पुराण

विकिसूक्ति से

पुराण हिन्दू धर्मग्रन्थ हैं। वेद व्यास परम्परा से इनके रचनाकार माने जाते हैं। इनकी संख्या १८ है। 'पुराण' का शाब्दिक अर्थ है - 'प्राचीन आख्यान' या 'पुरानी कथा' । सांस्कृतिक अर्थ से पुराण हिन्दू संस्कृति के वे विशिष्ट धर्मग्रंथ जिनमें सृष्टि से लेकर प्रलय तक का इतिहास-वर्णन शब्दों से किया गया हो, पुराण कहे जाते हैं।

उक्तियाँ[सम्पादन]

  • सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च ।
वंशानुचरितं चेति पुराणं पञचलक्षणम् ॥
  • सर्ग (सृष्टि), प्रतिसर्ग (प्रलय, पुनर्जन्म), वंश (देवता व ऋषि सूचियां), मन्वन्तर (चौदह मनु के काल), और वंशानुचरित (सूर्य चंद्रादि वंशीय चरित) ये पुराण के पाँच लक्षण हैं। -- अमरकोष
  • सर्गश्चाथविसर्गश्च वृत्तौ रक्षान्तराणि च।
वंशो वंशानुचरितं संस्था हेतुपाश्रयः ॥ -- भागवत के द्वादश स्कन्ध में
सर्ग, विसर्ग, वृत्ति, रक्षा, अन्तराणि, वंश, वंशानुचरित, संस्था, हेतु तथा अपाश्रय - ये दश महापुराणों के लक्षण हैं।
  • अत्र सर्गो विसर्गश्च स्थान पोषणमूतयः ।
मन्वन्तरेशानुकथा निरोधा मुक्तिराश्रयः ॥ -- भागवत पुराण के बारे में
(श्री शुकदेव जी परीक्षित से कहते हैं कि) इस पुराण में सर्ग, विसर्ग, स्थान, पोषण, ऊति मन्वन्तर, ईशानुकथा, निरोध, मुक्ति तथा आश्रय -- महापुराण के दस लक्षण हैं।
  • ऋचः सामानि छन्दांसि पुराणं यजुषा सह -- अथर्ववेद
अर्थात् पुराणों का आविर्भाव ऋक्, साम, यजुस् औद छन्द के साथ ही हुआ था।
  • इतिहास पुराणं पञ्चम वेदानांवेदम् -- छान्दोग्य उपनिषद् ७.१.२
  • कल्पना ज्ञान से महत्वपूर्ण है। हम जैसी कल्पना और विचार करते हैं, वैसे ही हो जाते हैं। सपना भी कल्पना है। शिव ने इस आधार पर ध्यान की ११२ विधियों का विकास किया। अतः अच्छी कल्पना करें। -- (भगवान शिव, शिव पुराण में)
  • जीवितं च धनं दारा पुत्राः क्षेत्र गृहाणि च। याति येषां धर्माकृते त भुवि मानवाः॥ -- स्कन्दपुराण
मनुष्य जीवन में धन, स्त्री, पुत्र, घर-धर्म के काम, और खेत - ये पाँच चीजें जिस मनुष्य के पास होती हैं, उसी मनुष्य का जीवन इस धरती पर सफल माना जाता है।
  • सत्कर्म और सुमति से ही मृत्यु के बाद सद्गति और मुक्ति मिलती है। मनुष्य के लिए सबसे बड़ा धर्म है सत्य बोलना या सत्य का साथ देना और सबसे बड़ा अधर्म है असत्य बोलना या असत्य का साथ देना। कहते भी हैं कि राम नाम सत्य है, सत्य बोलो गत्य है। -- गरुड पुराण
  • संसार में प्रत्येक मनुष्य को किसी न किसी वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिति से आसक्ति या मोह हो सकती है। यह आसक्ति या लगाव ही हमारे दुख और असफलता का कारण होता है। निर्मोही रहकर निष्काम कर्म करने से आनंद और सफलता की प्राप्ति होती है। चौरासी लाख योनियों से गुजरने के बाद यह मानव शरीर मिला है इसे व्यर्थ के कार्य और विचारों में ना गवाएं।
  • यदा देवेषु वेदेषु गोषु विप्रेषु साधुषु।
धर्मो मयि च विद्वेषः स वा आशु विनश्यित।। -- श्रीमद्भागवत महापुराण
