सर्वं वस्तु भयावहं भुवि नृणां वैराग्यमेवाभयम् ॥ -- वैराग्यशतकम् 31
भोग में रोग का भय रहता है; पारिवारिक प्रतिष्ठा गिरने का भय रहता है; धन में राजाओं का भय रहता है; प्रतिष्ठा में अपमान का भय रहता है; सत्ता में शत्रु या विरोधी का भय रहता है; सुंदरता में बुढ़ापे का डर होता है; शास्त्र-विद्या में विद्वान् विरोधियों का भय रहता है; सदाचार में दुष्ट निंदा करने वाले व्यक्ति का भय रहता है; शरीर में मृत्यु का भय रहता है। मनुष्य के लिए, इस दुनिया में हर चीज़ भय से जुड़ी है। वैराग्य ही अभय प्रदान करता है।