आदि आवश्यक उपकरणों का भी यथास्थान बाबूसाहब ने प्रयोग किया है। तुलसी की प्रबंधपटुता पर विचार करते हुए आपने ‘वाल्मीकि रामायण’, ‘हनुमन्नाटक’ और ‘अध्यात्म रामायण’ के कथा- प्रसंगों से ‘रामचरितमानस’ की तुलना की है। इसी प्रकार उनके प्रकृति वर्णन की विशेषता बताते हुए आपने सूरदास और केशवदास का भी उल्लेख किया है। बाबूसाहब की व्यावहारिक समीक्षा में प्रासंगिक रूप से यह तुलनात्मक शैली बराबर प्रयुक्त हुई है। -- रामचंद्र तिवारी ; हिन्दी का गद्य साहित्य, पृष्ठ- 512 पर