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लक्षण

विकिसूक्ति से
  • प्रेरणा, धर्म का लक्षण और अर्थ है। (लोक-परलोक के सुखों की सिद्धि के लिये गुणों और कर्मों में प्रवृति की प्रेरणा धर्म का लक्षण है।) धर्माख्यं विषयं...
  • ब्राह्मण वाले लक्षण न हों तो वह ब्राह्मण नहीं होता। अभिप्राय यह है कि लक्षणों और कर्मों के अनुसार ही व्यक्ति उस वर्ण का होता है जिसके लक्षण या कर्म वह ग्रहण...

विद्यार्थी तथैव च । अल्पहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पञ्चलक्षण्म् ॥ विद्यार्थी के पाँच लक्षण होते हैं : कौवे जैसी दृष्टि, बकुले जैसा ध्यान, कुत्ते जैसी नींद, अल्पहारी... २ KB (१२६ शब्द) - ०८:३४, ६ अप्रैल २०२३ पुराण मनु के काल), और वंशानुचरित (सूर्य चंद्रादि वंशीय चरित) ये पुराण के पाँच लक्षण हैं। -- अमरकोष

सर्गश्चाथविसर्गश्च वृत्तौ रक्षान्तराणि च। वंशो वंशानुचरितं...

बल, वर्ण एवं आयु का लाभ मिलता हो, जिसकी पाचक-अग्नि न अधिक हो न कम, उक्त लक्षण हो तो व्यक्ति निरोगी है अन्यथा रोगी है। समदोषः समाग्निश्च समधातु मलःक्रियाः।...


स्वच्छता

करन), शुचिता, इंद्रियनिग्रह, धी, विद्या, सत्य और अक्रोध - धर्म के ये दश लक्षण हैं। तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहो नातिमानिता। भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य...

मुहावरे

बार यह व्यंग्यात्मक भी होते हैं। शब्दों की तीन शक्तियाँ होती हैं : अभिधा, लक्षणा, व्यंजना अभिधा : जब किसी शब्द का सामान्य अर्थ में प्रयोग होता है तब वहाँ...

क्रोध गर्वो दुर्वचनं तथा। क्रोधश्च दृढवादश्च परवाक्येष्वनादरः॥ मूर्ख के पाँच लक्षण हैं: गर्व, अपशब्द, क्रोध, हठ और दूसरों की बातों-विचारों का अनादर। षड् दोषाः...

स्वर्ग

रूप, शास्त्रज्ञान, विद्या, कुलीनता, शील, बल, धन, शूरता और वाक्पटुता ये दस लक्षण स्वर्ग के कारण हैं। जिस दिन धरती को स्वर्ग में परिणत कर दिया जायगा, उसी...

पण्डित

सैकड़ों की हानि करके भी विवाद न करे, यह ज्ञानी का लक्षण है। बिना करण के क्लह कर बैठना मूर्ख का लक्षण है। उदीरितोऽर्थः पशुनापि गृह्यते हयाश्च नागाश्च वहन्ति...

निद्रा

तथैव च। अल्पहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पंच लक्षणम् ॥ विद्यार्थी मे ये पांच लक्षण हैं- कौवे की तरह जानने की चेष्टा, बगुले की तरह ध्यान, कुत्ते की तरह नींद...

आरम्भ

उस कार्य को जारी रखने में सहायता करती है। -- विनोबा भावे बुद्धि का पहला लक्षण है काम आरम्भ न करो और अगर शुरू कर दिया है तो उसे पूरा करके ही छोड़ो। --...

काव्य

है? आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (चिन्तामणि) कवि और कविता (महावीरप्रसाद द्विवेदी) काव्य का लक्षण, विभिन्न आचार्यों द्वारा प्रतिपादित काव्य-लक्षणों का विवेचन...

मुहावरा

होगा। लक्षणा : जब शब्द का सामान्य अर्थ में प्रयोग न करते हुए किसी विशेष प्रयोजन के लिए इस्तेमाल किया जाता है, यह जिस शक्ति के द्वारा होता है उसे लक्षणा कहते...

वॉरेन बफे

नहीं खुलेगा। मैं जिन अरबपतियों को जानता हूँ, पैसा बस उनके अन्दर बुनियादी लक्षण लाता है। अगर वो पहले से मूर्ख थे तो अब वो अरबों डौलर के साथ मूर्ख हैं। मैं...

वैद्य

उपक्रम पढ़ा नहीं, वो वैद्य वैद्य नहीं, यम का दूत है। तर्कविहीनो वैद्यः लक्षण हीनश्च पण्डितो लोके । भावविहीनो धर्मो नूनं हस्यन्ते त्रीण्यपि ॥ तर्कविहीन...

