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शब्द

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'शब्द' का अर्थ यहाँ ध्वनि, नाद, आदि से भी है।

चराचर दृष्यमान समग्र संसार नामरूपात्मक है या शब्द-अर्थ रूपात्मक है। इस संसार में एक तत्व है शब्द या नाम तथा दूसरा है अर्थ या रूप । अर्थात् जो कुछ भी मूर्त या अमूर्त, भौतिक या आत्मिक, श्रवणेन्द्रियेतर, अन्यान्येन्द्रिग्राह्य, चाहे वह प्रत्यक्ष प्रमाण साध्य प्रमेय हो, चाहे अनुमितिगम्य हो अथवा आर्षवचनप्रमाणसिद्ध हो वह समग्र अर्थतत्त्व है। अर्थ मात्र का अभिधान 'नाम' या 'शब्द' कहलाता है। जो भी जगज्जात है वह अवश्य ही शब्दवाच्य है या नामवाला है। समग्र मूर्तामूर्त ज्ञान शब्द का विषय बनकर ही हमारे सम्मुख या बुद्धि का विषय बनता है।

इस संसार में तीन ज्योतियां मानी गई है :- सूर्य अग्नि व शब्द । सूर्य व अग्नि बाह्य जगत के बाह्य पदार्थो को आलोकित करते हैं जबकि यह शब्द रूप तृतीय ज्योति बाह्य व अन्तर उभयविध पदार्थों की प्रकाशिका है।