जो व्यक्ति देवता, वेद, गौ, ब्राह्मण, साधु और धर्म के कामों के बारे में बुरा सोचता है, उसका जल्दी ही नाश हो जाता है। यहां स्पष्ट करना जरूरी है कि ब्राह्मण उसे कहते हैं, जो कि वैदिक नियमों का पालन करते हुए 'ब्रह्म ही सत्य है' ऐसा मानता और जानता हो। जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं होता है।
  • अपराधी, नशे का व्यापारी, अत्यधिक क्रोधी, निर्दयी व्यक्ति, ब्याजखोर, निंदक व्यक्ति, किन्नर, संक्रामित व्यक्ति और चरित्रहीन महिला से दूर ही रहना चाहिए और इनका अन्न नहीं खाना चाहिए अन्यथा पाप लगता है। -- गरुड पुराण
  • कुसंगत, माता पिता से झगड़ना, सेवा का भाव न रखना, आज का कार्य कल पर टालना, धर्म का पालन का करना, कटु वचन बोलना, बहुत बातूनी होगा, बड़ों का और समाज का अपमान करना, परस्त्रीगमन करना, फिजूलखर्ची, चोरी करना, शराब पीना, मांस खाना, लोगों को भ्रमित करना, तामसिक भोजन करना और बहुत देर तक सोना.. यह सब ऐसी बुराइयां हैं जो व्यक्ति का सदा दु:खी बनाए रखकर जीवन को नष्ट कर देती है।
  • कर्मयोग से बढ़कर है ज्ञानयोग, ज्ञानयोग से बढ़कर है भक्तियोग। जो व्यक्ति अपने ईष्टदेव की भक्ति में दृढ़ रहता है उसके जीवन में कभी भी किसी भी प्रकार की परेशानी खड़ी नहीं होती है।
  • ये नरा ज्ञानशीलाश्च ते यान्ति परमां गतिम् ।
पापशीला नरा यान्ति दुखेन यमयातनाम ।। -- गरुड पुराण
जो पुरूष ज्ञानशील है, वे परमगति को प्राप्त होते है।जो प्राणी पापकर्म में प्रवृत्त है, वे तो दुख से यमयातना को भोगते हैं।
  • जो व्यक्ति दूसरों के विषय में सोचता है और स्वार्थ से बिल्कुल दूर है, वही व्यक्ति कलियुग में सफलता प्राप्त कर सकता है। -- विष्णु पुराण
  • चिन्ता करने से आयु का नाश होता है और प्रभु की भक्ति करने से आयु वृद्धि होती है।
  • अशांत को सुख कैसे हो सकता है। सुखी रहने के लिए शान्ति बहुत जरुरी है।
  • जिस घर में स्त्री का मान-सम्मान होता है वहां पर लक्ष्मी सदा विराजमान रहती है। नारी वह धुरी है, जिसके चारों ओर परिवार घूमता है। जिस परिवार व राष्ट्र में स्त्रियों का सम्मान नहीं होता, वह पतन व विनाश के गर्त में लीन हो जाता है।
  • जिसने पहले तुम्हारा उपकार किया हो, वह यदि बड़ा अपराध करे तो भी उनके उपकार की याद करके उसका अपराध क्षमा दो।
  • बुरे कर्मों का बुरा परिणाम निकलता है। जैसा कर्म करोगे वैसा फल मिलेगा। अच्छे कर्म करते जाओ, फल की चिन्ता मत करो। व्यक्ति अपने कर्मों से पहचाना जाता है और महान बनता है जाति से नहीं।
  • दो प्रकार के व्यक्ति संसार में स्वर्ग के भी ऊपर स्थिति होते हैं- एक तो जो शक्तिशाली होकर क्षमा करता है और दूसरा जो दरिद्र होकर भी कुछ दान करता रहता है।
  • मन, वचन और कर्म से जो व्यक्ति एक है वहीं जीवन में लोगों से प्यार और आदर प्राप्त करके सफल हो जाता है।
  • एकादशी व्रत रखना, गंगा नदी में स्नान करना, विष्णु की पूजा, तुलसी की पूजा और उसका सेवन करना, गाय की पूजा और उसकी सेवा करना, श्राद्धकर्म करना, वेद अध्यन करना, तीर्थ परिक्रमा करना और माता-पिता की सेवा करना, संध्यावंदन करना यह सभी पुण्य कर्म है। ऐसा करने वाला सदा सुखी रहकर मोक्ष को प्राप्त होता है।

इन्हें भी देखें[सम्पादन]