धैर्य

करना), शौच, इन्द्रियनिग्रह, बुद्धि, विद्या, सत्य, अक्रोध – ये दस धर्म के लक्षण हैं । त्याज्यं न धैर्यं विधुरेऽपि काले धैर्यात् कदाचिद्गतिमाप्नुयात् सः।...

सुभाषित

२-२३९ बालक से भी सूक्ति को ले लेना चाहिये। (सूक्ति का आदर जागरूक समाज का लक्षण है।) सुभाषितमयैर्द्रव्यैः संग्रहं न करोति यः। सोऽपि प्रस्तावयज्ञेषु कां...

प्रशंसा

प्रशंसा प्राप्त करने की लालसा है। -- विलियम जेम्स आत्म-प्रशंसा ओछेपन का लक्षण है। -- वैस्कल अपनी प्रशंसा के गीत गाना स्वयं को हीन साबित करना है। सच्ची...

विभिन्न वस्तुओं के लक्षण

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विद्यार्थी
काकचेष्टा बकोध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च।
अल्पहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पञ्चलक्षणम्॥
पुराण के लक्षण
सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च ।
वंशानुचरितं चैव पुराणं पंचलक्षणम् ॥
(१) सर्ग – पंचमहाभूत, इंद्रियगण, बुद्धि आदि तत्त्वों की उत्पत्ति का वर्णन,; (२) प्रतिसर्ग – ब्रह्मादिस्थावरांत संपूर्ण चराचर जगत् के निर्माण का वर्णन,; (३) वंश – सूर्यचंद्रादि वंशों का वर्णन, देवता व ऋषियों की सूचियाँ ; (४) मन्वन्तर (चौदह मनु के काल), और (५) वंशानुचरित (सूर्य चंद्रादि वंशीय चरित) ।
महाकाव्य लक्षण

आचार्य विश्वनाथ के अनुसार महाकाव्य के लक्षण इस प्रकार हैं :

जिसमें सर्गों का निबंधन हो वह महाकाव्य कहलाता है। इसमें देवता या सदृश क्षत्रिय, जिसमें धीरोदात्तत्वादि गुण हों, नायक होता है। कहीं एक वंश के अनेक सत्कुलीन भूप भी नायक होते हैं। शृंगार, वीर और शांत में से कोई एक रस अंगी होता है तथा अन्य सभी रस अंग रूप होते हैं। उसमें सब नाटकसंधियाँ रहती हैं। कथा ऐतिहासिक अथवा सज्जनाश्रित होती है। चतुर्वर्ग (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) में से एक उसका फल होता है। आरंभ में नमस्कार, आशीर्वाद या वर्ण्यवस्तुनिर्देश होता है। कहीं खलों की निंदा तथा सज्जनों का गुणकथन होता है। न अत्यल्प और न अतिदीर्घ अष्टाधिक सर्ग होते हैं जिनमें से प्रत्येक की रचना एक ही छंद में की जाती है और सर्ग के अंत में छंदपरिवर्तन होता है। कहीं-कहीं एक ही सर्ग में अनेक छंद भी होते हैं। सर्ग के अंत में आगामी कथा की सूचना होनी चाहिए। उसमें संध्या, सूर्य, चंद्रमा, रात्रि, प्रदोष, अंधकार, दिन, प्रात:काल, मध्याह्न, मृगया, पर्वत, ऋतु, वन, सागर, संयोग, विप्रलंभ, मुनि, स्वर्ग, नगर, यज्ञ, संग्राम, यात्रा और विवाह आदि का यथासंभव सांगोपांग वर्णन होना चाहिए (साहित्यदर्पण, परिच्छेद 6,315-324)।
महापुरुष के लक्षण
विद्वान के लक्षण
सत्यं तपो ज्ञानमहिंसता च विद्वत्प्रणामंच सुशीलता च।
एतानि योधारयते स विद्वान् न के वलंयः पठते स विद्वान्॥
सत्य, तप (अपने धर्म से न डिगना) ज्ञान, अहिंसा (किसी का दिल न दुखाना) विद्वानों का सत्कार, शीलता, इनको जो धारण करता है वह विद्वान् है केवल पुस्तक पढ़ने वाला नहीं।
शास्त्रारायधीत्यपि भवन्तिमूर्खायस्तु क्रियावान् पुरुषः सविद्वान्।
सुचिन्तितंचौषध मातुराणाँ न नाममात्रेण हरोत्यरोगम्॥
शास्त्र पढ़ कर भी मूर्ख रहते हैं परन्तु जो शास्त्रोक्त क्रिया को करने वाला है वह विद्वान् है। रोगी को नाम मात्र से ध्यान की हुई औषधि निरोग नहीं कर सकती।
बुद्धि के लक्षण
शुश्रूषा श्रवणं चैव ग्रहणं धारणां तथा ।
ऊहापोहोऽर्थ विज्ञानं तत्त्वज्ञानं च धीगुणाः ॥
शुश्रूषा, श्रवण, ग्रहण, धारण, चिंतन, उहापोह, अर्थविज्ञान, और तत्त्वज्ञान – ये बुद्धि के गुण हैं ।
ज्ञान के लक्षण
अक्रोधो वैराग्यो जितेन्द्रियश्च क्षमा दया सर्वजनप्रियश्च।
निर्लोभो मदभयशोकरहितो ज्ञानस्य एतत् दश लक्षणानि॥
अक्रोध, वैराग्य, जितेन्द्रिय, क्षमा, दया, सर्वजनप्रिय, निर्लोभ, मदभयशोकरहित - ये दस ज्ञान के लक्षण हैं।
धर्म के लक्षण
धृति क्षमा दमोस्तेयं, शौचं इन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो, दशकं धर्म लक्षणम्॥
धर्म के दस लक्षण हैं - धैर्य , क्षमा , संयम , चोरी न करना , स्वच्छता , इन्द्रियों को वश मे रखना , बुद्धि , विद्या , सत्य और क्रोध न करना ( अक्रोध )
धूर्त के लक्षण
शुश्रूषा श्रवणं चैव ग्रहणं धारणां तथा ।
ऊहापोहोऽर्थ विज्ञानं तत्त्वज्ञानं च धीगुणाः ॥
शुश्रूषा, श्रवण, ग्रहण, धारण, चिंतन, उहापोह, अर्थविज्ञान, और तत्त्वज्ञान – ये बुद्धि के गुण हैं ।
मित्र के लक्षण