उक्तियाँ

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  • न सोऽस्ति प्रत्ययो लोके यः शब्दानुमगमादृते ।
अनुविद्धमिव ज्ञानं सर्वं शब्देन भासते ॥ -- भर्तृहरि, वाक्यपदीयम्
इस लोक में ऐसा कोई ज्ञान नहीं जो बिना शब्द के प्राप्य हो। सम्पूर्ण ज्ञान शब्द से गुम्फित सा है अथवा शब्द से एकाकर हुआ सा प्रतीत होता है।
  • अनादिनिधनं ब्रह्म शब्दतत्त्वं यदक्षरम्।
विवर्तते अर्थभावेन प्रक्रिया जगतोयतः॥ -- भर्तृहरि, वाक्यपदीयम्
शब्द रूपी ब्रह्म अनादि, विनाश रहित और अक्षर (नष्ट न होने वाला) है तथा उसकी विवर्त प्रक्रिया से ही यह जगत भासित होता है।
  • शब्दस्य परिणामोऽयमित्याम्नायविदो विदुः । -- वाक्यपदीयम्
अनादि परम्परा जाननें वाले ऋषियों का कहना है कि संसार शब्द का परिणाम है।
  • वागेव विश्व भुवनानि यज्ञे वाच इत ।
स सर्वम्भृतं यच्च मर्त्यमिति श्रुतिः ॥
वाक् से समस्त विश्व उत्पन्न हुए । वाक् से ही अमृत एंव मर्त्य-संसार का प्रादुर्भाव हुआ।
  • लौकिकानां हि साधूनामर्थं वागनुवर्तते।
ऋषीणां पुनराद्यानां वाचमर्थोऽनुधावति॥ -- उत्तररामचरितम्
लौकिक सत्पुरुषों की वाणी अर्थ का अनुसरण करती हैं (जैसे होता है, वैसे ही बताती है) परन्तु आद्य द्रष्टे ऋषियों की वाणी का अनुसरण अर्थ करता है (जो वो बताती हैं, वैसा ही बाद में होता है)।
  • तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ। -- भगवान् कृष्ण, गीता में
कार्य एवं अकार्य की व्यवस्थिति अर्थात् कर्त्तव्य एवं अकर्तव्य का निर्णय करने में शास्त्र ही एकमात्र प्रमाण है।
  • वाणी की चार अवस्थाएँ हैं- 1. परा, 2. पश्यन्ती, 3. मध्यमा और 4. वैखरी । -- ऋग्वेद ( 1/64/45)
  • आप्तोपदेशः शब्दः । स द्विविधो दृष्टादृष्तार्थत्वात् ॥ -- न्यायसूत्राणि १/१/७ , ८
जो व्यक्ति किसी विषय का जाना-माना ज्ञाता हो, और जो किसी बाह्य प्रभाव से अपने मत को झुठला नहीं सकता, ऐसे आप्तपुरुष के वचन प्रामाणिक होते हैं । और ये वचन दो प्रकार के होते हैं – दृष्ट विषयों से सम्बद्ध और अदृष्ट विषयों से सम्बद्ध ।
  • आप्तोपदेशसामर्थ्याच्छब्दादर्थसम्प्रत्ययः ॥ -- न्यायसूत्राणि २।१।५३
आप्त जनों के उपदेश में इतना सामर्थ्य होता है कि कहे शब्द के अर्थ की प्रतीति श्रोता को हो जाती है ।
  • तदप्रामाण्यामनृतव्याघातपुनरुक्तदोषेभ्यः ॥ -- न्यायसूत्राणि २।१।५८
अर्थात् शब्द प्रमाण अप्रामाणिक है क्योंकि उसमें झूठ, परस्पर विरोध और पुनरुक्ति के दोष होते हैं ।
  • वाच्यवाचकभावः सम्बन्धः शब्दार्थयोः ॥ त्रिभिः सम्बन्धसिद्धिः ॥ न कार्ये नियम उभयथा दर्शनात् ॥ -- साङ्ख्यदर्शन ५।३७-३९
शब्द और अर्थ में जो सम्बन्ध है वह वाच्य और वाचक का है – इन्द्रिय से ग्रहण होने वाला पदार्थ वाच्य है और उसको कहने वाला, उसका ज्ञान कराने वाला शब्द उसका वाचक है । तीन प्रकार से (बुद्धि में) यह सम्बन्ध सिद्ध होता है – प्रत्यक्ष, अनुमान और उपमान से ।
  • औत्पत्तिकस्तु शब्दस्यार्थेन सम्बन्धस्तस्य ज्ञानमुपदेशोऽव्यतिरेकश्चार्थेऽनुपलब्धे तत्प्रमाणं बादरायणस्यानपेक्षत्वात् ॥ -- पूर्वमीमांसा १।१।५॥
अर्थात् शब्द और उसके अर्थ का सम्बन्ध औत्पत्तिक ( उत्पन्न कराने वाला) है । उसका उपदेश संशयरहित ज्ञान की उत्पत्ति करता है । वाच्य के न उपलब्ध होने पर भी वह प्रमाण होता है क्योंकि, बादरायण मुनि के अनुसार, वह किसी वस्तु की अपेक्षा नहीं रखता ।
  • इदमन्धं तमः कृत्स्नं जायेत भुवनत्रयम् ।
यदि शब्दावयं ज्योतिरासंसारं न दीप्यते ॥ -- दण्डी
यदि शब्दनामक ज्योति इस संसार को प्रकाशित नहीं करें तो यह समग्र लोक अन्धकारमय सा हो जाये।
  • प्रतीतपदार्थको लोके ध्वनिः शब्दः -- पतञ्जलि, व्याकरण महाभाष्य
  • एकः शब्दः सम्यग् ज्ञातः सुप्रयुक्तः स्वर्गे लोके च कामधुग् भवति। -- पतञ्जलि, व्याकरण महाभाष्य में
एक शब्द को यदि ठीक से जाना और प्रयोग किया जाए तो वह इस संसार और अगले संसार में इच्छाओं की पूर्ति करने वाला बन जाता है।
शब्द-प्रमाण
  • आप्तोपदेशः शब्दः – न्यायसूत्र 1/1/17
आप्त का उपदेश ही शब्द है। (आप्त उस पुरुष को कहते हैं जो किसी क्षेत्र विशेष का विशेषज्ञ हो।
  • प्रयोगहेतुभूतार्यत्वज्ञानजन्यः शब्दः- गंगेश उपाध्याय, तत्वचिन्तामणि, शब्द खण्ड
वाक्यार्थ-ज्ञान ही शब्द-प्रमाण है।
  • आप्तवाक्यं शब्दः -- तर्कसंग्रह, पृ0 182
यथार्थ उपदेश करने वाले व्यक्ति के द्वारा कहे गये वाक्य ही शब्दप्रमाण हैं।
  • यथार्थाभिधानं शब्दः -- उमास्वामी
यथार्थ का अभिधान ही शब्द है।
  • वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये ।
जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ ॥
मैं वाणी और अर्थ की प्राप्ति के लिए जगत के माता-पिता शिव-पार्वती की मैं वन्दना करता हूँ जो वाणी और अर्थ के समान मिले हुए (संपृक्त) हैं।
  • नादब्रह्म समस्त प्राणियों में चैतन्य और आनन्दमय है। उसकी उपासना करने से ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों की सम्मिलित उपासना हो जाती है। वे तीनों नादब्रह्म के साथ बँधे हुए हैं। -- संगीतरत्नाकर
  • एक ‘शब्दब्रह्म’ है, दूसरा ‘परब्रह्म’। शास्त्र और प्रवचन से ‘शब्द ब्रह्म’ तथा विवेक, मनन, चिन्तन से ‘परब्रह्म’ की प्राप्ति होती है। इस ‘परब्रह्म’ को ‘बिन्दु’ भी कहते हैं। -- अग्निपुराण
  • ‘शब्दब्रह्म’ को ठीक तरह जानने वाला ‘ब्रह्म-तत्त्व’ को प्राप्त करता है। -- शतपथ ब्राह्मण
  • ‘शब्दब्रह्म’ की तात्त्विक अनुभूति हो जाने से समस्त मनोरथों की पूर्ति हो जाती है। -- श्रुति
  • भारतीय परम्परा में अर्थबोध के आठ साधन माने गए हैं : (१) व्यवहार (2) कोश (३) व्याकरण (४) प्रकरण (५) व्याख्या (६) उपमान (७) आप्तवाक्य (८) ज्ञान का सान्निध्य । पाश्चात्य मत पाश्चात्य चिंतकों ने अर्थ-बोध के मात्र तीन साधन माने हैं - (१) प्रदर्शन या व्यवहार (Demonstration) (२) विवरण (Circumlocution) (३) अनुवाद (Translation)
  • शब्दों से हम विचार सीखते हैं, विचारों से हम जीवन को जानते हैं। -- Jean Baptiste Girard
  • रंग उड़ जाते हैं, मन्दिर टुकड़े-टुकडे हो जाते हैं, साम्राज्य गिर जाते हैं, लेकिन सम्यक शब्द सदा जीवित रहते हैं। -- Edward Thorndike
  • सभी प्रकार की प्रतिभाओं में सबसे मूल्यवान प्रतिभा यह है कि जब एक ही शब्द से काम चल जाये तो दो शब्दों का उपयोग न करना। -- थॉमस जेफर्सन
  • शब्द किसी व्यक्ति की बुद्धि के परिचायक है, लेकिन उसके कार्य उसके अर्थ के परिचायक हैं। -- बेंजामिन फ्रैंकलिन
  • बहुत से लोग सोचते हैं कि बहु-आक्षरिक शब्द बुद्धिमत्ता के प्रतीक हैं। -- Barbara Walters
  • मेरे लिये शब्द, क्रिया के एक रूप हैं जो परिवर्तन लाने की क्षमता रखते हैं। -- Ingrid Bengis
  • सही शब्द बहुमूल्य हैं किन्तु उनके लिये कुछ भी खर्च नहीं करना पड़ता। -- George Herbert
  • यह अकारण नहीं है कि शब्द अब तक मनुष्य के मुख्य खिलौने और औजार बने रहे हैं। यदि शब्दों में निहित अर्थ और मूल्य न होते तो मनुष्य के सारे अन्य औजार व्यर्थ होते। -- Lewis Mumford
  • मैं लिखे हुए शब्दों के द्वारा आपको सुनाना चाहता हूँ, अनुभव कराना चाहता हूँ और दिखाना चाहता हूँ। -- Joseph Conrad
  • जीवन का सबसे कठिन काम यह है कि आपके हृदय में हो और आप उसे बोल न सकें। -- James Earl Jones
  • बातचीत की सही कला केवल सही स्थान पर सही चीज कहना नहीं है, बल्कि गलत चीज को अनकहा छोड़ना भी है जब उसे कहने की इच्छा हो रही हो। -- Dorothy Nevill
  • अच्छे और बुरे सभी कार्यों के लिये शब्द शक्तिशाली हथियार हैं। -- Manly Hall
  • शब्द जब किसी शब्दकोश में होते हैं तो कितने निर्दोष और शक्तिहीन होते हैं, लेकिन वे ही शब्द अच्छा या बुरा करने के लिये कितने शक्तिशाली हो जाते हैं जब वे किसी ऐसे व्यक्ति के हाथ में आ जाते हैं जो उनको शिश्रित करना जानता है। -- Nathaniel Hawthorne

सन्दर्भ

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इन्हें भी देखें

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