गुसाई तुलसीदास जी सन्मित्र के लक्षण इस प्रकार कथन करते हैं :—

जे न मित्र दुख होहिं दुखारी।

तिनहिं विलोकत पातक भारी॥

जिन दुख गिरिसम रज करजाना।

मित्र के दुख रज मेरु समाना॥

जिनके असमति सहज न आई।

ते शठ कत हठि करत मिताई॥

देत लेत मन संक न धरईं।

बल अनुमान सदा हित करईं॥

कुपथ निवारि सुपथ चलावा।

गुण प्रगटइ अवगुणहिं दुरावा॥

विपत्ति काल कर सतगुन नेहा।

श्रुति कह संत मित्र गुन एहा॥

योग सिद्धि के लक्षण

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  • लघुत्वमारोग्यमलोलुपत्वं वर्णप्रसादं स्वरसौष्ठवं च ।
गन्धः शुभो मूत्रपुरीषमल्पं योगप्रवृत्तिं प्रथमां वदन्ति ॥ -- शेताश्वर उपनिषद्, अध्याय-१३
शरीर का हलकापन, किसी प्रकार के रोग का नहीं होना, विषयासक्ति की निवृत्ति, शारीरिक वर्ण की उज्ज्वलता, स्वर की मधुरता, शरीर में सुगंध और मलमूत्र कम हो जाना। योग की पहली सिद्धि के लक्षण हैं।

हठसिद्धि के लक्षण =

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  • वपुःकृशत्व वदने प्रसन्नता
नादस्फुटत्वं नयने सुनिर्मले।
अरोगता बिन्दुजयोऽग्निदीपनम्
नाडीविशुद्धिहंठसिद्धिलक्षणम्॥ – हठप्रदीपिका 2/28
शरीर में हलकापन, मुख पर प्रसन्नता, स्वर में सौ ठव, नयनों में तेजस्विता, रोग का अभाव, बिंद पर नियंत्रण, जठराग्नि की प्रदीप्ति तथा नाड़ियों की विशुद्धता - ये सब हठसिद्धि के लक्षण हैं।

मन्त्र सिद्धि के लक्षण

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ऋषियों ने मंत्रसिद्धि के और बहुत से लक्षण बताए हैं।

स्वप्न में दही-चावल खाना, सफेद वस्त्र पहनना, शरीर में सफेद चंदन का लेप करना, खून से अपने आपको नहाते देखना, सिंहासन रथ, ध्वजा और गहना देखना, अपना या किसी दूसरे का राज्याभिषेक देखना, गुरु, देवता, ब्राह्मण, कन्या, हाथी, घोड़ा, सिंह, दर्पण, शंख और वाद्ययंत्र देखना, पकवान, मिठाई या पान खाना, मोतियों की माला पहनना, तेज तपता हुआ सूर्य देखना, पानी, दूध या शराब से भरा घड़ा देखना, मछली, घी या गोरोचन देखना। वेदमंत्र या मंगल गान सुनना, घोड़ी, भैंस, शेरनी, गाय या हथिनी का दूध दुहते देखना, अपना सिर कटते हुए देखना, पितर, गाय, ब्राह्मण या राजा को देखना। सोने-चांदी के बर्तन में खुद को भोजन करते देखना- यह सब सिद्ध मंत्र सिद्धि के लक्षण हैं।